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दलितों के समाज कल्याण में 'रेड वायरस'

अखिलेश सरकार क्या वास्तव में दलित विरोधी है?

प्रमुख सचिव की कार्यप्रणाली से दलितों में निराशा

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 15 February 2016 02:22:04 AM

sunil kumar ias

लखनऊ। समाजवादी पार्टी सरकार में समाज कल्याण विभाग ने इन चार साल में उन समुदायों के कल्याण के लिए क्या अनुकरणीय कार्य किए हैं, जो अपने जीवन यापन की कठिन और असहाय अवस्था का सामना कर रहे हैं या शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उस पर पूरी तरह निर्भर हैं? इसका आकलन बेहद निराशाजनक स्थिति में है। समाज कल्याण विभाग ने जनकल्याण के मूल उत्तरदायित्व की उपेक्षा करके अपने को कम्प्यूटर तकनीक से जोड़ने और उसके बाद अपने यहां भ्रष्टाचार का पता लगाने, विभाग में संचालित अनेक कल्याणकारी योजनाएं एवं अनुदान रोकने और अब दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों के निराश्रित एवं निर्बल वर्ग के बच्चों के लिए समाज कल्याण विभाग में आश्रम पद्धति पर संचालित स्कूलों को 'नवोदय विद्यालय' जैसा रूप देने के नामपर उनमें प्राथमिक शिक्षा बंद करने, विद्यालयों के संविदा शिक्षकों और सहकर्मियों को सड़क पर लाने जैसे ही काम किए हैं। गौर कीजिएगा कि सरकार के इस बड़े विभाग में निदेशक जैसा अत्यंत महत्वपूर्ण पद करीब डेढ़ महीने खाली पड़ा रहा। इस तरह पहले से ही दलित विरोधी होने का दंश झेल रही अखिलेश यादव सरकार को वाकई में दलित विरोधी साबित कर दिया गया है, जिससे दलित विरोधी मानसिकता का आरोप लगाकर बसपा अध्यक्ष मायावती और भारतीय जनता पार्टी ने सरकार को निशाने पर लिया हुआ है और इससे परेशान राज्य के समाज कल्याण मंत्री रामगोविंद चौधरी का दलित विरोधी आरोपों पर सफाई देने का ही काम रह गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार के अरबों रुपए के बंदरबाट की कहानियों और किस्सों से भरे अनेक सरकारी विभागों की यूं तो समान ही स्थिति है, लेकिन समाज कल्याण विभाग जैसी दुर्दशा शायद ही किसी विभाग की हो। पुलिस, ‌शिक्षा और चिकित्सा जैसे विभागों की तरह सरकार की छवि और उसकी लोकप्रियता से जुड़ा यह बड़े बजट का विभाग है और इसका समाज के निर्बल वर्गों, ‌दलितों, उपेक्षितों और निराश्रितों की सहायता से सीधा संबंध है। इन समुदायों के प्रति सरकार की क्या नीति है और उनके कल्याण से जुड़ी योजनाओं को उनतक पहुंचाने की कैसी निष्पादन प्रणाली है, इसकी जवाबदेही जिला समाज कल्याण अधिकारी से लेकर प्रमुख सचिव और फिर विभागीय मंत्री तक की है। यह दुर्भाग्य ही है कि जिस विभाग की कार्यप्रणाली और कार्य निष्पादन की मुख्यमंत्री को भी सतत् समीक्षा करनी चाहिए थी, वह विभाग केवल एक प्रमुख सचिव की मनमानी पर छोड़ दिया गया? विभाग में क्या हो रहा है, उसकी योजनाओं और कार्यक्रमों के अनुश्रवण, उसमें अनियमितताओं और कदाचार के लिए सर्व प्रथम तो प्रमुख सचिव ही जवाबदेह माने जाते हैं। समाज कल्याण विभाग में जो भी भ्रष्टाचार है, उसमें संलिप्त या उसपर नियंत्रण पाने में नाकाम रहे कितने अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई हुई है या उसके लिए कितने प्रमुख सचिवों या निदेशकों को जिम्मेदार ठहराया गया? यह प्रश्न इसलिए बार-बार आ रहा है, क्योंकि उत्तर प्रदेश का समाज कल्याण विभाग क्या उससे जुड़े समुदायों के कल्याण के लिए है या उन्हें सरकार के विरोध में खड़ा करने के लिए है? एक लोकप्रिय सरकार ने समाज कल्याण के लिए जो योजनाएं बनाई हुई हैं, वे पात्र समुदायों तक पहुंचने में कैसे विफल रहीं और उन्हें भ्रष्टाचार से बचाने के कड़े उपाय करते हुए आगे सफलता से जारी रखने के लिए क्या किया गया? इसकी योजना कहां है? भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करते हुए कितनों के खिलाफ मुकद्में दर्ज़ कराए गए? कितनों ये सरकारी कोष की क्षतिपूर्ति के लिए वसूली हुई‍? इसका जवाब किनके पास है? और क्या मंत्री, मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव भी इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार हैं?
