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भारत में निर्वाचन प्रणाली का इतिहास और विकास

एसके मेंदीरत्ता

Tuesday 18 February 2014 12:32:01 PM

election commission of india

नई दिल्‍ली। अगस्त 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद स्वतंत्र भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर सही मायनों में प्रतिनिधि सरकार चुनने के लिए आम चुनाव कराने की आवश्यकता पड़ी, इसलिए स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकार के रूप में निर्वाचन आयोग की स्थापना का प्रावधान करने वाले संविधान के अनुच्छेद-324 को 26 नवंबर 1949 को लागू किया गया, जबकि अधिकतर अन्य प्रावधानों को 26 जनवरी 1950 (जब भारत का संविधान लागू हुआ) से प्रभावी बनाया गया। निर्वाचन आयोग का औपचारिक गठन 25 जनवरी 1950 को हुआ यानी, भारत के संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य बनने के ठीक एक दिन पहले। सुकुमार सेन 21 मार्च 1950 को भारत के पहले मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किए गए।
वर्ष 1950 से 16 अक्तूबर 1989 तक आयोग ने एक सदस्य निकाय के रूप में काम किया। सोलह अक्तूबर 1989 से एक जनवरी 1990 तक निर्वाचन आयोग को तीन सदस्यीय निकाय के रूप में परिवर्तित किया गया, लेकिन 1 जनवरी 1990 को इसे फिर एक सदस्य निकाय का रूप दिया गया। निर्वाचन आयोग 1 अक्तूबर 1993 से नियमित रूप से तीन सदस्यीय निकाय के रूप में काम कर रहा है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा दो निर्वाचन आयुक्तों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान वेतन और भत्ते दिये जाते हैं। निर्णय लेने में सभी तीन आयुक्तों की शक्तियां बराबर हैं। किसी विषय पर मतभिन्नता की स्थिति में निर्णय बहुमत से लिया जाता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा अन्य दो निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है।
लोकसभा तथा विधानसभाओं के प्रथम आम चुनाव कराने के उद्देश्य से निर्वाचन आयोग के परामर्श तथा संसद की सहमति से राष्ट्रपति ने परिसीमन का पहला आदेश 13 अगस्त 1951 को जारी किया था। चुनाव कराने के उद्देश्य से वैधानिक ढांचा उपलब्ध कराने के लिए संसद ने 12 मई 1950 को पहला अधिनियम (जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950) पारित किया। इसमें मुख्यतः मतदाता सूचियां तैयार करने का प्रावधान किया गया। दूसरा अधिनियम 17 जुलाई 1951 (जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) पारित किया गया और इसमें संसद के दोनों सदनों तथा प्रत्येक राज्य के लिए विधानसभाओं के निर्वाचन की प्रक्रिया तय करने का प्रावधान हुआ। इन निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदाता सूचियां सभी राज्यों में 15 नवंबर 1951 तक प्रकाशित की गईं। मतदाताओं की कुल संख्या (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) 17,32,13,635 थी, जबकि 1951 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) 35,66,91,760 थी। लोकसभा तथा विधानसभाओं के पहले आम चुनाव अक्तूबर 1951 तथा मार्च 1952 के बीच हुए। कुल 497 सदस्यों वाली पहली लोकसभा 2 अप्रैल 1952 को गठित की गई और 216 सदस्यों वाली पहली राज्यसभा 3 अप्रैल 1952 को गठित हुई।
संसद के दोनों सदनों तथा राज्य विधानसभाओं के गठन के बाद मई 1952 में प्रथम राष्ट्रपति चुनाव हुआ तथा विधि रूप से निर्वाचित पहले राष्ट्रपति ने 13 मई 1952 को पदभार ग्रहण किया। वर्ष 1951-52 में पहले आम चुनाव के समय आयोग ने 14 राजनीतिक दलों को बहु-राज्यीय दलों तथा 39 दलों को क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता दी थी। अभी मान्यता प्राप्त सात राष्ट्रीय दल तथा 40 क्षेत्रीय दल हैं। वर्ष 1951-52 तथा 1957 में पहले तथा दूसरे आम चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग ने मतदान की मतपेटी प्रणाली अपनाई। इस प्रणाली के अंतर्गत प्रत्येक मतदान केंद्र पर एक कमरे में प्रत्येक उम्मीदवार को एक अलग मतपेटी आवंटित की गई तथा मतदाता से केंद्रीयकृत पूर्व मुद्रित मतपत्रों को उनकी पसंद के अनुसार उम्मीदवार की मतपेटी में डालने को कहा गया। सन 1962 मे हुए तीसरे आम चुनाव तथा उससे आगे आयोग ने मतदान की “मुहर प्रणाली” लागू की। इसके अंतर्गत एक पृष्ठ पर चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों के नाम तथा निर्वाचन चिन्ह छपे होते थे, जिस पर मतदाता को रबर स्टैंप से अपनी पसंद के उम्मीदवार के निर्वाचन चिन्ह के निकट तीरनुमा मुहर लगानी होती थी। मुहर लगे सभी मतपत्रों को एक समान मतपेटी में डाल दिया जाता था।
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का उपयोग प्रायोगिक आधार पर आंशिक रुप से 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में किया गया। बाद में 1998 में ईवीएम का व्यापक उपयोग शुरू हुआ। पहली बार 2004 में 14वीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। तब से लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं के चुनाव ईवीएम के इस्तेमाल से हुए हैं। वर्ष 1951-52 से लोकसभा के 15 आम चुनाव तथा विधानसभाओं के 348 आम चुनाव हुए हैं। देश अब 16वें लोकसभा चुनाव के लिए तैयार है।

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