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Saturday 20 May 2023 12:30:03 PM
पेरिस। कान्स फिल्म महोत्सव में इंडिया पवेलियन के चौथे दिन की शुरुआत मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका पर एक सत्र केसाथ हुई। सत्र का शीर्षक 'शी शाइन्स' सर्वथा उपयुक्त था, जिसका संचालन अभिनेत्री एवं फिल्म निर्माता खुशबू सुंदर ने किया। वक्ताओं में अभिनेत्री ईशा गुप्ता, ग्रीक-अमेरिकी निर्देशक डाफ्ने श्मोन, भारतीय फिल्म निर्माता मधुर भंडारकर और सुधीर मिश्रा थे, जो महिला केंद्रित फिल्में बनाने केलिए जाने जाते हैं। अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने कहाकि भारतीय सिनेमा एक खूबसूरत दौर से गुजर रहा है, जहां महिलाएं न केवल अभिनय करने में, बल्कि निर्माता, निर्देशक और तकनीशियन के रूपमें भी सिनेमा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। नारी शक्ति केसाथ रचनात्मक अर्थव्यवस्था के बारेमें मधुर भंडारकर ने कहाकि जब आपके पास फिल्म के नायक के रूपमें एक महिला हो तो धन जुटाना मुश्किल होता है, लेकिन मैं भाग्यशाली हूंकि मैंने ऐसी फिल्में बनाईं, जिन्होंने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता बनीं। उन्होंने कहाकि महिला प्रधान फिल्मों से आपको मनचाहा बजट नहीं मिलता, लेकिन दुनियाभर में ऐसी ही स्थिति है।
फिर जोखिम क्यों? यह पूछे जाने पर मधुर भंडारकर ने कहाकि मैं महिलाओं के नजरिए से फिल्में बनाने में सहज हूं, यह कहानियों को एक अलग दृष्टिकोण देता है। उन्होंने बतायाकि जब वह चांदनी बार के निर्माता के पास गए तो लोग पैसा नहीं लगाना चाहते थे, उन्हें तब कई नायकों केसाथ एक फिल्म त्रिशक्ति बनानी पड़ी, फिल्म ने बिल्कुल भी अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। फिर उन्होंने चांदनी बार बनाने का फैसला किया और आखिरकार एक निर्माता मिल गया। चांदनी बार व्यावसायिक और समीक्षकों द्वारा प्रशंसित रही, इसने उन्हें महिलाओं को केंद्रीय पात्रों के रूपमें रखते हुए और अधिक फिल्में बनाने का साहस दिया। हालांकि आज भी लोग उनसे कहते हैंकि अगर वह किसी हीरो केसाथ फिल्म बनाएंगे तो फिल्म निर्माण का बजट बढ़ जाएगा, लेकिन वह जिस तरह का सिनेमा बना रहे हैं, उसे बनाकर खुश हैं। उनका कहना हैकि हालांकि चीजें निश्चित रूपसे बदल रही हैं, खासकर ओटीटी केसाथ यह हर किसी को जोखिम उठाने का अवसर देता है।
अभिनेत्री ईशा गुप्ता ने अपने अनुभव के बारेमें कहाकि इस साल मैंने फिल्म उद्योग में एक दशक पूरा किया है और 2019 तक मेरे लिए एक फिल्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाना सिर्फ एक सपना था। ईशा गुप्ता ने बतायाकि हम अनुपम खेर और कुमुद मिश्रा को लेकर एक फिल्म बनाने की कोशिश कररहे थे, जिसमें एक महिला पुलिस वाले के रूपमें मेरी केंद्रीय भूमिका थी, लेकिन फिल्म केलिए धन जुटाना बहुत मुश्किल था, जब फिल्म सिनेमाघरों में आई तो कुछ खास नहीं चली, लेकिन जब फिल्म नेटफ्लिक्स पर आई तो इसे खूब देखा गया, इससे पता चलता हैकि दर्शक महिला केंद्रित कहानियों को देखना चाहते हैं, अब चीजें बदल रही हैं, लेकिन हमें ऐसे और निर्देशकों की जरूरत है, जिन्हें हमारी कहानियों पर भरोसा हो। अभिनेत्री श्रुति हासन केसाथ फिल्म 'द आई' का निर्देशन करने वाली डाफ्ने श्मोन ने कहाकि यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण हैकि 51 प्रतिशत फिल्म दर्शक महिलाएं हैं, हमें अपनी कहानियों को पर्दे पर देखने की जरूरत है, हमें महिला निर्देशकों और अभिनेताओं को सबसे आगे रखने पर ध्यान देने की जरूरत है।
डाफ्ने श्मोन ने कहाकि हम हर साल लगभग 10 महिलाओं का चयन करते हैं और उनकी फिल्मों केलिए पैसा जुटाने में मदद करते हैं और यह महत्वपूर्ण हैकि हम कलाकारों के रूपमें पुरुषों और महिलाओं को समान स्तर पर देखें। डाफ्ने श्मोन ने कहाकि वंडर वुमन के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से पता चलता हैकि अगर कोई फिल्म अच्छी बनती है तो वह मुख्य किरदार के रूपमें एक महिला केसाथ भी अच्छा प्रदर्शन करेगी, हमें इन फिल्मों की अच्छी मार्केटिंग करने की जरूरत है। जब मधुर भंडारकर ने इस बारे में बात कीकि निर्माता फिल्म में नायक केसाथ एक अच्छी शुरुआत को किस प्रकार देखते है, फिल्म निर्माता सुधीर मिश्रा, जो फ्रेंच रिवेरा में फिल्म समारोह में भाग ले रहे हैं ने कहाकि आजकल कोई भी बॉक्स ऑफिस ओपनिंग नहीं दे रहा है, दर्शक बदल रहे हैं, वे वैसे भी फिल्मों की ओटीटी रिलीज का इंतजार कर रहे हैं। निर्माता सुधीर मिश्रा ने कहाकि अगर हम किसी फिल्म के सेट पर जाएं तो क्रू में 50 प्रतिशत महिलाएं होती हैं और आशा हैकि हमारे पास अधिक महिला फिल्म निर्माता होंगी और वे हमारे पुरुषों के दृष्टिकोण को भी सामने रखेंगी।
सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री डॉ एल मुरुगन ने कहाकि फ्रांस एक ऐसा देश है, जहां पुरुषों की तुलना में युवा महिला निर्देशक अधिक हैं, हमारे पास जोया और रीमा और कई अन्य महिला निर्देशक दक्षिण सिनेमा में हैं, हमें अभीभी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन हम आगे बढ़ रहे हैं। विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशक्तिकरण की दिशा में सरकार योगदान दे रही है, इस बारेमें डॉ एल मुरुगन ने कहाकि महिलाएं वास्तव में प्रगति कर रही हैं और सिनेमा में आगे भी प्रगति करती रहेंगी एवं मैं सिनेमा को महिला या पुरुष प्रधान सिनेमा के रूपमें नहीं देखता। डॉ एल मुरुगन ने कहाकि उन्हें लगता हैकि हमारी महिलाएं सिनेमा में एक खूबसूरत जगह बनाने में पहले ही सफल हो चुकी हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नारी शक्ति उभर रही है। उन्होंने यह भी बतायाकि एनएफडीसी ने फिल्म उद्योग में 100 से अधिक महिला रचनाकारों और तकनीशियनों को प्रशिक्षित किया है और 75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ टुमॉरो पहल में इस वर्ष 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं। उन्होंने कहाकि भारत सरकार के पास नारी शक्ति को समर्पित कई योजनाएं हैं।