सपा सरकार में समाज कल्याण विभाग के मंत्री अवधेश प्रसाद हुआ करते थे। वो इससे पहले की भी सपा सरकार में विभागीय मंत्री रह चुके हैं, लेकिन इस सरकार में साढ़े तीन साल बाद जब अखिलेश यादव मंत्रिमंडल में बदलाव हुआ तो वरिष्ठ मंत्री रामगोविंद चौधरी को यह विभाग दे दिया गया है, जबकि समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुमार ही बनाए रखे गए हैं। जाहिर है कि सुनील कुमार को समाज कल्याण विभाग में अपनी योग्यता, दक्षता और श्रेष्ठ कार्यप्रणाली साबित करने लिए पूरा वक्त ‌मिला है, इसलिए उनसे संतोषजनक जवाब की अपेक्षा है, कि क्या वे अपनी जिम्मेदारियों का सही निर्वहन कर पाए हैं और यदि कर पाए हैं तो जिम्मेदारी का यही निर्वहन है कि अंधेर नगरी चौपट राज? समाज कल्याण विभाग, सरकार की कल्याण योजनाओं और सहायता कार्यक्रमों को इससे जुड़े समुदायों के पात्र लोगों तक पहुंचाने में क्यों विफल रहा है? सवाल है कि विभाग के प्रमुख सचिव के रूप में सुनील कुमार तबसे क्या भ्रष्टाचार ही खोज र‌हे हैं? यह सही है कि उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग में भ्रष्टाचार मचा है, किंतु इस कारण क्या उसकी कई कल्याण योजनाएं रोक दी जाएंगी? आज हालत यह हो गई है कि समाज कल्याण विभाग इस समय 'रेड वायरस' (कुछ भी मत करो) की गिरफ्त में है। भ्रष्टाचार को रोकने के नाम पर दलितों के कल्याण की अधिकांश योजनाएं ठप चल रही हैं। सहायता के पात्र लोग भटक रहे हैं। विभाग की फाइलें वित्त विभाग में इधर-उधर धक्के खा रही हैं। वास्तव में समाज कल्याण विभाग में कई मसीहाई मंत्री, सचिव और प्रमुख सचिव आए, लेकिन अधिकांशतः दलितों, निराश्रितों, कमजोर और पिछड़ों के कल्याण की भारी बजट की योजनाओं में लूटमार-भ्रष्टाचार, राजनीति-गुटबाज़ी, तबादले और नियुक्तियां करते ही देखे गए हैं।
अखिलेश यादव सरकार पर 'समाजवादी सरकार' तंज कसकर कहा जा रहा है कि यह दलित विरोधी सरकार है और इसके प्रमाण में उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग में दलित विरोधी कार्यप्रणाली सिद्ध करने के लिए अनेक फैसलों का जिक्र किया जा रहा है, जिनके विभाग से जुड़े समुदायों में भारी गुस्सा है और अनेक समुदाय सरकारी योजनाओं में 'रेड वायरस' के कारण उनसे अलग-थलग पड़ गए हैं। कहा जा रहा है कि समाज कल्याण विभाग में दलित विरोधी मानसिकता के कुछ प्रमुख लोगों के कारण दलितों की उपेक्षा हो रही है, समाज कल्याण विभाग में दलितों के खिलाफ सुनियोजित अभियान चल रहा है, जिसका आशय यह भी हो सकता है कि सरकार को दलितों के विरुद्ध घोषित कर दिया जाए या इस विभाग के विभागाध्यक्ष या संबंधित अधिकारी दलित विरोधी मानसिकता के हैं। कहा तो यहां तक कहा जा रहा है कि समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुमार भी दलित विरोधी मानसिकता के अधिकारी हैं, उनकी कार्यप्रणाली यह सिद्ध भी कर रही है। समाज ‌कल्याण विभाग में दलितों के मानदेय, छात्रवृत्ति जैसे कल्याण कार्यक्रमों की फाइलों की रफ्तार बहुत ही धीमी है, इसलिए अखिलेश सरकार चाहे जितनी