स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Friday 27 January 2023 05:50:37 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज परीक्षा पे चर्चा के छठे संस्करण में नई दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों केसाथ बातचीत की। प्रधानमंत्री ने माता-पिता, शिक्षकों और अभिभावकों से परीक्षा केदौरान बनाए जारहे तनावपूर्ण माहौल को अधिकतम सीमा तक कम करने का आग्रह किया, नतीजतन परीक्षा छात्रों के जीवन को उत्साह से भरकर एक उत्सव में बदल जाएगी और यही उत्साह छात्रों की उत्कृष्टता की गारंटी देगा। उन्होंने बातचीत से पहले कार्यक्रम स्थल पर प्रदर्शित छात्रों की प्रदर्शनी देखी। परीक्षा पर चर्चा की परिकल्पना प्रधानमंत्री ने की है, जिसमें छात्र, अभिभावक और शिक्षक उनके साथ जीवन और परीक्षा से संबंधित विभिन्न विषयों पर बातचीत करते हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि यह पहलीबार हैकि परीक्षा पर चर्चा गणतंत्र दिवस समारोह केदौरान हो रही है और कहाकि अन्य राज्यों से नई दिल्ली आने वालों कोभी गणतंत्र दिवस की झलक मिली। स्वयं प्रधानमंत्री केलिए परीक्षा पर चर्चा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने उन लाखों सवालों की ओर इशारा किया, जो कार्यक्रम के हिस्से के रूपमें सामने आए और कहाकि यह उन्हें भारत की युवा पीढ़ी के मन में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि ये सवाल उनके लिए खजाने की तरह हैं, वे इन सभी प्रश्नों का संकलन चाहते हैं, जिनका आनेवाले वर्ष में सामाजिक वैज्ञानिकों से विश्लेषण कराया जा सकता है, जिससे हमें ऐसे गतिशील समय में युवा छात्रों के दिमाग के बारेमें एक विस्तृत थीसिस मिल सके। तमिलनाडु के मदुरै से अश्विनी केंद्रीय विद्यालय की छात्रा, केवी पीतमपुरा दिल्ली से नवतेज और पटना में नवीन बालिका स्कूल से प्रियंका कुमारी के खराब अंक के मामले में पारिवारिक निराशा के बारेमें प्रश्न के उत्तर में प्रधानमंत्री ने कहाकि परिवार की उम्मीदों के साथ इसमें कुछभी गलत नहीं है, हालांकि यदि ये अपेक्षाएं सामाजिक स्थिति से संबंधित अपेक्षाओं के कारण हैं तो यह चिंताजनक है। प्रधानमंत्री ने हर सफलता केसाथ प्रदर्शन के बढ़ते मानकों और बढ़ती अपेक्षाओं के बारेमें बात की। उन्होंने कहाकि आसपास की उम्मीदों के जाल में फंसना अच्छा नहीं है, व्यक्ति को अपने भीतर देखना चाहिए और उम्मीद को अपनी क्षमताओं, जरूरतों, इरादों और प्राथमिकताओं से जोड़ना चाहिए। क्रिकेट के खेल का उदाहरण देते हुए जहां भीड़ चौके-छक्के केलिए तरसती रहती है, प्रधानमंत्री ने कहाकि दर्शकों में इतने लोगों के छक्के या चौके की मिन्नतें करने केबाद भी बल्लेबाजी केलिए जानेवाला बल्लेबाज बेफिक्र रहता है।
प्रधानमंत्री ने क्रिकेट के मैदान पर बल्लेबाज के फोकस और छात्रों के दिमाग केबीच की कड़ी को रेखांकित करते हुए कहाकि अगर आप फोकस्ड रहते हैं तो उम्मीदों का दबाव खत्म हो सकता है। उन्होंने अभिभावकों से आग्रह कियाकि वे अपने बच्चों पर उम्मीदों का बोझ न डालें और छात्रों से कहाकि वे हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार खुदका मूल्यांकन करें। उन्होंने छात्रों से यहभी कहाकि वे दबावों का विश्लेषण करें और देखेंकि क्या वे अपनी क्षमता के साथ न्याय कर रहे हैं, ऐसे में इन उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सकता है। केवी डलहौजी