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लामा-ओबामा से भेंट पर चीन बौखलाया

चीन के पाकिस्तान प्रेम पर अमरीका का बड़ा कदम

आतंकवाद पर चीन का असहयोग नहीं चलेगा

Wednesday 15 June 2016 04:52:27 AM

दिनेश शर्मा

दिनेश शर्मा

dalai lama with us president barack obama

वाशिंगटन/ नई दिल्ली। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीन को उसकी सीमा बताते हुए बुधवार को तिब्बती आध्यात्मिक गुरु परमपावन दलाई लामा का व्हाइट हाउस में स्वागत किया है, जिस पर चीन बुरी तरह से बौखला गया है। अमरीका मानता है कि चीन जिस प्रकार का व्यवहार कर रहा है, वह उसे एक समय बाद अलग-थलग कर देगा। चीन का पाकिस्तान प्रेम और वैश्विक मुद्दों पर चीन की जरूरत से ज्यादा चालाकियां अमरीका को ही नहीं, बल्कि विश्व समुदाय को अखर रही हैं। अमरीका ने आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा को व्हाइट हाउस बुलाकर चीन को समझा दिया है कि उसे कौन सा रास्ता चुनना चाहिए। समाचार एजेंसी ‘एफे’ के अनुसार व्हाइट हाउस की ओर से घोषणा की गई थी कि राष्ट्रपति बराक ओबामा और भारत में रह रहे निर्वासित तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा की व्हाइट हाउस में मुलाकात होगी। चीन दलाई लामा को अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानता है, जबकि तिब्बत में दलाई लामा को भगवान की तरह पूजा जाता है। वे चीन की सबसे बड़ी कमजोरी और मजबूरी हैं एवं आजकल वाशिंगटन में हैं, जहां उन्होंने कांग्रेस के डेमोक्रेटिक एवं रिपब्लिकन सदस्यों से मुलाकात की है, यूएस इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में भाषण दिया है। यूएस हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स की डेमोक्रेटिक लीडर नैंसी पेलोसी ने एक बयान में दलाई लामा को महिमामंडित करते हुए कहा है कि तिब्बतियों एवं दुनियाभर के लोगों के पूजनीय दलाई लामा हमें मानवीय अधिकारों की हिफाजत करने, समानता का प्रचार, पर्यावरण की रक्षा करने के हमारे महान कर्तव्य की याद दिलाते हैं।
व्हाइट हाउस में दलाई लामा की मौजूदगी से चीन भड़क उठा है और उसने बौखलाहट में अमेरिका को चेतावनी दे डाली है कि चीन उम्मीद करता है कि दलाई लामा एवं ताईवान की राष्ट्रपति साई इंग वेन का अमरीका दौरा चीन की वन चाइना नीति के प्रति अमेरिका के समर्थन को खतरे में नहीं डालेगा। चीन की साई इंग वेन और दलाई लामा से गहरी दुश्मनी जगजाहिर है। तिब्बत पर अवैध कब्ज़े के बाद से चीन दलाई लामा को पकड़ कर अपने यहां राष्ट्रद्रोह का मुकद्मा चलाना चाहता है, जिसके अंतगर्त फांसी का प्रावधान है। दलाई लामा को भारत ने शरण दी हुई है और वे लंबे समय से भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला में रहते हैं, उन्हें देशभर में कहीं भी आने-जाने की आजादी है, भारत में बाकायदा तिब्बत सरकार चलती है और यहीं से वे उन देशों में भ्रमण और आमंत्रण पर जाते हैं, जिनकी चीन के साथ राजनीतिक प्रत्यपर्ण संधि नहीं है।
दलाई लामा को भारत में ऐतिहासिक सम्मान प्राप्त है और वे भारत के प्रति अत्यंत कृतज्ञ भी रहते हैं। गौरतलब है कि भारत-चीन युद्ध के बाद इन दोनों देशों के संबंध अच्छे नहीं हैं। भारत की आज वैश्विक स्तर पर एक नेता की बनती ख्याति से भी चीन सहज नहीं है। भारत में अब तक जितनी सरकारें रही हैं, वे विदेश नीति के स्तर पर बहुत कमज़ोर साबित हुई हैं, इस बार भारत में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है और हिंदुइज्‍़म से प्रभावित एवं आरएसएस पृष्ठभमि से आए नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। भारत की पूर्ववर्ती सरकारों पर पर चीन गुर्राता रहा है, उसने भारत की कभी कोई भी परवाह नहीं की, बल्कि भारत के दुश्मन पा‌किस्तान को भारत के खिलाफ हर प्रकार का सहयोग और समर्थन किया है, करता आ रहा है, यहां तक कि पाकिस्तान में पल रहे आतंकवादियों को भी वह अपने यहां निर्बाधरूप से आने-जाने देता है। चीन की ये नीति और झल्लाहट भारत में दलाई लामा को समर्थन के कारण है और वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में विघटनकारियों को प्रोत्साहन भी देता है।
