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Monday 25 April 2016 05:08:56 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन नई दिल्ली में आयोजित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए न्यायपालिका पर आम आदमी के सर्वोच्च स्तर के विश्वास का उल्लेख किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर के भाषण का उल्लेख करते हुए कि देश के विभिन्न न्यायालयों में बड़ी संख्या में मामले लंबित पड़े हैं, प्रधानमंत्री ने कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश की चिंता को समझते हैं और उन्हें उम्मीद है कि इस बारे में आगे बढ़ते हुए सरकार और न्यायपालिका इन मुद्दों का समाधान खोजने के लिए साथ मिलकर काम कर सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कानून की किताबों से पुराने कानूनों को हटाने के लिए सरकार के प्रयासों पर भी जोर दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कार्यपालिका विभिन्न संस्थानों के तहत सार्वजनिक जीवन में सतत मूल्यांकन और जांच के दायरे में रहती है, न्यायपालिका को ऐसी किसी जांच का सामान्य रूप से सामना नहीं करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने भारत के लोगों में भारी विश्वास और प्रतिष्ठा बनाई है और उसे आत्म मूल्यांकन के लिए अपना अंदरुनी तंत्र विकसित करना चाहिए, ताकि जनता ने न्यायपालिका में जो भारी उम्मीदें व्यक्त कर रखी हैं, वह उनपर खरा उतर सके। भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने उच्च न्यायालयों के साथ-साथ अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों के खाली पदों की बढ़ती हुई संख्या पर चिंता जाहिर की। उन्होंने इस कारण से न्यायपालिका पर बढ़ते हुए काम के भारी बोझ का भी उल्लेख किया। उनका मत था कि न्यायालयों में विभिन्न स्तरों पर मामलों की लंबित संख्या बढ़कर अब लगभग तीन करोड़ हो चुकी है और इसे प्रभावी रूप से तभी कम किया जा सकता है, जब विभिन्न उच्च न्यायालयों, जिलों के साथ-साथ निचली अदालतों के सभी खाली पदों को भर दिया जाए।
न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर ने सुझाव दिया कि संविधान के प्रावधानों के अनुसार काम करने के इच्छुक सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की सेवाओं का उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय न्यायालय प्रबंधन समिति ने लंबित मामलों के निपटान के लिए इस तरह से एक मिशन के रूप में काम करने का सुझाव दिया है, जिससे कोई भी मामला पांच साल से अधिक अवधि के लिए लंबित न रहे। वाणिज्यिक अदालतों के मुद्दे पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आपको पूर्णरूप से अलग वातावरण में काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि ऐसा होना चाहिए, जिससे कार्पोरेट ग्राहक सहज महसूस करें। प्रधानमंत्री और भारत के मुख्य न्यायाधीश का उद्घाटन सत्र में स्वागत करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि राज्यों में न्यायिक प्रशासन के विकास में उच्च न्यायालयों और राज्य सरकारों को प्रमुख भूमिका निभानी है। उन्होंने पिछले सम्मेलन में एक प्रमुख संकल्प को अपनाने का उल्लेख किया, जिनमें यह निर्णय लिया गया था कि उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और राज्यों के मुख्यमंत्री न्यायपालिका के लिए बुनियादी ढांचा, मानव शक्ति की जरूरतों और सुविधाओं से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए आपस में नियमित रूप से बातचीत के लिए तंत्र की स्थापना करेंगे।
कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने उम्मीद जाहिर की कि अधिकांश राज्यों में ऐसे तंत्र का पहले ही गठन हो चुका है और यह सम्मेलन इस पहल को आगे बढ़ाने के अर्थोंपाय पर विचार-विमर्श के लिए एक उचित अवसर उपलब्ध कराएगा। उन्होंने कहा कि उपलब्ध जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने मिलकर न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास पर पिछले तीन वर्ष के दौरान औसतन लगभग 2,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, तद्नुसार अदालत हाल की उपलब्धता अब लगभग 16,000 न्यायाधीशों और अधिनस्थ न्यायपालिका में न्यायिक अधिकारियों की तादाद के अनुरूप है। उन्होंने कहा कि अनेक चालू परियोजनाओं के अनुसार हमारा उद्देश्य यह है कि हर राज्य में स्वीकृत पदों की संख्या के अनुरूप निकट भविष्य में 20,000 अदालती हाल उपलब्ध कराए जा सकें। न्यायिक बुनियादी ढांचे के बारे में की गई उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों के भारी संख्या में पदों की रिक्तियों पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने उच्च न्यायालयों से विभिन्न न्यायिक पदों के लिए उचित उम्मीदवारों के चयन में सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने का अनुरोध किया।
डीवी सदानंद गौड़ा ने विवादों के निपटान में देरी के कारण निवेशकों की भावनाओं पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों पर भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि आपको पता है कि देश में मुकद्मेबाजी का लंबा स्वरूप है, इन चिंताओं को दूर करने और देश में निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए सरकार के लगातार प्रयासों के रूप में सरकार ने वाणिज्यिक न्यायालयों की स्थापना और आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट-1996 और निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट-1881 में संशोधनों सहित अनेक कदम उठाए हैं, ये पहल औपचारिक अदालत प्रणाली के साथ-साथ वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र, दोनों में विवादों को तेजी से निपटाने के लिए आपस में जुड़ी हैं। उन्होंने कहा कि आपराधिक परीक्षणों के निष्कर्ष में अत्यधिक देरी के संबंध में विभिन्न संसदीय समितियों ने चिंता व्यक्त की है, सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली की समीक्षा के लिए विशेषज्ञ समितियां स्थापित कर रखी हैं, ताकि न्यायप्रणाली को समाज की जरूरतों के लिए अधिक उत्तरदायी बनाई जा सके, इन समितियों की कुछ सिफारिशों को लागू किया जा चुका है और कानूनी प्रावधानों को प्रक्रियात्मक कानूनों में शामिल किया गया है। उन्होंने कहा कि हालांकि विधायी सुधार अकेले ही पर्याप्त नहीं है, पुलिस व्यवस्था में सुधार और जांच पड़ताल तंत्र में सुधार न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की तरह ही महत्वपूर्ण है।
केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि भारतीय विधि आयोग हमारी आपराधिक न्यायिक प्रणाली के स्थाई और प्रक्रियात्मक दोनों पहलुओं की समीक्षा कर रहा है। उन्होंने कहा कि कानून आयोग के अध्यक्ष से इस बारे में अपनी सिफारिशों में तेजी लाने का अनुरोध किया गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के 2014 के अंत में संकलित आंकड़ों का जिक्र करते हुए डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि जेलों में लगभग 2.82 लाख विचाराधीन कैदी हैं, यह संख्या कुल कैदियों की दो तिहाई है। उन्होंने कहा कि आजादी मिलने के बाद के प्रारंभिक वर्ष के दौरान विचाराधीन कैदियों की संख्या जेलों में बंद कुल कैदियों की संख्या की केवल एक तिहाई थी, बहरहाल यह स्थिति आज भी बरकरार है, जब दंड प्रक्रिया संहिता में किए गए संशोधनों ने उन विचाराधीन कैदियों को व्यक्तिगत बांड पर रिहा किए जाने की अनुशंसा की है, जो अपनी अधिकतम सजा अवधि का पचास प्रतिशत जेल में काट चुके हैं। उन्होंने राज्य सरकारों एवं उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस प्रावधान का क्रियान्वयन त्वरित गति से हो सके, उपयुक्त कदम उठाने का आग्रह किया।
डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि ई-कोर्ट समेकित मिशन मोड परियोजना को प्रौद्योगिकी की मदद से न्याय की सुविधा को बेहतर बनाने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया था, ई-कोर्ट परियोजना के पहले चरण के दौरान उल्लेखनीय परिणाम देखने को मिले, जिसमें अधीनस्थ न्यायालयों का आईसीटी ढांचागत उन्नयन, राष्ट्रीय ई-कोर्ट पोर्टल का लांच एवं उच्च न्यायालयों की प्रक्रिया रि-इंजीनियरिंग समितियों की स्थापना शामिल है। वर्तमान में जारी दूसरे चरण का लक्ष्य केंद्रीकृत फाइलिंग केंद्रों की स्थापना, दस्तावेजों का डिजिटलाइजेशन, दस्तावेज प्रबंधन प्रणालियों का अनुपालन, ई-फाइलिंग एवं ई-पेमेंट गेटवेज का सृजन करना है, बहरहाल न्यायाधीशों एवं आम लोगों के बीच ई-कोर्ट परियोजना की क्षमता के बारे में जागरुकता की कमी है। इस संदर्भ में उन्होंने एक बार फिर उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से आग्रह किया कि वे न केवल वर्तमान में उपयोग में लाई जा रही प्रौद्योगिकियों की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिए न्यायपालिका के सदस्यों को संवेदनशील बनाएं, बल्कि इसके साथ-साथ बड़े पैमाने पर लोगों को परियोजना के तहत मुहैया कराई जा रही वादकारी हितैषी सेवाओं के बारे में आवश्यक सूचनाएं प्रचारित करें।
कानून मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय स्तर पर विचाराधीन एवं निपटान हो चुके मामलों का सारांश मुहैया कराता है, इसके अतिरिक्त एक ऐसे प्रारूप में जो न्यायिक उत्पादकता एवं संकुलन दरों के आकलन की अनुमति देता है, न्यायालयों पर सावधिक रिपोर्ट भी अनिवार्य रूप से प्रकाशित की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मामला प्रबंधन प्रणाली के जरिए मामलों का वर्गीकरण एवं कार्यभार यह सुनिश्चित करने में मदद करेगा कि पुराने मामलों को प्राथमिकता के आधार पर निपटा दिया जाए। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जारी अभ्यास के रूप में मामलों के समूहीकरण की आवश्यकता है, जिससे कि एक ही विषय वस्तु से उत्पन्न होने वाले और कानून के एक ही प्रश्न से संबंधित मामले का कार्यभार एक ही न्यायाधीश को सौंपा जा सके, बेहतर वर्गीकरण न्यायालयों को पूर्व-निर्धारित समय सीमा का अनुपालन करने में सक्षम बनाएगा, इस बारे में उच्च न्यायालयों के नियमों को अनुकूल तरीके से इन तंत्रों को समायोजित करने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए। कई महत्वपूर्ण एवं अन्वेषक पहलें वर्तमान न्यायालय प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए उपयोग में लाई जा रही हैं, फिर भी इस बारे में अभी बहुत अधिक काम किए जाने की काफी गुंजाइश है।
डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि उच्च न्यायालयों को अनिवार्य रूप से परियोजना के क्रियांवयन में उच्चतर कुशलता की दिशा में बदलाव के लिए सक्रियता से बढ़ावा देने में एक मजबूत नेतृत्व की भूमिका को अंगीकार करना चाहिए, यह आकलन करने के लिए कि क्या वादकारी भी विभिन्न पहलों से लाभ उठा रहे हैं और क्या कुछ किया जा सकता है, प्रक्रिया सरलीकरण के क्षेत्र में और अनुसंधान करने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि आईसीटी पहलों को अगर सफलतापूर्वक पूरा किया जाए तो यह न्यायालय की प्रक्रियाओं के रोजाना के प्रबंधन को सरल बना देगा और अधीनस्थ न्यायालयों के प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए उच्चतर न्यायपालिका को आवश्यक उपकरण मुहैया कराएगा। वैकल्पिक विवाद तंत्र समेत हमारी न्यायिक प्रक्रिया में भारत के बार कौंसिल