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श्रीलंका में मोदी का कई चुनौतियों से सामना

तमिलनाडु से जाफना तक हैं दोनों की कई समस्याएं

श्रीलंका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जोरदार स्वागत

दिनेश शर्मा

Friday 13 March 2015 07:05:13 AM

pm narendra modi and president maitripala sirisena

कोलंबो/ नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंद महासागर द्वीप के तीन देशों की यात्रा के अंतिम महत्वपूर्ण पड़ाव श्रीलंका की राजधानी में आज सुबह जब पहुंचे तो उनका कोलंबो के भंडारनायके अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से लेकर श्रीलंका के राष्ट्रपति भवन तक जोरदार स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी इस यात्रा में सेशेल्स और मॉरिशस गए और दो दिन की यात्रा पर आज कोलंबो पहुंचे, जहां हवाई अड्डे पर श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने उनकी अगवानी की। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 1987 में श्रीलंका की यात्रा की थी। उसके बाद श्रीलंका की यात्रा करने वाले नरेंद्र मोदी पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं। जनवरी में श्रीलंका की सत्ता संभालने वाले राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना भी पिछले महीने ही अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत आए थे। बहरहाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे और श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना से आज बहुत से लंबित एवं गंभीर मुद्दों पर बातचीत हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं की दृष्टि से देखा जा रहा है। भारत और श्रीलंका के संबंध बेहद संवेदनशील माने जाते हैं, जो एक समय तो खत्म होने के कगार पर पहुंच गए थे। श्रीलंका भारत के लिए एक ऐसा देश है, जिसके समुद्री मार्ग और भारत के तमिलनाडु राज्य से गहरे राजनीतिक और सामाजिक सरोकार हैं, किंतु राजीव गांधी सरकार के श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर वहां शांति सेना भेजने के बाद न तो भारतीय तमिलों से भारत सरकार के संबंध रहे और ना श्रीलंका सरकार से संबंध अच्छे रहे। श्रीलंकाई तमिलों और भारत के तमिलों में लगभग समान रूप से सक्रिय श्रीलंका का सशस्‍त्र अलगाववादी संगठन एलटीटीई भी राजीव गांधी के खिलाफ हो गया। श्रीलंका में तमिल अलगाव के खिलाफ शांति सेना भेजने से सख्त नाराज़ एलटीटीई के नेता वी प्रभाकरन ने तमिलनाडु में एक चुनावी जनसभा में लिट्टे का आत्मघाती दस्ता भेजकर राजीव गांधी की हत्या करवा दी, जिसके कारण दोनों ही देशों को भारी नुकसान और क्षेत्रीय सामाजिक एवं राजनीतिक अस्‍थिरता का लंबे समय तक सामना करना पड़ा है।
बताते चलें कि श्रीलंका के जाफना प्रांत में अपनी सरकार स्‍थापित करने वाले एलटीटीई के प्रमुख वी प्रभाकरन का भी बुरा समय आया, जब उसकी श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की सेना से साहसिक और लंबी मुठभेड़ हुई,जिसमें लिट्टे के न केवल कई शीर्ष कमांडर मारे गए, अपितु श्रीलंका सेना ने वी प्रभाकरन को भी उसके परिवार सहित मौत के घाट उतार दिया। महिंदा राजपक्षे को इसका लाभ मिला और वे दोबारा श्रीलंका के राष्ट्रपति ‌चुन लिए गए। वी प्रभाकरन के मारे जाने के बाद से भारत के राज्य तमिलनाडु में तमिल समुदाय श्रीलंका के विरोध में खड़ा है और श्रीलंका सरकार भी अपने यहां वी प्रभाकरन के तमिल ईलम से सहानुभूति दिखाने वाले का सफाया कर देती है। भारत के कुछ तमिल नहीं चाहते कि भारत सरकार श्रीलंका सरकार से तमिलों के मामले में कोई भी नरमी बरते, लेकिन वी प्रभाकरन युग खत्म हो चुका है और भारत इस समय श्रीलंका से अपने संबंधों को और ज्यादा ठीक करने की कोशिश में है। निचोड़ यह है कि भारत को तमिलनाडु का ध्यान भी रखना है और श्रीलंका से भी बनाकर रखनी है।
भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री मछुवारों का एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर श्रीलंका बहुत सर्तक है और वह भारतीय मछुवारों के श्रीलंका की समुद्री सीमा में प्रवेश के पूरी तरह खिलाफ है। भारत और श्रीलंका एक दूसरे की सुरक्षात्मक जरूरत भी हैं और आज के संदर्भ में ये दोनों देश एक दूसरे के काफी नजदीक आ रहे हैं। भारत में इस बार पूर्ण बहुमत की सरकार है और श्रीलंका, भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार की क्षमता को जानता है और भारत भी समझता है कि हिंद महासागर में शक्ति संतुलन कायम करने की आवश्यकता है, जिसके लिए श्रीलंका की बहुत जरूरत है। यदि आपको याद हो तो ऐसे ही कारण से भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को श्रीलंका में शांति सेना भेजनी पड़ी थ‌ी। उस समय के घटनाक्रम के अनुसार श्रीलंका में तब लिट्टे ने अपनी सशस्त्र शक्ति और तमिलों के संगठित समर्थन से श्रीलंका पर एक तरह से सशस्‍त्र धावा बोल दिया था और इसे रोकने के लिए श्रीलंका सरकार ने भारत से तुरंत सैन्यशक्ति भेजने की गुहार लगाई थी।
भारत के सामने उस समय बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो गई थी। भारत को अपनी सेना श्रीलंका भेजने में तुरंत निर्णय लेना था, क्योंकि देर या भारत के इंकार पर श्रीलंका के सामने पाकिस्तान की मदद लेने का विकल्प खुला था, इसलिए पाकिस्तान को श्रीलंका से दूर रखने के लिए राजीव गांधी सरकार ने श्रीलंका में लिट्टे का सामना करने के लिए भारत से सेना भेजने का फैसला किया, जिसे शांति सेना का नाम दिया गया। राजीव गांधी सरकार के इस फैसले का भारतीय तमिलों में भी भारी विरोध हुआ, मगर शांति सेना श्रीलंका भेजी गई और उसने वहां श्रीलंका के खिलाफ लिट्टे की जंग को आसानी से कुचल दिया। भारतीय शांति सेना का श्रीलंका में लिट्टे ने काफी विरोध किया। भारतीय सेना श्रीलंका से बुला ली गई, किंतु इसमें काफी फजीहत भी हुई। लिट्टे ने भी राजीव गांधी को तमिलनाडु में एक जनसभा में आत्मघाती हमले में मरवाकर श्रीलंका में शांति सेना भेजने का बदला ले लिया।
तबसे अबतक भारत और श्रीलंका के बीच कभी मछुवारों को लेकर और कभी श्रीलंका में तमिलों को लेकर झड़पें और खटपट होती आ रही है। तमिलनाडु में कुछ राजनीतिक लोग वी प्रभाकरन के मारे जाने के बाद श्रीलंका के खिलाफ हैं और उनका यहां तक दबाव है कि भारत, श्रीलंका से अपना नाता खत्म कर ले। इसका एक पक्ष यह भी है कि शेष भारत श्रीलंका के समर्थन में है और वह राजीव गांधी के मारे जाने से तमिल नेताओं के खिलाफ है। दोनों देशों में जातीय गतिरोध भी है और दोनों ही देश दोनों मामले में बातचीत करते हुए कई तरह के संकोच का सहारा लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका प्रस्थान से पूर्व अपने बयान में कहा भी था कि मैं इस यात्रा को हमारे संबंधों के सभी आयामों-राजनीतिक, रणनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा सबसे बढ़कर लोगों से लोगों के बीच संपर्क को और भी मजबूत करने के अवसर के रूप में देखता हूं। भारत को श्रीलंका में तमिलों के लिए अपनी कुछ जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करना है, जिसके लिए नरेंद्र मोदी श्रीलंका के युद्धग्रस्त रहे जाफना प्रांत जाएंगे और वहां जाने वाले वह पहले भारतीय प्रधानमंत्री और ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के बाद दूसरे विदेशी नेता होंगे।
नरेंद्र मोदी जाफना में वहां भारत की मदद से बने घरों को उनके मालिकों को सौपेंगे। जाफना में इस तरह के करीब 20 हजार घर बनाए गए हैं, जो श्रीलंका में भारत की एक महत्वाकांक्षी सहयोग परियोजना बताई जाती है। नरेंद्र मोदी तमिल नेशनल एलायंस और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से भी मिलेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और विदेश सचिव एस जयशंकर भी हैं। प्रधानमंत्री की श्रीलंका यात्रा की तैयारी के सिलसिले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी यहां पहले आ चुकी हैं। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा हिंद महासागर के देशों की सर्वाधिक संवेदनशील और चुनौती भरी है। भारत और श्रीलंका के संबंधों में फिलवक्त मछुवारों का मामला ऐसा है, जिसमें कई पेंच हैं और श्रीलंका अपने देश की सुरक्षा समुद्री हितों के लिए इस मामले पर पीछे हटने को तैयार नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आशा की जा रही है कि वे ऐसा रास्ता निकाल ले जाएंगे, जो तमिलनाडु से जाफना तक कई समस्याएं हल कर सकता हो।

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