अमरीका एशिया में चीन को बड़ी चुनौती मानता है और हाल ही में उसकी पाकिस्तान से निकटता उसे इस कारण पसंद नहीं है कि वह ओसामा बिन लादेन और आतंकवादी संगठन तालिबान के चीफ मुल्ला मंसूर को पाकिस्तान में शरण देते हुए पाया गया है। ये दोनों आतंकवादी सरगना पाकिस्तान में ही रह रहे थे और अमरीका के लिए बड़े सरदर्द थे। अमरी‌का को जानकारी है कि पाकिस्तान आज अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का शरणगाह है एवं चीन उसे और ज्यादा मजबूत करने में लगा हुआ है। अमरीका, चीन की इस नीति के खिलाफ भारत के काफी नज़दीक पहुंच चुका है। इस समय विश्व समुदाय में आतंकवाद के खिलाफ गुस्सा है और यूरोपीय देश ही नहीं, बल्कि मुस्लिम देश भी पाकिस्तान को एक गैर भरोसेमंद देश मानते हुए उसके खिलाफ हैं। पाकिस्तान की जरूरत से ज्यादा वकालत करने वाले चीन को अमरीका हैसियत बताना चाहता है, इसलिए उसने तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को व्हाइट हाउस आमंत्रित करके चीन को बता दिया है कि वह जो कर रहा है, उसके साथ उससे भी ज्यादा किया जाएगा। पाकिस्तान की निकटता चीन को इस समय भारी पड़ रही है और उसके सामने कोई रास्ता नहीं दिख रहा कि वह पाकिस्तान को कैसे छोड़े, भारत से दोस्ती कैसे बढ़ाए, क्योंक‌ि चीन को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अलग-थलग पड़ जाने का खतरा भी महसूस हो रहा है।
तिब्बत आंदोलन के शिखर नेता दलाई लामा के तिब्बत के आंदोलनकारियों को कुचलने के लिए चीन सड़क पर उतरा हुआ है। तिब्बतियों को चीन की सेना अपने बूटों के नीचे रौंदती है और उन पर टैंकों से हमले किए जाते रहे हैं। तिब्बत की अद्भुत सांस्कृतिक विरासत पर चीन का उस तरह से हमला होता आ रहा है, जिस प्रकार कभी अफगानिस्तान के बामियान में तालिबान ने भगवान बुद्ध की हजारों साल पुरानी प्रतिमा पर मोटार्र और तोपों से गोले बरसाए थे। अलग तिब्बत के आंदोलन को चीन पूरी तरह से कुचल देना चाहता है, इसलिए उसने तिब्बतियों को विघटनकारी कहकर उनके सारे मौलिक अधिकारों को अघोषित रूप से रद्द कर रखा है। चीन सरकार से मान्यता प्राप्त तिब्बतियों के बौद्ध नेता पंचेन लामा जहां बीजिंग के पक्ष में खड़े हैं, वहीं दलाई लामा के अनुयायी अलग तिब्बत देश के लिए विश्व समुदाय का समर्थन जुटाने के लिए दुनिया भर में फैले हुए हैं और चीन के दमन के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन छेड़े हुए हैं। अमरीका दलाई लामा के आंदोलनकारियों का समर्थन करता है, इसलिए उसने चीन को बार-बार नसीहत दी है कि वह तिब्बतियों पर बल प्रयोग करने में संयम बरते और इस समस्या का स्थायी समाधान खोजे।
चीन की सेना तिब्बत में टैंकों पर सवार है और जो भी आंदोलनकारी मिलता है उसे वह ठिकाने लगा देती है। ल्हासा में हमेशा जबरदस्त तनाव रहता है। दलाई लामा का कहना है कि वहां तिब्बतियों का कत्लेआम हो रहा है। वह कह रहे हैं कि यह तिब्बत का सांस्कृतिक नरसंहार है, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा और विरोध होना चाहिए। चीनी सेना आपरेशन तिब्बत में लगी हुई है। एक लंबे समय से ल्हासा में हालात काबू में नहीं है और तिब्बत आंदोलन पहले से ज्यादा जोर पकड़ता जा रहा है। कुछ साल पहले तिब्बतियों ने भारत नेपाल और दूसरे देशों में तिब्बत राष्ट्र के लिए जबरदस्त सभाएं और प्रदर्शन किए थे। तिब्बत का मामला चीन के गले की हड्डी है। विश्व समुदाय के सामने चीन इसे अपना अभिन्न अंग कहकर तिब्बत आंदोलन को खारिज करता रहा है, लेकिन विश्व समुदाय यह मानता है कि तिब्बतियों की धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक विरासत चीन से बिल्कुल अलग है, ठीक उसी तरह जिस प्रकार पाकिस्तान में बलूचिस्तान प्रांत की सभ्यता बाकी पाकिस्तान से बिल्कुल अलग है और बिना पर बलूचिस्तान भी पाकिस्तान से आजादी चाहता है, मगर पाकिस्तान की सेना बलूच समुदाय का नरसंहार करने में लगी हुई है। इसीलिए चीन में तिब्बत और पाकिस्तान में बलूचिस्तान के लोग जो मांग कर रहे हैं उसमें दम है।