भी सफाई दे, किंतु वह दलित विरोधी होने के दंश से मुक्त होने वाली नहीं है। जब इस गंभीर आरोप की पु‌ष्टि के लिए दलितों के ही कल्याण से जुड़ी विभाग की पत्रावलियां धक्के खा रही हों तो फिर किस प्रमाण की जरूरत है? समाज कल्याण विभाग में संचालित विद्यालयों को अनुदान सूची में लिए जाने का मामला बड़ा ज्चलंत है। मंत्रिपरिषद की अनुदान टिप्पणी वित्त विभाग को उसके अनुमोदन हेतु भेजी गई है, कहते हैं कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और समाज कल्याण विभाग के नए मंत्री रामगोविंद चौधरी दलितों में सरकार के प्रति सही संदेश जाने के लिए इस पर प्राथमिकता से कार्रवाई चाहते हैं किंतु समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव सुनील कुमार इसके विरुद्ध माने जाते हैं, इसलिए यह मामला वित्त विभाग में अनुमोदन के लिए लंबित बताया जाता है।
आश्रम पद्धति के आवासीय विद्यालयों की परिकल्पना बहुत पुरानी है। इन विद्यालयों में ग्रामीण क्षेत्रों के निर्बल और असहाय वर्गों के बच्चे कक्षा एक से कक्षा बारह तक शिक्षा ग्रहण करते आ रहे हैं। इन विद्यालयों में साठ प्रतिशत अनुसूचित जाति के बच्चे, पच्चीस प्रतिशत पिछड़े वर्ग के बच्चे एवं पंद्रह प्रतिशत गरीब और अन्य जाति के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। कहते हैं कि मुख्यमंत्री और विभागीय मंत्री को सही जानकारी दिए बिना आश्रम पद्धति के स्कूलों में कक्षा एक से पांच तक की पढ़ाई बंद करा दी गई और इन स्कूलों को नवोदय विद्यालयों की तरह विकसित करने का निर्णय ले लिया गया। इस निर्णय से आश्रम पद्धति के विद्यालयों की मूल भावना ही खत्म हो गई। भारत के जिन बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए यूनीसेफ से लेकर स्वयंसेवी संस्‍थाएं प्रदेश के दूर-दराज के क्षेत्रों में काम कर रही हैं, उन बच्चों के लिए सरकार के आश्रम पद्धति के स्कूल ही न रहें तो वे बच्चे कैसे प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे? क्या नवोदय विद्यालयों का स्वरूप देकर उन बच्चों को शिक्षा मिल जाएगी? इन स्कूलों में संविदा पर अध्यापक और सहकर्मचारी चले आ रहे हैं, तो उनकी जगह नई भर्ती का क्या औचित्य है? आश्रम के बच्चों और अध्यापकों के लिए क्या व्यवस्‍था की गई है? उत्तर प्रदेश के संसदीय कार्य एवं नगर विकास मंत्री मोहम्मद आज़म खां ने इस मामले को मुख्यमंत्री के सामने रखा। विधानसभा में भी मुख्यमंत्री की मौजूदगी में राज्यपाल के अभिभाषण पर बोलते हुए नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसका जिक्र किया। उन्होंने निर्बल वर्ग के बच्चों की प्राइमरी शिक्षा जारी रखने और उनसे संबंधित संविदा शिक्षकों को अन्यों की तरह नियमित किए जाने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने इस मामले को ध्यान से सुना और प्राइमरी शिक्षाओं को बंद नहीं किए जाने पर सहमति जताई। इसके बावजूद क्या प्रमुख सचिव चाहते हैं कि उनकी ही कार्यप्रणाली को समाजवादी पार्टी के ऐजंडा माना जाए, जो सपा सरकार की मंशा के विरुद्ध है।
