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कश्मीर फाइल्स में मेरे आंसू असली-अनुपम खेर

भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में छा गई द कश्मीर फाइल्स

'द कश्मीर फाइल्स फिल्म ने दुनियाभर की आंखें खोल दी हैं'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Wednesday 23 November 2022 05:37:07 PM

the kashmir files shines at international film festival of india

पणजी। गोवा में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'द कश्मीर फाइल्स' के मुख्य अभिनेता अनुपम खेर ने कहा हैकि 32 साल बाद इस फिल्म ने दुनियाभर के लोगों को 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के साथ हुई त्रासदी के बारे में जागरुक होने में मदद की है। वे फिल्म महोत्सव में इफ्फी टेबल टॉक्स में बोल रहे थे। उन्होंने कहाकि ये सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म है और फिल्म निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म केलिए दुनियाभर से लगभग 500 लोगों का साक्षात्कार लिया था, कंटेंट पर कड़ी मेहनत की थी, तब जाकर यह फिल्म बनी है। अनुपम खेर ने कहाकि 19 जनवरी 1990 की रात को कश्मीर घाटी में हुई भयानक हिंसा केबाद 5 लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी में अपने घरों, यादों, खेतों और सेव बागानों को छोड़ना पड़ा था। उन्होंने कहाकि एक कश्मीरी हिंदू के रूपमे मैंने उस त्रासदी को जिया है, लेकिन खेद हैकि उस त्रासदी को कोई कुबूल करने को तैयार नहीं था, दुनिया उस त्रासदी को छिपाने की कोशिश की जा रही थी, द कश्मीर फाइल्सफिल्म ने उस त्रासदी का दस्तावेजीकरण करके एक हीलिंग प्रोसेस शुरू किया है।
कश्मीर फाइल्स में अभिनेता अनुपम खेर ने एक त्रासदी को परदे पर जीने की प्रक्रिया याद करते हुए कहाकि द कश्मीर फाइल्स उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं है, बल्कि एक भावना है, जिसे उन्होंने निभाया है। उन्होंने कहाकि चूंकि मैं उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता हूं, जिन्हें उनके घरों से निकाल दिया गया है, इसलिए मैं सर्वोत्तम संभव तरीके से इसे व्यक्त करने को एक बड़ी जिम्मेदारी मानता हूं, फिल्म में आप जो मेरे आंसू, मेरी मुश्किलें देख रहे हैं, वे सब असली हैं। अनुपम खेर ने आगे कहाकि इस फिल्म में एक अभिनेता के रूपमें अपने शिल्प का इस्तेमाल करने के बजाय, उन्होंने असल जिंदगी की घटनाओं के पीछे की सच्चाई को अभिव्यक्ति देने केलिए अपनी आत्मा का इस्तेमाल किया। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डालाकि फिल्म के पीछे मुख्य विषय ये हैकि कभी हार नहीं माननी चाहिए, उम्मीद हमेशा आसपास ही कहीं होती है। कोविड महामारी और लॉकडाउन ने लोगों के फिल्में देखने के तरीके को प्रभावित किया है। अनुपम खेर ने इस तथ्य पर जोर देते हुए कहाकि ओटीटी प्लेटफॉर्म से दर्शकों को विश्व सिनेमा और विभिन्न भाषाओं की फिल्में देखने की आदत पड़ गई है।
अनुपम खेर ने कहाकि दर्शकों को यथार्थवादी फिल्मों का स्वाद मिला है, जिन फिल्मों में वास्तविकता का अंश होगा, वे निश्चित रूपसे दर्शकों के साथ जुड़ेंगी, द कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों की सफलता इसका प्रमाण है, गाने और कॉमेडी के बगैर भी यह फिल्म कमाल की साबित हुई, यह वास्तव में सिनेमा की जीत है। उन्होंने उभरते फिल्म निर्माताओं को सलाह दीकि किसीको भी अपने जेहन से यह धारणा निकाल देनी चाहिए कि वे किसी भाषा विशेष के फिल्म उद्योग से आते हैं। अनुपम खेर ने कहाकि इसके बजाय सभी फिल्म निर्माताओं को खुद की पहचान भारतीय फिल्म उद्योग के एक ऐसे फिल्म निर्माता के रूपमें करनी चाहिए जोकि एक खास भाषा की फिल्म कर रहा है, यह फिल्म उद्योग जिंदगी से भी बड़ा है। इफ्फी के साथ अपनी यात्रा को याद करते हुए अनुपम ने कहाकि उन्होंने 28 साल की उम्र में पहली बार 1985 में अपनी फिल्म सारांश के लिए इफ्फी में भाग लिया था, चूंकि मैंने उस फिल्म में 65 साल की उम्र के व्‍यक्ति का किरदार निभाया था, इसलिए उस समय इफ्फी में मुझे किसी ने नहीं पहचाना। उन्होंने कहाकि 37 साल बाद 532 से अधिक फिल्मों केसाथ इफ्फी केलिए फिर से गोवा में होना, मेरे लिए एक महान क्षण है, जो एक प्रतिष्ठित महोत्‍सव बनकर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ महोत्‍सवों में शुमार हो चुका है।
अनुपम खेर ने बातचीत में यह घोषणा कीकि वह उड़िया फिल्म प्रतीक्षा का हिंदी में निर्माण करेंगे, जो पिता-पुत्र की एक जोड़ी की कहानी है, जिसमें बेरोज़गारी एक प्रमुख विषय है। उन्‍होंने कहाकि वह स्‍वयं भी इसमें एक मुख्य भूमिका निभाएंगे। प्रतीक्षा के निदेशक अनुपम पटनायक भी महोत्‍सव स्थल पर पीआईबी द्वारा कलाकारों और फिल्मकारों की मीडिया और प्रतिनिधियों केसाथ आयोजित बातचीत के दौरान मंच साझा कर रहे थे। द कश्मीर फाइल्स के निर्माता अभिषेक अग्रवाल ने इस बातचीत में शामिल होते हुए कहाकि यह फिल्म थी, जिसने उन्हें चुना था, न कि उन्‍होंने इस फिल्‍म को चुना था। द कश्मीर फाइल्स फिल्म का आधार यह हैकि कृष्णा पंडित एक युवा कश्मीरी पंडित शरणार्थी हैं, जो अपने दादा पुष्करनाथ पंडित केसाथ रहते हैं, उनके दादा ने 1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को देखा था, उन्हें कश्मीर से भागना पड़ा था और उन्‍होंने जीवनभर धारा 370 को निरस्‍त किए जाने केलिए संघर्ष किया था। कृष्‍णा पंडित का मानना हैकि उनके माता-पिता की मौत कश्मीर में एक दुर्घटना में हुई थी। जेएनयू के छात्र के रूपमें अपनी गुरु प्रोफेसर राधिका मेनन के प्रभाव में वह इस बात पर यकीन करने से इंकार करते हैंकि कोई नरसंहार हुआ था और वह आज़ाद कश्मीर के लिए लड़ता है, मगर अपने दादा की मृत्यु केबाद कृष्णा पंडित को सच्चाई का पता चलता है, जोकि द कश्मीर फाइल्स के रूपमें दुनिया के सामने आई है।

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