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Saturday 26 December 2015 05:51:14 AM
नई दिल्ली। भारतीय भाषाओं के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में भारतीय भाषाओं में एकजुटता की कोशिश की है। भारतीय भाषाओं की चिंताजनक स्थिति, दशा एवं दिशा पर देश भर में गंभीर चिंतन एवं चर्चा के बाद विभिन्न भारतीय भाषाओं के विद्वानों, बुद्धिजीवियों की ओर से यह सुझाव आया कि इस क्षेत्र में व्यापक सुधारों को वास्तविक रूप प्रदान करने के समन्वित प्रयास के रूप में एक मंच का गठन किया जाए, जिसके क्रम में 20 दिसंबर को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् आज़ाद भवन नई दिल्ली के प्रेक्षागृह में 15 राज्यों से आए 17 भाषाओं के प्रतिनिधियों ने भारतीय भाषा मंच का औपचारिक गठन किया है।
भारतीय भाषा मंच के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार निश्चित किए गए हैं-भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थिति तथा उसमें सुधार के उपाय, भारतीय भाषाओं को संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार अपेक्षित स्थान पर प्रतिष्ठापित कराना तथा उसे रोज़गार से जोड़ना, केंद्र सरकार में हिंदी और राज्यों में उनकी राजभाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए अभियान चलाना एवं जन-जागरण करना, भारतीय भाषाओं के लिए काम करने वाले सभी व्यक्तियों भाषा-प्रेमियों और संस्थाओं को एक मंच पर लाना तथा उनके मध्य सौहार्द एवं समन्यव स्थापित करना, केंद्र और राज्यों की राजभाषा नीति और नियमों के अनुसार सरकारी काम-काज में हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग किये जाने के लिए सरकारों से आग्रह करना व आवश्यकता पड़ने पर दबाब बनाना, राजभाषा अधिनियमों और नियमों को कड़ाई से लागू कराना, प्राथमिक माध्यमिक उच्चशिक्षा में चिकित्सा और तकनीकी सहित सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएं हों इस दिशा में प्रयास करना, छोटी-बड़ी सभी प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाओं का माध्यम हिंदी और भारतीय भाषाओं को बनवाना एवं अंग्रेजी के अनिवार्य प्रश्नपत्र को हटवाना, विधि न्याय और प्रशासन सूचना प्रोद्योगिकी ( ई-गवर्नेंस) डिज़िटल इंडिया और ऑनलाइन सेवा आदि उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ाना और बढ़वाना, उच्चतम न्यायालय में हिन्दी और उच्च न्यायालयों में राज्य की राजभाषाओं के प्रयोग की अनुमति दिए जाने हेतु प्रयास करना और भारतीय भाषाओं से संबंधित उन सभी बिंदुओं पर विचार जो भारतीय भाषाओं के सम्वर्धन के लिए आवश्यक हैं।
भारतीय भाषा मंच के नवनियुक्त राष्ट्रीय संयोजक वृषभ जैन ने भारतीय भाषाओं की स्थिति एवं भाषा मंच की संकल्पना का परिचय देते हुए बताया कि भारतीय भाषाओं पर काम करने वाली देश में अनेक संस्थाएं हैं, अब एक और नर्इ संस्था के रूप में एक नए भारतीय भाषा मंच की जरूरत क्यों पड़ी? इस प्रश्न के उत्तर में बात आई कि हमारी सभी भारतीय भाषाएं हमारी पहचान हैं और वह पहचान निरंतर तिरोहित होती जा रही है। उनका स्थान दोयम से, तीसरे और चौथे पर पहुंचता जा रहा है। यह न भाषाओं के हित में है और न भाषा-प्रयोक्ताओं के हित में। भाषाओं का निरंतर क्षरण हो रहा है, प्रतिदिन हमारे शब्द कम होते जा रहे हैं, भारतीय भाषाओं को लेकर कुछ-कुछ आंदोलन पहले भी हुए, परंतु वे कुछ-कुछ भाषाओं के संदर्भ में ही हुए। सभी भाषाओं के लिए ऐसा कोर्इ एक मंच नहीं दिखता, जो समस्त भारतीय भाषाओं के सभी पक्षों की चिंता करता हो। सभी भारतीय भाषाएं हमारी राष्ट्रीय भाषाएं हैं, अखंड भारत की एक संस्कृति की भाषाएं हैं, इन सबको समृद्ध करने के लिए सरकारी और सामाजिक दोनों स्तरों पर हमें काम करने की आवश्यकता है, इसलिए भारतीय भाषा मंच की जरूरत महसूस हुई।
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान के निदेशक चंद्रभूषण शर्मा ने त्रिभाषा सूत्र, विद्यालयी शिक्षा में भाषाओं के महत्व, संस्कृत की स्थिति एवं उपादेयता आदि विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला। इनके बाद तमिलनाडु से पधारे पेरूमल ने भाषाओं के समेकन पर प्रकाश डाला तथा समझाया कि भारतीय भाषाओं में परस्पर विरोध नहीं, वरन एकत्व का भाव है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति कुठियाला ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार विदेशों में मातृभाषा पर ही जोर दिए जाने से वे देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो पाए, जबकि हमारे देश में अपनी भाषा के प्रति पूर्वाग्रह ने विकास को अवरुद्ध कर दिया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य सचिव पंकज मित्तल ने बताया कि किस प्रकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारतीय भाषाओं के विकास के लिए नवीन पहल की है। केरल से आए विनोद ने लोगों से भाषायी आंदोलन खड़ा करने की अपील की।
भारतीय भाषा मंच के संरक्षक एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष अतुल कोठारी ने इस बात को समझाया कि देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना होगा और यदि शिक्षा को बदलना है तो भाषा को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि चर्चा समस्या की नहीं बल्कि समाधान की होनी चाहिए, जिसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी, प्रयास व्यक्तिगत रूप से होते हुए व्यापक सामाजिक जन-जागरण का होना चाहिए। अंग्रेजी के मिथक को तोड़ने के लिए वैकल्पिक तैयारी करनी होगी जैसे-स्वदेशी पुस्तकों का लेखन, कानूनी संघर्ष प्रशासनिक क्षेत्र में निजी व सामूहिक प्रयास स्वदेशी भाषाओं का प्रोत्साहन। उन्होंने यह संकल्प लेने को कहा कि सभी अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते हुए भाषा मंच आंदोलन को सार्थक बनाएं। कार्यक्रम में पधारे सभी भाषाओं के प्रतिनिधियों ने विचार रखे। बैठक में बताया गया कि भारत के विभिन्न राज्यों में भाषा मंच की विभिन्न इकाइयां गठित की जाएंगी, यह मंच पूरी तरह स्वायत्त रहेगा और इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि इसमें कोर्इ भी राजनीति प्रवेश न करे।