की कक्षा 11वीं की छात्रा आरुषि ठाकुर से परीक्षा की तैयारी कहां से शुरू करें और तनावपूर्ण स्थिति के कारण भूलने की स्थिति और कृष्णा पब्लिक स्कूल रायपुर से अदिति दीवान से परीक्षा के दौरान समय प्रबंधन के प्रश्न के उत्तर में प्रधानमंत्री ने परीक्षा केसाथ या उसके बिना सामान्य जीवन में समय प्रबंधन के महत्व पर बल दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि काम नहीं करना इंसान को थका देता है। उन्होंने छात्रों से कहाकि वे अपने द्वारा की जानेवाली विभिन्न चीजों केलिए समय आवंटन को नोट कर लें। उन्होंने कहाकि यह एक सामान्य प्रवृत्ति हैकि व्यक्ति अपनी पसंद की चीजों को अधिक समय देता है, किसीभी विषय केलिए समय आवंटित करते समय मन तरोताजा होने पर कम से कम रोचक या सबसे कठिन विषय लेना चाहिए, छात्रों को तनावमुक्त मानसिकता केसाथ जटिलताओं से निपटना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूछाकि क्या छात्रों ने घरपर काम करने वाली माताओं के समय प्रबंधन कौशल का अवलोकन किया है, जो हर काम को समय पर करती हैं। उन्होंने कहाकि वे बचे हुए समय में कुछ रचनात्मक कार्यों में संलग्न होने का समय भी निकाल लेती हैं, उनको देखकर छात्र समय के सूक्ष्म प्रबंधन के महत्व को समझ सकते हैं और इस प्रकार प्रत्येक विषय केलिए विशेष घंटे समर्पित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने टिप्पणी कीकि आपको अपना समय अधिक से अधिक लाभ केलिए वितरित करना चाहिए। बस्तर के स्वामी आत्मानंद सरकारी स्कूल के 9वीं कक्षा के छात्र रूपेश कश्यप ने परीक्षा में अनुचित साधनों से बचने के तरीकों केबारे में पूछा। कोणार्क पुरी ओडिशा के तन्मय बिस्वाल ने भी परीक्षा में नकल को खत्म करने केबारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त कीकि छात्रों ने परीक्षा के दौरान कदाचार से निपटने के तरीके खोजने का विषय उठाया और नैतिकता में नकारात्मक परिवर्तन की ओर इशारा किया, जहां एक छात्र परीक्षा में नकल करते समय पर्यवेक्षक को मूर्ख बनाने में गर्व महसूस करता है, यह एक बहुत ही खतरनाक प्रवृत्ति है। प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्होंने पूरे समाज से इसके बारेमें विचार करने केलिए कहा। उन्होंने कहाकि कुछ स्कूल या शिक्षक जो ट्यूशन कक्षाएं चलाते हैं, अनुचित साधनों का प्रयास करते हैं, ताकि उनके छात्र परीक्षा में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छात्रों से कहाकि वे तरीके खोजने और नकल सामग्री तैयार करने में समय बर्बाद करने से बचें और उस समय को सीखने में व्यतीत करें, दूसरी बात इस बदलते समय में जब हमारे आसपास का जीवन बदल रहा है, आपको कदम-कदम पर परीक्षा का सामना करना पड़ता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि ऐसे लोग केवल कुछ परीक्षाओं को ही पास कर पाते हैं, लेकिन अंततः जीवन में असफल हो जाते हैं। उन्होंने कहाकि धोखाधड़ी से जीवन सफल नहीं हो सकता, आप एक या दो परीक्षा पास कर सकते हैं, लेकिन यह जीवन में संदिग्ध बना रहेगा। प्रधानमंत्री ने मेहनती छात्रों से कहाकि वे धोखेबाजों की अस्थायी सफलता से निराश न हों और कहाकि कड़ी मेहनत से उन्हें अपने जीवन में हमेशा लाभ मिलेगा। प्रधानमंत्री ने कहाकि परीक्षा आती है और चली जाती है, लेकिन जीवन को पूरी तरह से जीना है। कोझिकोड केरल के छात्र ने हार्डवर्क बनाम स्मार्टवर्क की आवश्यकता और गतिशीलता केबारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्मार्टवर्क का उदाहरण देते हुए प्यासे कौए की कहानी पर प्रकाश डाला, जिसने अपनी प्यास बुझाने केलिए घड़े में पत्थर फेंके। उन्होंने बारीकी से विश्लेषण करने और काम को समझने की आवश्यकता पर जोर दिया और कड़ी मेहनत, स्मार्ट तरीके से काम करने की कहानी से नैतिकता पर प्रकाश डाला।
