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Saturday 5 December 2015 05:23:02 AM
लखनऊ। सोना, हीरे, मोती और मानव जीवन के भरण-पोषण के लिए अन्न पैदा करने वाली धरती भी आज गंभीररूप से बीमार है। देश के मृदा विज्ञानियों ने चेतावनी दी है कि मानव जिस प्रकार धरती के साथ उसके अनियमित दोहन का व्यवहार कर रहा है, उसे देखते हुए एक दिन धरती पोषणतत्वों का विकास और अन्न की पैदावार से हाथ खड़े कर देगी। कहें तो आदमी ही धरती का सबसे बड़ा शत्रु बनकर उभर रहा है। बहरहाल भारत सरकार की अति महत्वाकांक्षी 'राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना' की शुरूआत केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय भारत सरकार ने फरवरी 2015 में की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि देशभर में किसानों के खेतों की मिट्टी की जांचकर मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर किसानों को वितरित किया जाए। इस योजना के अंतर्गत आज भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ में विश्व मृदा दिवस का आयोजन किया गया। इस अवसर पर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के 300 किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए।
विश्व मृदा दिवस कार्यक्रम में चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर के पूर्व प्राध्यापक एवं मृदा विभाग के अध्यक्ष डॉ केएन तिवारी मुख्य अतिथि थे, जिन्होंने किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड देते हुए कहा कि मृदा स्वास्थ्य में सुधार लाना कृषि उत्पादन में टिकाऊ वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए भी अति महत्वपूर्ण है। संस्थान के निदेशक डॉ एडी पाठक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि मिट्टी सदियों से बिना आराम किए अपने उर्वरा गुण फसल को प्रदान करते हुए मानव समुदाय के लिए अन्न तथा अन्य खाद्य पदार्थों का उत्पादन करती रही है, मानव अपने स्वार्थ के लिए मिट्टी का दोहन सैकड़ों वर्ष से करते आया है, जिस कारण आज हमारी मिट्टी बीमार हो गई है, अब समय आ गया है कि हम मृदा की खराब होती उर्वरा एवं स्वास्थ्य पर गंभीर हो जाएं तथा इसमें सुधार के लिए आवश्यक उपाय किए जाएं।
डॉ एडी पाठक ने कहा कि मृदा की उर्वरता में लगातार कमी हो रही है तथा कुछ क्षेत्रों में तो मृदा में कार्बन की मात्रा निम्न स्तर (0.25%) तक पहुंच गई है, जो गन्ना उत्पादन के साथ अन्य फसलों की उत्पादकता के लिए बिल्कुल निराशाजनक स्थिति है। इस अवसर पर एक कृषक गोष्ठी का आयोजन भी किया गया, जिसमें प्रधान वैज्ञानिक डॉ टीके श्रीवास्तव ने मिट्टी जांच कराने की आवश्यकता तथा मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्वों के आधार पर फसल का चुनाव करना एवं उर्वरकों के प्रयोग करने की महत्ता पर तकनीकी जानकारी कृषकों को दी। संस्थान के प्रसार एवं प्रशिक्षण प्रभारी डॉ एके साह ने बताया कि इस वर्ष संस्थान ने 600 किसानों के खेतों की मिट्टी नमूना एकत्रित कर जांच के उपरांत उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये हैं। उन्होंने कृषकों को रासायनिक उर्वरकों के साथ कार्बनिक पदार्थ, जैविक खाद, हरी खाद, फसल अवशेषों को खेतों में प्रयोग करने के लिए जागरूक किए जाने लिए युद्ध स्तर पर कार्यक्रम चलाए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
विश्व मृदा दिवस कार्यक्रम में स्वास्थ्य गन्ना बीज उत्पादन तथा पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण अधिनियम 2001 पर जागरूकता कार्यक्रम का भी आयोजन हुआ, जिसमें डॉ जे सिंह एवं डॉ पीके सिंह ने जानकारी दी। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ केपी सिंह, प्रभारी केवीके ने किसानों को संबोधित किया। मृदा वैज्ञानिक डॉ राम रतन वर्मा, डॉ राकेश सिंह, डॉ दीक्षा जोशी तथा डॉ विनीका सिंह का कार्यक्रम में महत्वपूर्ण योगदान रहा। राष्ट्रीय मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के महत्वपूर्ण बिंदुओं में अगले तीन वर्ष में 14 करोड़ किसानों के खेतों की मिट्टी जांच कर मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलब्ध कराना, उर्वरकों के अनियंत्रित प्रयोग को रोकने के लिए किसानों को जागरूक करना, मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व के आधार पर उर्वरक के प्रयोग के लिए कृषकों को जागरूक करना, मृदा अम्लीयता, लवणीयता एवं क्षारीयता की पहचान एवं सुधार हेतु प्रयास करना शामिल है। ज्ञातव्य है कि मृदा स्वास्थ्य के आधार पर समेकित पोषक प्रबंधन तकनीक तथा गन्ना उत्पादन तकनीकों को किसानों तक ज्यादा से ज्यादा संख्या में पहुंचाने के लिए संस्थान निरंतर प्रयास कर रहा है।