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Saturday 10 December 2016 02:40:35 AM
उलान बटोर (मंगोलिया)। चीन और रूस के बीच में बसे छोटे से मगर हिम्मती देश मंगोलिया को चीन के आधिकारिक मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने एक तरह से धमकाया है कि उसका भारत से मदद मांगना राजनीतिक रूप से जल्दबाजी भरा कदम है और यह कदम उसके साथ चीन के द्विपक्षीय संबंधों को मुश्किल बनाएगा। ग्लोबल टाइम्स ने एक चेतावनी के रूप में भारत से भी मदद मांगने के लिए मंगोलिया की आलोचना की है। दरअसल चीन नहीं चाहता कि मंगोलिया से कोई और देश दोस्ती बढ़ाने की कोशिश करे। ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि रूस और चीन के बीच बसा मंगोलिया किसी सत्ता प्रतिस्पर्धा में शामिल हुए बिना दोनों देशों से लाभ प्राप्त करने के लिए एक तटस्थ देश बनने की कोशिश करता है। लेख में कहा गया है कि मंगोलिया यह भी उम्मीद रखता है कि वह एक तीसरे पड़ोसी की ओर जा सकता है, जिसके जरिए वह चीन से अधिक मोलभाव कर अधिक फायदा उठा सके।
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि मंगोलिया को सतर्क रहना चाहिए कि चीन इस तरह के भू-राजनीतिक खेल के जोखिम को बर्दाश्त नहीं कर सकता है, मंगोलिया को यह जानना चाहिए कि द्विपक्षीय संबंधों को विकसित करने के लिए एक दूसरे का सम्मान करना एक पूर्व शर्त है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि मंगोलिया का भारत से समर्थन मांगना राजनीतिक रूप से जल्दबाजी भरा कदम है, जो सिर्फ स्थिति को जटिल बनाएगा और मुद्दों को सुलझाना मुश्किल बना देगा। ग्लोबल टाइम्स कहता है कि हमें उम्मीद है कि संकटग्रस्त मंगोलिया सबक सीखेगा। गौरतलब है कि मंगोलिया ने चीन की परवाह किये बिना पिछले महीने चार दिन तिब्बती धर्मगुरू परमपावन दलाई लामा की मेजबानी की और कहा था कि दलाई लामा की मंगोलिया यात्रा पूरी तरह से धार्मिक यात्रा थी। चीन इसे धार्मिक यात्रा नहीं मानता, इस कारण वह मंगोलिया से चिढ़ा हुआ है और मंगोलिया पर गुर्रा रहा है, किंतु मंगोलिया भी कम नज़र नहीं आता है और लगता है कि उसको भी चीन की बहुत ज्यादा परवाह नहीं दिखती है।
दरअसल मंगोलिया ने उसपर चीन के सीमा शुल्क लगाने एवं उससे और भी कई द्वीपक्षीय मामलों में उत्पन्न वित्तीय कठिनाइयों को दूर करने के लिए भारत की मदद मांग ली थी। हालॉकि मंगोलिया के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने चीन के कदमों का मुकाबला करने के लिए मंगोलिया के भारत से समर्थन की मांग करने संबंधी भारत में मंगोलिया के राजदूत गोंचीग गनहोल्ड की कथित टिप्पणी पर किन्हीं कारणों से जवाब देने से इनकार कर दिया और यहां तक कहा है कि उन्होंने इस तरह की कोई भी टिप्पणी नहीं सुनी। मंगोलिया भारत की तेज़ी से उभरती विश्व शक्ति को समझ रहा है और उसको यह विश्वास हो चला है कि भारत अब वो देश नहीं रहा है, जिसे चीन का कोई भय है। मंगोलिया मानता है कि तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा चीन की बहुत बड़ी कमज़ोरी हैं और सोशल मीडिया के युग में चीन के लिए पहले की तरह कोई भी दमन करना या उसे छिपाना आसान नहीं है। विश्व समुदाय का चीन के बारे में नज़रिया बदल रहा है और यह स्थिति तबसे ज्यादा नकारात्मक हुई है, जबसे उसने पाकिस्तान की आतंकवादपरस्ती को नज़रअंदाज करते हुए यूएन में उसके लिए वकालत शुरू की है।
तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा पहले से ही चीन के लिए बड़ी चिंता का विषय हैं और मंगोलिया में दलाई लामा का आना और उनके अनुयाईयों की संख्या बढ़ती जाना चीन के लिए सहज नहीं है। चीन दलाई लामा के मंगोलिया में बढ़ते समर्थन को रोकने में विफल हो रहा है। चीन ने आर्थिक नाकेबंदी करके मंगोलिया को दबाव में रखने की पूरी कोशिश की हुई है, मगर मंगोलिया ने तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा को आतिथ्य देकर चीन को चिढ़ा दिया है। एशिया के राजनीतिक और विदेश नीति के स्वतंत्र टीकाकारों का कहना है कि चीन पुराने ढर्रे पर चल रहा है और उसने जैसे अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली है, जो यह नहीं देख पा रहा है कि दुनिया कहां जा रही है। उसके सामने भारत एक बड़ा बाज़ार है और उसके भारत में निवेश पर थोड़ा भी विपरीत प्रभाव उसकी हेकड़ी को इधर से उधर कर सकता है। मंगोलिया की स्थिति थोड़ी भिन्न है। मंगोलिया रूस के भी करीब है और उसकी उदारता का लाभ उठाता है। मंगोलिया के दोनों हाथ में लड्डू है, क्योंकि चीन उसकी ज्यादा उपेक्षा का भी जोखिम नहीं उठा सकता है, इसलिए थोड़ी बहुत ठसल होती ही रहेगी। चीन को यह एहसास हो चुका है कि मंगोलिया को ज्यादा दबाना उसके लिए विस्फोटक हो सकता है, क्योंकि चीन उसे अपने लिए लाक्षागृह तो नहीं ही बनने देगा।