प्रधानमंत्री ने कहाकि हर काम की पहले अच्छी तरह से जांच की जानी चाहिए, एक स्मार्ट वर्किंग मैकेनिक का उदाहरण दिया, जिसने दो सौ रुपये में दो मिनट के भीतर एक जीप को ठीक कर दिया और कहाकि यह काम का अनुभव है, जो काम करने में लगने वाले समय के बजाय मायने रखता है। प्रधानमंत्री ने कहाकि कड़ी मेहनत से सबकुछ हासिल नहीं किया जा सकता, इसी प्रकार खेलों मेभी विशिष्ट प्रशिक्षण महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने कहाकि हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि क्या किया जाना चाहिए। जवाहर नवोदय विद्यालय गुरुग्राम की 10वीं कक्षा की छात्रा जोविता पात्रा ने एक औसत छात्र के रूपमें परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन करने केबारे में पूछा। प्रधानमंत्री ने स्वयं का वास्तविक आकलन करने की आवश्यकता की सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहाकि छात्र द्वारा उचित लक्ष्य और कौशल निर्धारित किए जाने चाहिएं। उन्होंने कहाकि किसी की क्षमता को जानने से व्यक्ति बहुत सक्षम हो जाता है। उन्होंने अभिभावकों से अपने बच्चों का सही आकलन करने को कहा। उन्होंने कहाकि ज्यादातर लोग औसत और साधारण होते हैं, लेकिन जब ये साधारण लोग असाधारण कार्य करते हैं तो नई ऊंचाईयों को छूते हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत को एक नई उम्मीद के रूपमें देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस समय को याद किया, जब भारतीय अर्थशास्त्रियों और यहां तककि प्रधानमंत्री कोभी कुशल अर्थशास्त्रियों के रूपमें नहीं देखा जाता था, लेकिन आज भारत दुनिया के तुलनात्मक अर्थशास्त्र में चमकता हुआ दिख रहा है। उन्होंने कहाकि हमें कभीभी इस दबाव में नहीं होना चाहिएकि हम औसत हैं और अगर हम औसत हैं तोभी हममें कुछ असाधारण होगा, आपको बस इतना करना हैकि इसे पहचानना और पोषित करना है। सेंट जोसेफ सेकेंडरी स्कूल चंडीगढ़ के छात्र मन्नत बाजवा, अहमदाबाद के 12वीं कक्षा के छात्र कुमकुम प्रतापभाई सोलंकी और व्हाइटफील्ड ग्लोबल स्कूल बैंगलोर के 12वीं कक्षा के छात्र आकाश दरिरा ने प्रधानमंत्री से नकारात्मक विचार रखनेवाले लोगों से निपटने, उसके प्रति राय और यह उसे कैसे प्रभावित करता केबारे में पूछा। दक्षिण सिक्किम के डीएवी पब्लिक स्कूल के 11वीं कक्षा के छात्र अष्टमी सेन नेभी मीडिया के आलोचनात्मक दृष्टिकोण से निपटने केबारे में इसी तरह का सवाल उठाया। प्रधानमंत्री ने कहाकि वह इस सिद्धांत में विश्वास करते हैंकि आलोचना एक शुद्धि यज्ञ है और एक समृद्ध लोकतंत्र की मूल स्थिति है। उन्होंने कहाकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण हैकि कौन आपके काम की आलोचना कर रहा है, आजकल माता-पिता रचनात्मक आलोचना के बजाय अपने बच्चों को बाधित करने की आदत में पड़ गए हैं और उनसे इस आदत को छोड़ने का आग्रह किया, क्योंकि यह बच्चों के जीवन को प्रतिबंधात्मक तरीके से नहीं बदलेगा।
