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सनसनीखेज़ पुस्तकों के विमोचन का चलन

उपराष्ट्रपति ने किया बरखा दत्त की पुस्तक का विमोचन

पुस्तकों की आड़ में हो रही गंभीर निशानेबाज़ी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 11 December 2015 12:41:31 AM

hamid ansari releasing the book written by ms. barkha dutt

नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने पत्रकार बरखा दत्त की पुस्तक दिस अनक्विट लैंड-स्टोरीज फ्रॉम इंडियाज फॉल्टलाइन का अनावरण किया और संविधान की संवैधानिक मंशा की अनदेखी के खिलाफ चेतावनी दी। आज के हमारे राजनीतिक संभाषण के रुझान पर लेखिका की टिप्पणियों को उपराष्ट्रपति ने उल्लेखित किया, जिसमें लेखिका ने विचार रखा है कि संसदीय लोकतंत्र संसदीय स्टूडियो एवं सोशल मीडिया की विभिन्न अभिव्यक्तियों के माध्यम से ‘श्रोता लोकतंत्र’ में तब्दील हो गया है। कहा जा रहा है कि पुस्तक में ऐसे कोई तथ्य या गंभीर विचार नहीं प्रतीत नहीं होते हैं, जिनपर उपराष्ट्रपति को ऐसी टिप्पणी करनी पड़े, क्योंकि पुस्तक की लेखिका भी अपने आपमें एक विवादास्पद मानी जाती हैं और पेशेवर पत्रकारिता में उनपर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। यह भी कहा जा रहा है कि सनसनीखेज़ पुस्तकें लिखने और उनके विमोचन का चलन बढ़ गया है, जिनकी आड़ में निशानेबाज़ी हो रही है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि रामचंद्र गुहा ने भी लिखा था कि हमारा लोकतंत्र अब केवल चुनावी पहलू तक ही सीमित हो गया है। उन्होंने कहा कि दोनों के खतरे स्पष्ट हैं, दोनों का झुकाव संकेतवाद, बड़प्पन और त्रुटियों की तरफ है। दोनों विधान, सार्थक जवाबदेही और सार्वजनिक चिंता के मुद्दों की जांच की संवैधानिक मंशा की अनदेखी करते हैं और इस प्रलोभन से निश्चित रूप से बचा जाना चाहिए। पत्रकार बरखा दत्त ने पुस्तक में ‌निजता के जो रहस्योद्घाटन किए हैं, उनकी आज क्या प्रासंगिकता है, इस पर एक प्रश्न है। लगता है लेखिका ने पुस्तक को सनसनीखेज़ बनाने की कोशिश की है, जिसे शायद ही स्वीकार किया जाए।
ज्ञातव्य है कि हाल के वर्षों में बरखा दत्त की पेशेवर पत्रकारिता पर काफी उंगलियां उठी हैं और जो उनसे जुड़े विवाद और तथ्य सामने आए हैं, उनके कारण बरखा दत्त को लोकापवाद और निंदाओं का सामना करना पड़ा है। बरखा दत्त की पेशेवर पत्रकारिता में निष्पक्षता और ईमानदारी पर लोगों का भरोसा टूटा है और अब वह यह साबित करने की कोशिश कर रही हैं कि इनकी प्रासंगिकता और उपयोगिता बनी हुई है। उनकी किताब का फौरी तौर पर विश्लेषण करने से यह सार सामने आता है कि इस किताब में ऐसा कुछ नहीं है, जो दूसरों के लिए प्रेरणा और उपयोग‌ी हो। उपराष्ट्रपति ने पुस्तक में जो भी पढ़ा हो देखा हो किंतु यह विवाद भी पैदा हुआ है कि पुस्तकों के विमोचन में अब स्तर एवं गुण-दोष की उपेक्षा होने लगी है।

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