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Sunday 26 March 2017 03:15:38 AM
नई दिल्ली। भारत में वकीलों में दिनों-दिन बढ़ती जा रही अनुशासन की गंभीर समस्या से निपटने के लिए अनुशासन संबंधी कानून और भी कड़ा किए जाने का प्रस्ताव है। इस पर उच्चतम न्यायालय और विधि आयोग पूरी तरह सहमत हैं। इस संबंध में भारत के विधि आयोग ने 23 मार्च 2017 को दी एडवोकेट्स एक्ट, 1961 यानी रेगुलेशन ऑफ लीगल प्रोफेशन शीर्षक से अपनी रिपोर्ट नंबर 266 केंद्र सरकार को सौंप दी है। रिपोर्ट के चैप्टर XVII में विधि आयोग ने नियमन प्रणाली और नियमन निकायों आदि की समीक्षा करने की आवश्यकता पर जोर दिया है तथा अधिवक्ता अधिनियम में समग्र संशोधन करने का सुझाव दिया है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक, 2017 को भी जोड़ा है।
उच्चतम न्यायालय ने अपने हाल फैसले के तहत भारत के विधि आयोग को यह निर्देश दिया था कि वह अधिवक्ता अधिनियम के तहत वकीलों पर अनुशासनात्मक नियंत्रण के लिए नियमन संबंधी प्रावधानों पर दोबारा गौर करे तथा उचित संशोधनों का सुझाव दे, ताकि यह अधिनियम और समग्र बने एवं संसद को ऐसा कानून बनाने में सुविधा हो, जिसके तहत प्रभावशाली नियमन के लिए प्राधिकारियों को सशक्त किया जा सके। उच्चतम न्यायालय ने महिपाल सिंह राणा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (एआईआर 2016 एससी 3302) के मुकद्में में सुनवाई करते हुए निर्देश पारित किए थे। विधि आयोग ने 22 जुलाई 2016 तारीख की एक नोटिस भी अपनी वेबसाइट पर डालकर सभी हितधारकों से सुझाव भी मांगे थे कि किस तरह अधिवक्ता प्रणाली में सुधार संभव है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया का भी 3 अगस्त 2016 को एक पत्र के माध्यम से इस मामले पर ध्यान आकर्षित किया जा चुका है। सभी उच्च न्यायालयों के महापंजीयकों को भी 4 अगस्त 2016 को ई-मेल से जानकारी दी जा चुकी है, साथ ही स्टेट बार काउंसिलों, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड एसोसिएशन को भी ई-मेल भेजे गए थे। विधि आयोग के अध्यक्ष ने सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को भी पत्र भेजकर आग्रह किया था कि वे इस संबंध में आयोग के प्रयासों को अपने स्तर पर प्रसारित करें। इस संबंध में विधि आयोग को भारी मात्रा में सुझाव और जवाब प्राप्त हुए। अधिकांश भागीदारों की राय रही है कि अधिवक्ता जैसे पेशे में अनुशासनहीनता पर कड़ा रुख अपनाया जाए, क्योंकि यह वादकारियों के हितों और अदालतों का मान-सम्मान एवं वकालत के पेशे की गरिमा से जुड़ा विषय है।
बीसीआई की सलाहकार समिति ने भी अधिवक्ता अधिनियम से संबंधित विभिन्न विषयों पर सुझाव दिए हैं। जिनमें वकीलों और उनके संगठनों द्वारा किए जाने वाले कार्य बहिष्कार या काम से विमुख होने जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कठोर उपाय शामिल हैं। इसके अलावा अदालतों में गैर कानूनी रूप से वकालत करने वालों पर लगाए जाने वाले जुर्माने को बढ़ाने, एक साल के पूर्व-पंजीकरण प्रशिक्षण और लॉ फर्मों तथा विदेशी वकीलों के नियमन संबंधी अनुशासन समिति के विषय भी शामिल किए गए हैं। गौरतलब है कि वकालत के पेशे में इन वर्षों में पेशेवर नैतिकता का ह्रास, अनुशासनहीनता, कार्यबहिष्कार और अपराधिक कृत्यों में संलिप्तता जैसे मामलों से न केवल न्याय कार्य प्रभावित हुआ है, अपितु और भी ऐसी चीजें सामने आई हैं, जो वादकारियों के न्याय के अधिकार को प्रभावित करती हैं।