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Wednesday 24 April 2024 06:30:23 PM
देहरादून। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी देहरादून में भारतीय वन सेवा 2022 बैच के दीक्षांत समारोह में अधिकारी प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा हैकि मानव समाज वनों को विस्मृत करने की भूल कर रहा है, वन जीवनदाता हैं और वास्तविकता यह हैकि वनों ने पृथ्वी पर जीवन को संरक्षित किया हुआ है। राष्ट्रपति ने कहाकि आज हम एंथ्रोपोसीन युग की बात करते हैं, जो मानवकेंद्रित विकास का काल है, इस दौरान विकास केसाथ विनाशकारी परिणाम सामने आए हैं। उन्होंने कहाकि संसाधनों के निरंतर दोहन ने मानवता को एक ऐसे बिंदु पर ला दिया है, जहां विकास के मानकों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। उन्होंने यह समझने के महत्व पर जोर दियाकि हम पृथ्वी के संसाधनों के मालिक नहीं हैं, बल्कि हम ट्रस्टी हैं, हमारी प्राथमिकताएं मानवशास्त्रीय केसाथ पर्यावरण केंद्रित भी होनी चाहिएं। उन्होंने कहाकि केवल पारिस्थितिकीय परिवेश से जुड़ने सेही हम वास्तव में मानवशास्त्रीय हो पाएंगे।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि विश्व के अनेक भागों में वन संसाधनों का बहुत तेजीसे ह्रास हुआ है, वनों का ह्रास एक तरह से मानवता का ह्रास ही है। उन्होंने कहाकि यह एक सर्वविदित तथ्य हैकि पृथ्वी की जैव विविधता और प्राकृतिक सौंदर्य का संरक्षण एक बहुतही महत्वपूर्ण कार्य है, जिसे हमें शीघ्रता से करना है। राष्ट्रपति ने कहाकि वनों और वन्यजीवों के संरक्षण और संवर्धन के माध्यम से मानव जीवन को संकट से बचाया जा सकता है, हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से तेजीसे नुकसान की भरपाई कर सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि उदाहरण केलिए मियावाकी पद्धति को कई स्थानों पर अपनाया जा रहा है, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वनीकरण और क्षेत्र विशिष्ट वृक्ष प्रजातियों केलिए उपयुक्त क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकता है। उन्होंने कहाकि ऐसे विभिन्न विकल्पों का आकलन करने और भारत की भौगोलिक परिस्थितियों केलिए उपयुक्त समाधान विकसित करने की आवश्यकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि विकास के रथ के दो पहिए होते हैं-परंपरा और आधुनिकता। उन्होंने कहाकि मानव समाज आज कई पर्यावरणीय समस्याओं का खामियाजा भुगत रहा है, इसका एक मुख्य कारण एक विशेष प्रकार की आधुनिकता है, जिसका मूल प्रकृति का शोषण है, इस प्रक्रिया में पारंपरिक ज्ञान की उपेक्षा की जाती है।
राष्ट्रपति ने कहाकि आदिवासी समाज ने प्रकृति के शाश्वत नियमों को अपने जीवन का आधार बनाया है, आदिवासी लोग प्रकृति का संरक्षण करते हैं, लेकिन असंतुलित आधुनिकता के आवेग में कुछ लोग आदिवासी समुदाय और उनके सामूहिक ज्ञान को आदिम मानते हैं। राष्ट्रपति ने जिक्र कियाकि जलवायु परिवर्तन में आदिवासी समाज की कोई भूमिका नहीं है, लेकिन इसके दुष्प्रभावों का बोझ उनपर अधिक है। उन्होंने कहाकि सदियों से आदिवासी समाज के संचित ज्ञान के महत्व को समझना और पर्यावरण को बेहतर बनाने केलिए इसका उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहाकि उनका सामूहिक ज्ञान हमें पारिस्थितिक रूपसे टिकाऊ, नैतिक रूपसे वांछनीय और सामाजिक रूपसे उचित मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। उन्होंने कहाकि हमें कई गलत धारणाओं को दूर करना होगा और आदिवासी समाज की संतुलित जीवनशैली के आदर्शों से सीखना होगा, हमें पर्यावरण न्याय की भावना केसाथ बढ़ना है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि 18वीं और 19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने इमारती लकड़ी तथा अन्य वन उत्पादों की मांग बढ़ाई है, इसका सामना करने केलिए नए नियमों, विनियमों और वन उपयोग के तरीकों को अपनाया गया, ऐसे नियमों और विनियमों को लागू करने केलिए भारतीय वन सेवा की पूर्ववर्ती सेवा, इंपीरियल वन सेवा का गठन किया गया था। उन्होंने बतायाकि उस सेवा का अधिदेश जनजातीय समाज और वन सम्पदा की रक्षा करना नहीं था, उनका जनादेश भारत के वन संसाधनों का अधिकतम दोहन करके ब्रिटिश राज के उद्देश्यों को बढ़ावा देना था। ब्रिटिशकाल के दौरान जंगली जानवरों के सामूहिक शिकार का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहाकि जब वह संग्रहालयों का दौरा करती हैं, जहां जानवरों की खाल या कटे हुए सिर दीवारों पर सजे होते हैं तो उन्हें लगता हैकि वे वस्तुएं मानव सभ्यता के पतन की कहानी कह रही हैं। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें विश्वास हैकि भारतीय वन सेवा के अधिकारी औपनिवेशिक मानसिकता और पूर्व शाही वन सेवा के दृष्टिकोण से पूरी तरह मुक्त हो गए हैं। द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि भारतीय वन सेवा के अधिकारियों को न केवल भारत के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन करना है, बल्कि मानवता के हित में पारंपरिक ज्ञान का उपयोग भी करना है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आईएफएस अधिकारियों से कहाकि उन्हें आधुनिकता और परंपरा को समकालीन करके एवं वनवासियों के हितों को बढ़ाकर वन संपदा की रक्षा करनी होगी, जिनका जीवन वनों पर आधारित है, ऐसा करने से वे एक ऐसा योगदान देने में सक्षम होंगे, जो वास्तव में समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल हो। राष्ट्रपति ने कहाकि भारतीय वन सेवा ने देश को अनेक अधिकारी दिए हैं, जिन्होंने पर्यावरण केलिए अद्वितीय कार्य किए हैं, पी श्रीनिवास, संजय कुमार सिंह, एस मणिकंदन जैसे भारतीय वन सेवा के अधिकारियों ने कर्तव्य की पंक्ति में अपने जीवन का बलिदान दिया है। उन्होंने अधिकारी प्रशिक्षुओं से आग्रह कियाकि वे ऐसे अधिकारियों को अपना आदर्श और मार्गदर्शक बनाएं और उनके आदर्शों पर आगे बढ़ें। राष्ट्रपति ने आईएफएस अधिकारियों से आग्रह कियाकि वे जनजातीय लोगों केबीच समय बिताएं और उनका स्नेह एवं विश्वास अर्जित करें। उन्होंने कहाकि उन्हें आदिवासी समाज की अच्छी प्रथाओं से सीखना चाहिए। उन्होंने उनसे अपनी जिम्मेदारियों का स्वामित्व लेने और एक रोल मॉडल बनने का भी आग्रह किया।