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चिदंबरम, सोनिया के लिए ज़हर बनी इशरत

कांग्रेस और कई नौकरशाहों ने देश को किया गुमराह

राजनीतिक बदले लेने के लिए राष्ट्र से भी द्रोह?

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 3 March 2016 04:51:41 AM

encounter dangerous terrorist ishrat jahan

नई दिल्ली। गुजरात पुलिस के साथ 2004 में अहमदाबाद में मुठभेड़ में मारी गई खतरनाक आतंकवादी इशरत जहां पर अपना प्रथम हलफनामा बदलने वाले कांग्रेस गठबंधन सरकार में गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम की आज देशभर में थू-थू हो रही है। यही नहीं, पी चिदंबरम का एक और शर्मनाक भ्रष्टाचार देश के सामने आया है, जिसमें उन्होंने देश के वित्तमंत्री पद पर रहते हुए वित्तमंत्री की शक्तियों का अपने पुत्र कीर्ति चिदंबरम के लिए दुरूपयोग करते हुए उसको अनैतिक आर्थिक लाभ पहुंचाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से डरे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी भले ही पी चिदंबरम के बचाव में शोर मचा रहे हों, किंतु आतंकवादी इशरत जहां की सच्चाई ने इन दोनों को भी हिलाकर रख दिया है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी जान रहे हैं कि आतंकवादी इशरत जहां की आड़ में उन्होंने जो राजनीतिक रोटियां सेंकी हैं, वे उनके लिए घातक ज़हर बनने जा रही हैं, क्योंकि इस देश की जनता अब यह मान चुकी है कि इशरत जहां एक आतंकवादी थी, जिसका मारा जाना देश हित में है और उसकी आड़ में कांग्रेसी नेता भाजपा नेताओं के खिलाफ साजिश दर साजिश रचते आ रहे थे। देश यह भी मान रहा है कि इस आतंकवादी के कारण कई बड़े अफसरों का करियर चौपट हो गया, जिसकी कीमत न पी चिदंबरम, सरदार मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल गांधी और न कोई कोर्ट चुका सकता है।
गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अहमदाबाद में आत्मघाती बम से उड़ा देने की योजना को अंजाम देने की फिराक में अपने आतंकवादी साथियों सहित मुठभेड़ में मारी गई इशरत जहां के आतंकवादी सच ने दिल्ली में कांग्रेस सरकार में ऊंचे पदों पर बैठे उस समय के नौकरशाहों को भी बेनकाब किया है, जो गृहमंत्री पी चिदंबरम या किसी भी नेता और संगठन के दबाव में नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों को मरवाने या हत्या के मुकद्में में फंसाने की साजिश में शामिल रहे। भारतीय राजनीति को लाक्षागृह बनाने वाले इन लोगों ने देश की जनता के प्रशासनिक और संवैधानिक भरोसे को तार-तार किया है। आज देश इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी कर ऐसे साजिशकर्ताओं को न्याय के कठघरे में देखना चाहता है, ताकि कोई भी अपनी हद के पार जाकर राजनीतिक और दूसरी महत्वाकांक्षाएं पालने की हिम्मत न जुटा सके। देश को यह जानकर संतोष हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट ने इशरत जहां के आतंकवादी सच का संज्ञान लिया है और केंद्र सरकार भी इसका पूरा सच देश के सामने रखना चाहती है। पी चिदंबरम ने राजनीतिक विद्वेष से किसी को झूंठा फंसाने के लिए आतंकवादी इशरत जहां को आतंकवादी बताने वाला अपना प्रथम हलफनामा ही बदल दिया? उससे संबंधित सारी फाइलें भी गायब करा दीं? और तत्कालीन गृह सचिव जीके पिल्लई ने भी इस झूंठ पर कोई असंतोष भी दर्ज नहीं किया?