की क्षद्वारा निभाई जाने वाली महत्वपूर्ण भूमिका की उन्होंने सराहना की, साथ ही उनके मानकों एवं प्रचलनों को बेहतर बनाने के लिए तथा वर्तमान में जारी कानूनी शिक्षा के जरिए उनके पेशेवर कौशलों के उन्नयन के लिए भी अदालत के साथ नियमित रूप से संबद्ध रहने की जरूरत को रेखांकित किया। उन्होंने केरल के कोच्चि में पहली अधिवक्ता अकादमी की स्थापना में भारत के बार कौंसिल के प्रयासों की सराहना की और उम्मीद जताई कि देश के दूसरे राज्यों की बार कौंसिल भी अपने अपने राज्यों में ऐसे ही सराहनीय प्रयास करेंगी, साथ ही यह भी आवश्यक है कि न्यायालयों के लिए बुनियादी ढांचे की रूपरेखा का निर्माण करने के दौरान बार के सदस्यों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराई जाएं।
बार कौंसिल ने कानूनी सहायता कार्यक्रम के तहत उच्चतर जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में भी गहन दिलचस्पी प्रदर्शित की है, बार से सहयोग के इस अहम महत्व को ध्यान में रखते हुए कानून मंत्री ने राज्य सरकारों एवं उच्च न्यायालयों से न्यायालयों में विचाराधीन मामलों को कम करने की दिशा में विभिन्न कार्यक्रमों एवं पहलों को सूचीबद्ध करने में राज्य बार कौंसिलों एवं बार संगठनों के सदस्यों के साथ सक्रियतापूर्वक जुड़ने का भी आग्रह किया। डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि सरकार एवं न्यायपालिका द्वारा न्यायिक सुधारों पर नीति निर्माण के अभ्यास पर भरोसेमंद न्यायिक आंकड़ों के आधार पर पर्याप्त विश्लेषण एवं अनुसंधान की आवश्यकता है, उच्च न्यायालयों एवं जिला तथा अधीनस्थ न्यायालयों के कंप्यूटरीकरण के साथ अब यह उच्च न्यायालयों के लिए संभव हो गया है कि वे न्यायिक आपूर्ति प्रणाली के कामकाज पर आवश्यक जानकारी को प्रचारित कर सकें। उन्होंने कहा कि सरकार ने अपनी तरफ से विधि विद्यालयों, न्यायिक अकादमियों, प्रबंधन एवं तकनीकी संस्थानों को न्यायिक सुधार के कदमों की प्रभावोत्पादकता का आकलन करने एवं नए सुधारों को लागू करने की व्यावहार्यता का आकलन करने के लिए अनुसंधान परियोजनाओं को शुरु करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए न्यायिक सुधारों पर एक कार्य अनुसंधान की योजना का निर्माण किया है, अभी तक इस योजना के तहत 18 अनुसंधान परियोजनाओं को मंजूरी दी जा चुकी है। उन्होंने मुख्य न्यायाधीशों से अपने अपने उच्च न्यायालयों में इन अनुसंधान परियोजनाओं को सुगम बनाने का आग्रह किया।
संयुक्त सम्मेलन के समक्ष न्यायिक सुधारों के एक व्यापक एजेंडे, जिसमें कई सारी विषयवस्तु शामिल हैं को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार और न्यायपालिका उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए संयुक्त रूप से काम कर रही है, जिसका न्याय की समय पर आपूर्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मैं इस संदर्भ में सृजनात्मक बातचीत की उम्मीद करता हूं। न्याय विभाग की सचिव कुसुमजीत सिद्धू ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। यह संयुक्त सम्मेलन कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के लिए देश में एक त्वरित, कुशल एवं गुणवत्तापूर्ण न्याय आपूर्ति के समर्थन के लिए अपने संकल्प को दोहराने का एक अवसर है। यह न्यायालयों में मामलों के निपटान में अत्याधिक देरी, आर्थिक संचालनकर्ताओं द्वारा व्यावसायिक विवादों के त्वरित निपटान की सुविधा उपलब्ध कराने न्यायिक प्रणाली को उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक उपयोग बनाने और सबके लिए किफायती बनाने तथा देश में कानूनी सहायता सेवाओं की गुणवत्ता को बेहतर बनाने जैसी न्यायिक प्रणाली के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए आवश्यक कदमों पर विचार-विमर्श करने का भी एक अवसर है।