प्रधानमंत्री ने संसद सत्र के उन दृश्यों पर भी प्रकाश डाला, जब सत्रको किसी खास विषय पर संबोधित कररहा कोई सदस्य विपक्ष के सदस्यों के टोके जाने केबाद भी विचलित नहीं होता। प्रधानमंत्री ने एक आलोचक होने के नाते श्रम और अनुसंधान का महत्व बताया और कहाकि आज केदिन और उम्र में शॉर्टकट की प्रवृत्ति देखी, जहां ज्यादातर लोग आलोचना के बजाय आरोप लगाते हैं। भोपाल से दीपेश अहिरवार, दसवीं कक्षा के छात्र आदिताभ, कामाक्षी और मनन मित्तल ने ऑनलाइन गेम और सोशल मीडिया की लत एवं परिणामी ध्यान भंग पर प्रश्न पूछे। प्रधानमंत्री ने कहाकि पहला फैसला यह तय करना हैकि आप स्मार्ट हैं या आपका गैजेट स्मार्ट है, समस्या तब शुरू होती है जब आप गैजेट को अपनेसे ज्यादा स्मार्ट समझने लगते हैं, किसी की स्मार्टनेस स्मार्ट गैजेट को स्मार्ट तरीके से उपयोग करने में सक्षम बनाती है और उन्हें उत्पादकता में मदद करने वाले उपकरणों के रूपमें व्यवहार करती है। उन्होंने चिंता व्यक्त कीकि एक अध्ययन के अनुसार एक भारतीय केलिए औसत स्क्रीन समय छह घंटे तक है, ऐसे में गैजेट हमें गुलाम बना लेता है। उन्होंने कहाकि हम एक स्वतंत्र इच्छा और स्वतंत्र व्यक्तित्व हैं, हमें हमेशा अपने गैजेट्स के गुलाम बनने केबारे में सचेत रहना चाहिए। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए कहाकि बहुत सक्रिय होनेके बावजूद उन्हें मोबाइल फोन केसाथ कम ही देखा जाता है, वह ऐसी गतिविधियों केलिए एक निश्चित समय रखते हैं, तकनीक से परहेज नहीं करना चाहिए, बल्कि खुदको जरूरत के हिसाब से उपयोगी चीजों तक सीमित रखना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छात्रों केबीच तालिका गायन केलिए क्षमता के नुकसान का उदाहरण भी दिया। प्रधानमंत्री ने कहाकि हमें अपने मूल उपहारों को खोए बिना अपनी क्षमताओं में सुधार करने की जरूरत है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस दौर में अपनी क्रिएटिविटी को बचाए रखने केलिए टेस्टिंग और लर्निंग करते रहना चाहिए। प्रधानमंत्री ने नियमित अंतराल पर 'टेक्नोलॉजी फास्टिंग' का सुझाव दिया। उन्होंने हर घर में एक 'प्रौद्योगिकी मुक्त क्षेत्र' के रूपमें एक सीमांकित क्षेत्र काभी सुझाव दिया, इससे जीवन में आनंद की वृद्धि होगी और आप गैजेट्स की गुलामी के चंगुल से बाहर आएंगे। जम्मू के गवर्नमेंट मॉडल हाई सेकेंडरी स्कूल के 10वीं कक्षा के छात्र निदाह से सवाल कड़ी मेहनत केबाद भी वांछित परिणाम नहीं मिलने के तनाव को दूर करने और शहीद नायक राजेंद्र सिंह राजकीय स्कूल पलवल हरियाणा के छात्र प्रशांत के प्रश्नकि तनाव परिणामों को कैसे प्रभावित करता है, प्रधानमंत्री ने कहाकि परीक्षा केबाद तनाव का मुख्य कारण इस सच्चाई को स्वीकार नहीं करना हैकि परीक्षा अच्छी हुई या नहीं। प्रधानमंत्री ने छात्रों केबीच तनाव पैदा करने वाले कारक के रूपमें प्रतिस्पर्धा का भी उल्लेख किया और सुझाव दियाकि छात्रों को अपनी आंतरिक क्षमताओं को मजबूत करते हुए स्वयं और अपने परिवेश से जीना और सीखना चाहिए। तेलंगाना के जवाहर नवोदय विद्यालय रंगारेड्डी की कक्षा 9वीं की छात्रा आर अक्षरासिरी और राजकीय माध्यमिक विद्यालय भोपाल की 12वीं कक्षा की छात्रा रितिका के प्रश्नकि कोई और भाषा कैसे सीखा जा सकता है और इससे उन्हें कैसे लाभ हो सकता है।