इशरत जहां के आतंकवादी सच के सामने आने के बाद राज्य और देश के शीर्ष पदों पर बैठे बड़े अधिकारियों पर अब किसको कैसे विश्वास होगा, कि वे ईमानदारी से और न्यायपूर्वक काम कर रहे हैं? जो अपनी कुर्सी बचाने के लिए या कुर्सी पर आने के लिए देश या समाज या व्यक्ति के जीवन को भी खतरे को डाल सकते हैं। पी चिदंबरम, सरदार मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी या राहुल गांधी की राजनीतिक इच्छा पूरी करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हों, उसके सामने इशरत जहां आतंकवादी का पाप भी कम है। ईमानदार प्रधानमंत्री का झूंठा तमगा गले में डाले घूमते रहे सरदार मनमोहन सिंह ने दस साल राजयोग भोगा और देश को खतरे में डाला है। पी चिदंबरम, सोनिया गांधी और सरदार मनमोहन सिंह को पता था कि इशरत जहां आतंकवादी थी और उसकी और उसके साथियों की योजना नरेंद्र मोदी एवं दूसरे भाजपा या आरआरएसएस के खास नेताओं को बम धमाकों में मरवाने की थी, जिसे उस समय केंद्रीय गृह मंत्रालय में दबा दिया गया। फाइल नोटिंग से खुलासा हुआ कि खुफिया ब्यूरो के अलावा महाराष्ट्र और गुजरात पुलिस से जानकारी के आधार पर जो प्रथम हलफनामा दाखिल किया गया था, उसमें कहा गया था कि मुंबई के बाहरी इलाके की 19 वर्षीय लड़की इशरत जहां पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा की आतंकवादी है, लेकिन योजना के तहत इसे दूसरे हलफनामे में पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। दूसरे हलफनामे के बाद उसके आतंकवादी होने की हर रिपोर्ट को नकार दिया गया और यही कहा गया उसको आतंकवादी साबित करने के लिए कोई महत्वपूर्ण साक्ष्य नहीं है।
मुंबई बम धमाकों की सूत्रधार टीम के सदस्य आतंकवादी डेविड हेडली यदि भारत की अदालत को दिए अपने बयान में अहमदाबाद में मारी गई इशरत जहां को आतंकवादी नहीं कहता तो पी चिदंबरम का झूंठ कभी सामने नहीं आता। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि झूंठे हलफनामे को पी चिदंबरम ने ही तैयार किया था। तत्कालीन गृह सचिव जीके पिल्लई आज कह रहे हैं कि तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने अपने किसी अधिकारी से बात किए बगैर समूचे हलफनामे को बदल दिया और इशरत जहां को क्लीन चिट दे दी। जीके पिल्लई का कहना है कि फाइल नोटिंग से उद्धरण देते हुए 23 सितंबर 2009 को उन्होंने मूल हलफनामा पी चिदंबरम को भेजा था, पी चिदंबरम ने अगले दिन फाइल देखी और फाइल पर लिखा ‘संशोधित’ और यह निर्देश दिया कि इसे अदालत भेजे जाने से पहले उन्हें एक स्पष्ट प्रति दिखाई जानी चाहिए। जीके पिल्लई ने 24 सितंबर 2009 को फाइल में लिखा कि एक स्पष्ट प्रति गृहमंत्री को दिखाई गई है। फाइल में यह भी लिखा गया कि हलफनामे की एक प्रति कानून सचिव और अटार्नी जनरल को सूचना के लिए भेजी जानी चाहिए। कहा जा रहा है कि अटार्नी जनरल दिल्ली में नहीं थे, इसलिए वे दूसरे हलफनामे को नहीं देख सके। उन्होंने कहा कि कोई भी हलफनामा तथ्यों पर आधारित होना चाहिए, लेकिन पी चिदंबरम ने कथित तौर पर हलफनामे में अपनी राय दी, मगर जीके पिल्लई ने फाइल में कोई असंतोष नोट नहीं लिखा, इस तरह जीके पिल्लई भी इस पूरी प्रक्रिया के दाएं-बाएं से करीबी तौर पर जुड़े हुए थे।
देश के गृह सचिव होने के नाते जीके पिल्लई अब यह नहीं कह सकते कि हलफनामा बदलने का फैसला उनकी सलाह और मंजूरी के बगैर लिया गया, उनके पास देशहित में कैबिनेट सचिव के सामने विरोध दर्ज करने का मजबूत विकल्प मौजूद था, जो उन्होंने नहीं चुना। वे इशरत जहां ‌के आतंकवादी सच को आतंकवादी डेविड हेडली की स्वीकारोक्‍ति तक छिपाए रहे। गृह मंत्रालय के एक और अवर सचिव ने भी दावा किया कि है कि उसको दूसरे हलफनामे पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। सवाल है कि ये नौकरशाह हैं या फाइल बाबू? क्या ये अपनी कुर्सी बचा रहे थे? क्या यह घटनाक्रम राष्ट्रद्रोह की परिभाषा में नहीं है? गौरतलब है कि ज‌ीके पिल्लई ने रविवार को दावा किया था कि यूपीए सरकार के दौरान गृहमंत्री के तौर पर पी चिदंबरम ने मूल हलफनामे के एक महीने बाद फाइल मंगाई थी। मूल हलफनामे में इशरत जहां और उसके साथियों को लश्कर-ए-तैय्यबा का सदस्य बताया गया