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Friday 1 May 2015 04:33:41 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विख्यात इस्लामिक विद्वान एवं शांति कार्यकर्ता मौलाना वहीदुद्दीन खान को अबुधाबी में आयोजित एक समारोह में सैय्यदना इमाम अल हस्सान इब्ने अली शांति सम्मान से नवाज़े जाने पर उन्हें बधाई दी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अबुधाबी में आयोजित एक समारोह में सैय्यदना इमाम अल हस्सान इब्ने अली शांति सम्मान से नवाज़े जाने पर मौलाना वहीदुद्दीन खान को बधाई हो। उन्होंने कहा कि मौलाना वहीदुद्दीन खान के उत्कृष्ट ज्ञान एवं शांति के लिए उनके अथक प्रयासों ने उन्हें सबसे सम्मानित विद्वानों में शुमार कर दिया है और जिनकी प्रशंसा सर्वत्र होती आई है। उन्होंने कहा कि मौलाना की विद्वता और इस्लाम में उनके ज्ञान का कोई सानी नहीं है, उनकी सोच इस्लाम के कल्याण और मानवता की प्रगति के लिए है।
प्रसिद्ध इस्लामी बुद्धिजीवी मौलाना वहीदुद्दीन खान के बारे में- मौलाना वहीदुद्दीन खान की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनके आलेखों और संदेशों में शांति को प्राथमिकता दी जाती है, यही कारण है कि जब अयोध्या में विवादित ढांचे के ध्वस्तीकरण को लेकर पूरे देश में तूफान मचा हुआ था और लगभग सभी मुसलमान नेता गुस्से में तमतमा रहे थे, तब उनका बहुत सुलझा हुआ बयान आया था। उन्होंने कहा था कि हमें अतीत पर आंसू बहाने की बजाय भविष्य की ओर देखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि दु:ख पहुंचाने वाली बातों को भूलने की आदत डालनी चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम के नाम पर सक्रिय संगठन तालिबान का विरोध आम तौर पर अब हो रहा है, लेकिन मौलाना वहीदुद्दीन खान ने 1996 में ही इस संगठन को रद्द कर दिया था और स्पष्ट शब्दों में कहा था कि तालिबान की ओर से जो कुछ हो रहा है, उसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है।
मौलाना वहीदुद्दीन खान ने अपनी किताब द प्रोफिट ऑफ पीस में इस्लाम के वास्तविक संदेश को पेश करने की उत्साहवर्धक कोशिश की है। इसमें साफ कहा गया है कि तालिबान या इस प्रकार के अन्य संगठनों की ओर से जो कुछ किया जा रहा है, उसका इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं है। पैगम्बर-ए-इस्लाम मोहम्मद (स.) शांति का संदेश लेकर आए थे, प्रारंभिक इस्लाम के शब्दकोश में हिंसा शब्द है ही नहीं, बाद में कुछ लोगों ने अपने हित के लिए हिंसा को इस्लाम से जोड़कर उसे इसका हिस्सा बना दिया। मौलाना कहा करते हैं कि हिंसा से दुनिया में इस्लामी शासन लाने की कोशिश खतरनाक है। उन्होंने कुरान और हदीस के हवाले से इस्लाम को शांति का धर्म करार देते हुए कहा है कि मुसलमान वह है, जिसकी ज़ुबान और हाथ से लोग सुरक्षित रहें। आतंकवाद को राजनीतिक इस्लाम का अंग करार देते हुए मौलाना वहीदुद्दीन कहते हैं कि पश्चिम से सत्ता समाप्त होने के बाद एक वर्ग घुटन महसूस करने लगा है और वह वर्ग विशेषकर अरब दुनिया इस दुख को बर्दाश्त न कर सकी और दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। जमालुद्दीन अफ़गानी ने 19वीं शताब्दी में कट्टरपंथी इस्लाम का नज़रिया पेश किया, जिसके बाद इस्लामी आंदोलनों का तांता लग गया।
मौलाना वहीदुद्दीन ने कई जगह उग्र आंदोलनों को गुमराह करने वाला बताते हुए लिखा है कि वास्तविक इस्लामी आंदोलन वही हो सकता है, जिसमें हिंसा का कोई स्थान न हो। पैगम्बर-ए-इस्लाम के शांतिप्रिय होने का उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने लिखा है कि मक्का पर विजय के बाद मोहम्मद साहब ने उन सब लोगों को माफ कर दिया था, जिन्होंने उन्हें और उनके साथियों को काफी दु:ख पहुंचाया था। उनमें वह व्यक्ति भी था, जिसने उनके चाचा हज़रत हमज़ा को शहीद किया था। मौलाना के अनुसार इस्लाम को समझने के लिए कुरान और हदीस पढ़ना चाहिए और उन लोगों पर ध्यान नहीं देना चाहिए जो इस्लाम की बदनामी के जिम्मेदार हैं। उनका कहना है कि पाकिस्तान एक लोकतांत्रिक मुल्क जरूर है, लेकिन उसकी कुछ राजनैतिक नीतियां धर्म आधारित हैं। आज तक वहां जितनी भी हत्याएं हुई हैं, उनके पीछे राजनीतिक कारण कम और धार्मिक कारण ज्यादा रहे हैं, धार्मिक कानून को मानने वाले मुल्कों में तरक्कीपसंद लोगों के लिए अपनी बात कह पाना बहुत मुश्किल होता है। वहां उनके प्रोग्रेसिव सोच को या तो दबा दिया जाता है या लोगों के बीच पहुंचने से पहले ही उनकी हत्या कर दी जाती है, ऐसी हत्याएं पाकिस्तान में ही नहीं होतीं, दुनिया के और भी कई मुल्क हैं, जहां प्रोग्रेसिव सोच के लोगों की हत्याएं होती रहती हैं।
मौलाना वहीदुद्दीन खान का पाकिस्तान के इतिहास पर नज़रिया है कि पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या से पहले जुल्फ़िकार अली भुट्टो, बेनजीर भुट्टो और लियाकत खान जैसे नेताओं की हत्या में कहीं न कहीं धार्मिक कट्टरता शामिल थी। पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून की खिलाफ़त करने वाली पाकिस्तानी ईसाई महिला ओसया बीबी के पक्ष में बोलने के कारण पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या कर दी गई, पाकिस्तान में ओसया बीबी को ईशनिंदा कानून के तहत मौत की सजा सुनाई गई है। उनका कहना है कि ईशनिंदा करने पर इस्लाम में जो मौत की सजा का फ़रमान दिया गया है, वह गलत है और ईशनिंदा कानून भी इस्लाम के खिलाफ़ है। मौलाना कहते हैं कि इस्लामी तारीख के मुताबिक ईशनिंदा कानून पहली बार अब्बासी काल में आया-750 ईसवीं में। दुनिया के कई मुल्कों उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण यूरोप, सिंध और मध्य एशिया में अब्बासी वंश का कब्जा था और अब्बासियों के ही राज में इस्लाम का स्वर्ण युग शुरू हुआ। उनकी सत्ता के गुरूर ने ईशनिंदा जैसे कानून को जन्म दिया, जिसे कुरआन और हदीस दोनों ही इनकार करते हैं। उनका कहना है कि कुरआन या हदीस में कही गई बात को तोड़-मरोड़ कर या गलत व्याख्या कर कोई नया कानून बनाने की इजाजत इस्लाम में नहीं है, इसलिए पाकिस्तान को भी चाहिए कि वह इस कानून को फ़ौरन खत्म करे।