प्रधानमंत्री ने भारत की विविधता और समृद्ध विरासत को संबोधित करते हुए कहाकि यह बड़े गर्व की बात हैकि भारत सैकड़ों भाषाओं और हजारों बोलियों का घर है। उन्होंने कहाकि नई भाषा सीखना एक नया संगीत वाद्ययंत्र सीखने के समान है, एक क्षेत्रीय भाषा सीखने का प्रयास करके, आप न केवल भाषा को एक अभिव्यक्ति बनने केबारे में सीख रहे हैं, बल्कि इस क्षेत्र से जुड़े इतिहास और विरासत के द्वार भी खोल रहे हैं। प्रधानमंत्री ने मातृभाषा के अलावा कम से कम एक क्षेत्रीय भाषा सीखने एवं जानने की आवश्यकता पर बल दिया और कहाकि देश को तमिल भाषा पर समान रूपसे गर्व करना चाहिए, जो पृथ्वी पर सबसे पुरानी भाषा के रूपमें जानी जाती है। प्रधानमंत्री ने संयुक्तराष्ट्र संगठनों के अपने पिछले संबोधन को याद किया और इस बात पर प्रकाश डालाकि कैसे उन्होंने विशेष रूपसे तमिल के बारेमें तथ्य सामने लाए, क्योंकि वह दुनिया को उस देश केलिए गर्व के बारेमें बताना चाहते थे, जो सबसे पुरानी भाषा का घर है। प्रधानमंत्री ने उत्तर भारत के लोगों पर प्रकाश डाला, जो दक्षिण भारत के व्यंजनों का सेवन करते हैं। प्रधानमंत्री ने गुजरात में प्रवासी श्रमिक की 8 वर्षीय बेटी का उदाहरण दिया, जो बंगाली, मलयालम, मराठी और गुजरात जैसी कई अलग-अलग भाषाएं बोलती है। पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से अपने संबोधन को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने अपनी विरासत पंच प्राणों मेसे एक पर गर्व करने पर कहाकि प्रत्येक भारतीय को भारत की भाषाओं पर गर्व करना चाहिए।
कटक की शिक्षिका सुनन्या त्रिपाठी ने प्रधानमंत्री से छात्रों को प्रेरित करने और कक्षाओं को दिलचस्प एवं अनुशासित रखने केबारे में प्रश्न पूछा। प्रधानमंत्री ने कहाकि शिक्षकों को लचीला होना चाहिए और विषय एवं पाठ्यक्रम केबारे में बहुत कठोर नहीं होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहाकि शिक्षकों को छात्रों केसाथ तालमेल स्थापित करना चाहिए, शिक्षकों को हमेशा छात्रों में जिज्ञासा को बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि यह उनकी बड़ी ताकत है। अनुशासन स्थापित करने के तरीकों केबारे में प्रधानमंत्री ने कहाकि शिक्षकों को कमजोर छात्रों को अपमानित करने के बजाय प्रश्न पूछकर पुरस्कृत करना चाहिए, इसी तरह विद्यार्थियों के अहंकार को चोट पहुंचाने के बजाय अनुशासन के मुद्दों केसाथ संवाद स्थापित करके, उनके व्यवहार को सही दिशा दी जा सकती है। प्रधानमंत्री ने कहाकि शिक्षकों को अनुशासन स्थापित करने केलिए शारीरिक दंड का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि संवाद और तालमेल चुनना चाहिए। समाज में छात्रों के व्यवहार केबारे में नई दिल्ली की एक अभिभावक सुमन मिश्रा के प्रश्न पर प्रधानमंत्री ने टिप्पणी कीकि माता-पिता को समाज में छात्रों के व्यवहार के दायरे को सीमित नहीं करना चाहिए, समाज में छात्र के विकास के लिए एक समग्र दृष्टिकोण होना चाहिए। प्रधानमंत्री ने अपनी खुद की सलाह को याद कियाकि छात्रों को अपनी परीक्षा केबाद बाहर यात्रा करने और अपने अनुभव रिकॉर्ड करने केलिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, उन्हें इस तरह आजाद करने से उन्हें काफी कुछ सीखने को मिलेगा। उन्होंने कहाकि 12वीं की परीक्षा केबाद उन्हें अपने राज्यों से बाहर जाने केलिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्होंने माता-पिता से कहाकि वे अपने बच्चों को नए अनुभवों केलिए प्रेरित करते रहें और उनकी स्थिति के मूड और स्थिति केबारे में सतर्क रहने केलिए भी कहा।