था। यह हलफनामा सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल भी किया गया था। इस मामले में वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पी चिदंबरम पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि इशरत जहां मामले में यूपीए सरकार दूसरा हलफनामा फर्जीवाड़े का मामला है। अरुण जेटली ने इशरत जहां और लश्कर-ए-तैय्यबा के उसके साथियों के गुजरात में मुठभेड़ में मारे जाने को ‘सही’ बताते हुए पूछा कि क्या कांग्रेस को लगता है कि यह मुठभेड़ फर्जी थी? अगर ऐसा है तो उसने आरोप-पत्र दाखिल नहीं करके, मुठभेड़ में शामिल उन अधिकारियों को गवाह नहीं बनाकर उन्हें 90वें दिन जमानत क्यों हासिल करने दी?
वित्तमंत्री अरुण जेटली कह रहे हैं कि यूपीए सरकार के प्रथम हलफनामे में इशरत जहां के आतंकवादी संपर्कों का बिल्कुल साफ जिक्र था, जबकि दूसरे हलफनामे में फर्जीवाड़ा किया गया, यह खिलवाड़ किया गया। ज्ञातव्य है कि पी चिदंबरम ने दूसरे हलफनामे को दाखिल किए जाने को उचित ठहराया था और गृहमंत्री के रूप में इस फैसले की जिम्मेदारी ली थी। पी चिदंबरम की टिप्पणी पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के समर्थन पर अरुण जेटली ने कहा कि मामले के सिलसिलेवार तथ्य एक उपयुक्त मामला बनाते हैं कि इशरत जहां मामले में किस तरह से मनगढ़ंत कहानी गढ़ी गई। उन्होंने कहा कि यह कांग्रेस की परंपरा रही है, इसी कांग्रेस ने वीपी सिंह के खिलाफ फर्जी बैंक खाता बना दिया था, जब लोग उनमें भविष्य का प्रधानमंत्री देख रहे थे। संसदीय कार्यमंत्री एम वेंकैया नायडू ने आरोप लगाया है कि इशरत जहां मुठभेड़ मामले में हलफनामा बदले का निर्णय राजनीतिक स्तर पर लिया गया था, जिसमें तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी शामिल थे। भाजपा ने कांग्रेस से इसपर स्पष्टीकरण मांगा है। वैंकया नायडू ने कहा कि कांग्रेस गठबंधन सरकार ने सीबीआई का राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए दुरुपयोग किया था। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर संसद में बहस और समुचित कार्रवाई की जरूरत है।
ज्ञातव्य है कि तत्कालीन केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई आज कह रहे हैं कि इशरत जहां और उसके साथियों के तार लश्कर-ए-तैय्यबा से जुड़े होने के बाबत 2009 में गुजरात हाईकोर्ट में दाखिल किया गया हलफनामा राजनीतिक स्तर पर बदलवाया गया था, मगर यह मेरे स्तर पर नहीं किया गया, मैं कहूंगा कि यह राजनीतिक स्तर पर किया गया। पूर्व गृह सचिव ने कहा कि इस बात में कोई शक नहीं है कि गुजरात में कथित फर्जी मुठभेड़ में मारे गए लोगों के तार लश्कर से जुड़े थे, वे लश्कर के सदस्य थे, वह जानती थी कि कुछ गलत है, वरना कोई बिनब्याही जवान मुस्लिम युवती दूसरे पुरुषों के साथ ऐसे ही नहीं गई होती। यह पूछे जाने पर कि क्या यह फर्जी मुठभेड़ थी, इस पर जीके पिल्लई ने कहा कि सीबीआई पहले ही इस मुद्दे की छानबीन कर चुकी है और आरोप-पत्र दाखिल कर चुकी है। उन्होंने कहा लश्कर ने इशरत जहां का नाम अपनी वेबसाइट पर डालकर उसे शहीद करार दिया था, मगर बाद में इसे हटा लिया गया था। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि डेविड हेडली के बयान की और जांच होनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि इशरत जहां, जावेद शेख, अमजद अली, अकबर अली राणा और जीशान जौहर 15 जून 2004 को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में गुजरात पुलिस के साथ हुई एक मुठभेड़ में मारे गए थे। अहमदाबाद पुलिस की अपराध शाखा ने उस वक्त कहा था कि वे लश्कर के आतंकवादी थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के इरादे से गुजरात आए थे।

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