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प्रो. केएन कौल की स्मृति में विशेष व्याख्यान

वनस्पति शास्त्री प्रकृतिप्रेमी एवं एक सफल कृषि वैज्ञानिक

जीवों में पर्यावरणीय तनावों को सहने की क्षमता पर चर्चा

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 15 February 2019 04:05:34 PM

special lecture in memory of pro. kn kaul

लखनऊ। सीएसआईआर-एनबीआरआई लखनऊ ने अपने संस्थापक प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल की स्मृति में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया, जिसमें भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान के भूतपूर्व निदेशक प्रोफेसर एसके आप्टे मुख्य अतिथि के रूपमें शामिल हुए। गौरतलब है कि पद्मभूषण से सम्मानित प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल एक महान भारतीय वनस्पति शास्त्री, प्रकृतिप्रेमी एवं सफल कृषि वैज्ञानिक थे, जिनको बागवानी, वन्यजीव, पेड़-पौधों से काफी लगाव था। उन्होंने ही राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान की वर्ष 1948 में स्थापना की थी, जिसे बाद में वर्ष 1953 में सीएसआईआर-राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान कर दिया गया। प्रोफेसर कैलाशनाथ कॉल ने भारत के बाहर विभिन्न देशों जैसे श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड, जापान, फिलिपींस आदि में भी वनस्पति उद्यानों की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया था।
व्याख्यान का प्रारंभ प्रोफेसर कैलाशनाथ कॉल को श्रद्धांजलि अर्पित करने के साथ हुआ। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एसके बारिक ने कार्यक्रम में पधारे अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रोफेसर केएन कौल के योगदान का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि सीएसआईआर-एनबीआरआई आज जिस नींव पर खड़ा है, उसका निर्माण प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल के विचारों से हुआ है। इस अवसर पर प्रोफेसर कैलाशनाथ कौल के बड़े बेटे गौतम कौल ने अपने पिता एवं सीएसआईआर-एनबीआरआई से जुड़े हुए संस्मरणों को साझा किया। उन्होंने एक देशभक्त क्रांतिकारी से एक प्रख्यात वनस्पति शास्त्री बनने के अपने पिता की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ावों पर प्रकाश डाला एवं इस यात्रा में उनके गुरु प्रख्यात वनस्पति शास्त्री प्रोफेसर बीरबल साहनी के सराहनीय योगदान का भी उल्लेख किया।
नोवेल्टीस ऑफ़ स्ट्रेस मैनेजमेंट इन एन एंसियेंट फोटोडायेजोट्रोफ विषय पर व्याख्यान में प्रोफेसर एसके आप्टे ने ऐसे सूक्ष्म जीवों की चर्चा की, जो सूर्य के प्रकाश की सहायता से न सिर्फ कार्बन, बल्कि नाइट्रोजन से भी अपने भोजन का निर्माण करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। प्रोफेसर एसके आप्टे ने बताया कि एनाबीना नामक जीव धरती पर करोड़ों साल से मौजूद हैं और इस दौरान धरती पर हुई अनेकों घातक उथल-पुथल के बावजूद अपने अस्तित्व को बचाने में सफल रहे हैं। उन्होंने इन जीवों में पर्यावरणीय तनावों को सहने की क्षमता का वर्णन करते हुए पोटैशियम की कमी, अधिक तापमान इत्यादि विभिन्न तनावों के दौरान इन जीवों में होने वाली विभिन्न आणुविक प्रक्रियाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कार्यक्रम में संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक डॉ प्रमोद शिर्के ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।

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