चीन शुरू से तिब्बत को अपने से अलग करने का विरोध करता रहा है। तिब्बतियों के धर्मगुरुओं में भी चीन ने विभाजन के अनेक प्रयास किए हैं, इसलिए जो बौद्ध गुरु चीन के कब्जे वाले तिब्बत में रहते हैं, वह चीन के डर से चीन का समर्थन करते हैं और जो तिब्बत के बाहर हैं, वह पूरी तरह से चीन के खिलाफ हैं और दलाई लामा का समर्थन करते हैं। भारत के हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला में तिब्बतियों का खासा जमावड़ा है। नेपाल और दूसरे बौद्ध मान्यता वाले देशों में दलाई लामा का भारी मान-सम्मान है। संयुक्त राष्ट्र और उसके सदस्य देश भी दलाई लामा को मान्यता देते हैं और उन्हें समय-समय पर अपने सम्मान एवं पुरस्कारों से भी नवाजते हैं। चीन की यही सबसे बड़ी कमजोरी और मजबूरी है कि वह सीधे दलाई लामा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाता और झल्लाहट में दलाई लामा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों पर अपनी सेना के बूट चलवाता है, जिससे तिब्बत की मांग खत्म हो जाए। दलाई लामा तिब्बत आंदोलन के ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दुनिया में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपना पूरा मिशन चला रखा है।
चीन उन देशों से अलग-थलग रहता है, जो कि तिब्बत का समर्थन करते हैं या दलाई लामा को संरक्षण देते हैं। भारत भी दलाई लामा के पक्ष में रहता है, लेकिन उसकी विदेश नीति में तिब्बत देश का समर्थन करना शामिल नहीं है। शायद इसके बदले में चीन कश्मीर के मुद्दे पर ज्यादा नहीं बोलता है, वह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में चल रहे आंदोलनों पर भी खुलकर नहीं बोलता है। आज उसे खतरा है कि भारत विश्व की महाशक्तियों में शामिल होने जा रहा है। वह समझता है कि अब भारत उतना कमजोर नहीं रहा है, जितना कि पहले था। वह चाहता है कि दलाई लामा चीन को सौंप दिए जाएं जो कि किसी भी देश के लिए रणनीति के हिसाब से संभव नहीं है। वैसे भी तिब्बत का आंदोलन और देशों में चल रहे ऐसे आंदोलनों से अलग माना जाता है, क्योंकि तिब्बत की अपनी सांस्कृतिक विरासत है। दलाई लामा हमेशा इस बात से इनकार करते हैं कि तिब्बतियों का आंदोलन हिंसात्मक है, जबकि चीन का तिब्‍बत का इतिहास उठाकर देखें तो चीन ने तिब्‍बत में शुरू से ही दमनकारी नीतियों को लागू किया है, उनका कहना है कि ‌तिब्‍बत की नई पीढ़ी आजादी चाहती है न कि ‌तिब्‍बत की स्‍वायत्‍ता।
अमरीका का तिब्बतियों के हालात को विश्व की अंतरआत्मा की आवाज़ से जोड़ते हुए दुनिया से कहना है कि वह तिब्बत में चीनी सेना के अत्याचारों और दमन के खिलाफ आवाज़ उठाए, तिब्बत में चीनी सेना आजादी चाहने वालों को कुचल रही है। भारत में हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला शहर में तिब्बतियों के बौद्ध मंदिरों आध्यात्म और विचार केंद्रों में कुछ साल पहले पहुंचीं अमरीका की प्रतिनिधि सभा की तत्कालीन स्पीकर नेंसी पेलोसी ने भी साफ-साफ कहा था कि तिब्बत दुनिया से कह रहा है कि वह तिब्बत में चीनी सेना के दमन और अत्याचार के खिलाफ बोले नहीं तो हम मानवाधिकारों पर बोलने का अपना नैतिक अधिकार खो देंगे। भारत में धर्मशाला आज चीन से निर्वासित तिब्बतियों का शहर और घर है। यहां की दीवारों पर जहां-तहां पोस्टर लगे रहते हैं, जिन पर लिखा होता है फ्री तिब्बत-फ्री तिब्बत। धर्म गुरू दलाई लामा की अमरीका यात्रा और उसमें अमरीकी अधिकारियों सहित राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात का बड़ा महत्व है, जो चीन को असहज रखने के लिए काफी है। चीन भी समझ रहा है कि उसकी भारत को लेकर जो नीति है, वह उसे आज नहीं तो कल परेशानी में जरूर डाल सकती है, क्योंकि भारत एक सैनिक शक्ति के साथ-साथ बड़ी तेजी से बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में आगे बढ़ रहा है।

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