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Monday 19 October 2015 05:55:49 AM
नई दिल्ली। नवरात्र और विजयदशमी के साथ ही हर साल भारतीय पर्वों की एक श्रंखला शुरू हो जाती है। इस त्योहार श्रंखला में सभी के यहां दीपावली की तैयारियां बहुत पहले शुरू हो जाती हैं। उच्चवर्ग से लेकर निम्नवर्ग तक दीपावली में मिट्टी के दीयों का महत्व जगजाहिर है। यह शुभ्रता के प्रतीक माने जाते हैं। हिंदुस्तान में कुम्हारी कला से अपना जीवन-यापन करने वाले कुम्भकारों के लिए दीपावली खास समृद्धि लेकर आती है, क्योंकि इस दौरान सभी त्योहारों में मिट्टी के बर्तनों की बहुत मांग होती है और दीपावली पर तो दीयों से ज्योति जग-मग की जाती है। सामाजिक विकास के साथ यूं तो लोग दीपावली पर प्रकाश के लिए अनेक तरीके अपनाने लगे हैं, इसके बावजूद दीये का अपना महत्व है।
कुम्भकार परिवार एक स्थान पर अपने मकान की छत पर मिट्टी के दीये बनाने में जुटा है, सूख जाने पर इन्हें आवे में लगा दिया जाएगा और ये बाजार में भेज दिए जाएंगे। इस परिवार को आशा है कि सोने-चांदी की बिक्री के बीच उसके दीये भी बिक जाएंगे, जिनसे उसके यहां भी दीवाली होगी। देश में कुम्हारी कला का एक निराशाजनक पक्ष यह है कि कुम्हारों की खदानों पर महल खड़े हो गए हैं और उन्हें मिट्टी के बर्तनों के लिए अब वैसी मिट्टी और खदान नहीं मिल रही है, जो मिट्टी के खूबसूरत बर्तनों के लिए जरूरी है। आबादी क्या बढ़ रही है, उसके अदृश्य दुष्परिणामों की यह भी एक बानगी है। देशवासियों ने कुछ परंपराओं से मुंह मोड़ लिया है और वे इस तथ्य को भूल गए हैं कि हमारे देश के तीज त्योहार यदि उनकी खुशी के लिए हैं तो उनपर अनेक लोगों का जीवन-यापन भी निर्भर है।