समाज कल्याण मंत्री रामगोविंद चौधरी को अपनी गहरी चिंताओं के साथ अनेक विधायकों ने पत्र लिखा है कि आश्रम पद्धति स्कूलों की मौजूदा व्यवस्‍था से कोई छेड़छाड़ न की जाए और संविदा अध्यापकों के साथ सरकार उदारता दिखाए। इनकी उपेक्षा करके दूसरे अध्यापकों को रखने की कवायद शुरू करने के पीछे सरकार का क्या आशय है? ध्यान रहे कि अनुसूचित जाति-जनजाति के विद्यालयों को अनुदान पर लेने की प्रक्रिया सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने शुरू की थी और उन्होंने अपने चुनाव के समय में इस समाज के लोगों से वादा किया था कि वे उनके बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा का विशेष ध्यान रखते हुए उनके विद्यालयों को अनुदान सूची में भी लेंगे, लेकिन उनके सं‌कल्प को उड़ा दिया गया है। अनुसूचित जाति-जनजाति के बच्चों की शादी और बीमारी के लिए दिए जाने वाले धन की योजना भी बंद है। इस धन को बचाने का क्या यही उद्देश्य है कि धन बचाया जाए और सरकार को बताया जाए कि धन की बचत की गई है? इससे सहायता के उद्देश्य की प्रतिपूर्ति हुई? छात्रवृत्ति और फीस प्रतिपूर्ति के जो पात्र थे उनको क्या सहायता जारी है और यदि नहीं तो क्या विभाग में घोटाले ही पकड़े जा रहे हैं? सुनने में आया है कि मामूली और तकनीकी त्रुटियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया है, जिससे अधिकांश बच्चे सहायता से वंचित रह गए हैं। इसमें सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि विभागीय प्रमुख सचिव होने के नाते सुनील कुमार ढाई साल में केवल घोटाला ही पकड़ पाए? आश्रम पद्धति के प्राइमरी स्कूल बंद करा पाए और इसके अलावा उन्होंने क्या किया है?
उप्र में नौकरशाहों की कार्य संस्कृति का यह दुर्भाग्य रहा है कि वह कुछ अपवादों को छोड़कर अपनी मर्जी से ही चली है, जैसा समाज कल्याण विभाग में हो रहा है। यह अलग बात है कि मायावती जैसी राजनेता ने काफी हद तक इसे अपने राजनीतिक ऐजंडे पर चलने को विवश किए रखा। आमतौर पर यहां तीन प्रकार के नौकरशाह चिन्‍हित किए गए हैं। एक वो जो ईमानदारी के नाम पर न तो खुद काम करते हैं और न दूसरों को काम करने देते हैं, किंतु महत्वपूर्ण पदों पर बने रहने की अपेक्षाएं पूरी रखते हैं। इनमें वो भी हैं, जो दिनभर एक दूसरे नौकरशाह की फाइलों की फोटो कॉपियां कराकर इधर-उधर भेजने का ही काम करते हैं, मगर सबके प्रिय बने रहने की महारथ हांसिल किए हैं। दूसरे वो हैं जो वही काम करते हैं और करने देते हैं, जिनमें उनकी पूरी दिलचस्पी और सहमति होती है। तीसरे वो हैं जो काम करना चाहते हैं, लेकिन इन्हीं के संवर्ग ने उन्हें जांचों से इतना डरा दिया है कि उनका कार्य संस्कृति का मनोबल ही जाता रहा है। आज उनकी संख्या ज्यादा है, वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने में भय और संकोच करते हैं, इसलिए आप ही तय करें कि आज राज्य की नौकरशाही कहां खड़ी है और समाज कल्याण जैसे अनेक विभाग किस प्रकार चलाए जा रहे हैं?

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