आरती कनौजिया
फैजाबाद, उत्तर प्रदेश। दलित समाज के सरकारी कर्मचारियों के संगठन बामसेफ के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बहुजन समाज पार्टी के काडर कार्यकर्ता योगेंद्र प्रसाद की पुत्री और कानून की छात्रा शशि के अपहरण और उसकी कथित हत्या का बहुचर्चित मामला वहां के दलित समाज में अंदर ही अंदर सुलग रहा है। यहां बच्चे-बच्चे की नजर में पूरी तरह से पर्दाफाश हो चुका यह मामला अभी पुलिस को खोलना बाकी है, जिसकी चाभी उसके पास नहीं है। मुख्यमंत्री मायावती के राजनीतिक समझौतों के कारण उनके गले की हड्डी बनी शशि के असली हत्यारों का पता उसी समय चल गया था, जब शशि के परिवार ने कई गंभीर अपराधिक मुकद्मों का सामना कर रहे मायावती सरकार के तत्कालीन राज्य मंत्री आनंद सेन का नाम लिया कि उसी ने शशि को मरवा दिया है, अब उसकी लाश के बारे में आनंद सेन, उसके ड्राइवर विजय सेन और सीमा आजाद नाम की एक लड़की को ही पता है। बाकी इस मामले में आगे और क्या हो रहा है, इस बारे में पुलिस और मुख्यमंत्री मायावती से ज्यादा कोई नहीं जानता। बहरहाल शशि के परिवार की बहिनजी से न्याय की आस टूट चुकी है।
शशि के जीवित होने और उसकी लाश मिलने की सारी उम्मीदें छोड़ चुके उसके पिता योगेंद्र प्रसाद ने न्याय के लिए फैजाबाद पुलिस के किस अधिकारी का दरवाजा नहीं खटखटाया? वह रोते-फिरते सबसे मनुहार करते हुए किस बसपा नेता के सामने नहीं गिड़गिड़ाया? लेकिन किसी बसपाई ने और किसी पुलिस ने योगेंद्र प्रसाद की कोई मदद नहीं की है। सरकार की फजीहत होते देख, बहन मायावती ने इतना भर उपकार किया कि राज्यमंत्री से इस्तीफा लेकर मामला सीबीआई को भेज दिया। उसने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं। उम्मीद की जा रही थी कि सीबीआई जांच से मामले से पर्दा उठ जाएगा। यह भी होता कि इसमें और भी दसनंबरियों और उनके बड़े-बड़े शरणदाताओं का भी भंडाफोड़ होता। किसे नहीं मालूम कि फैजाबाद का पुलिस प्रशासन और जिला प्रशासन आज भी आनंद सेन और उसके बाहुबली पिता एवं बसपा सांसद मित्रसेन यादव के इशारों पर नाचता आ रहा है। तभी पुलिस वाले योगेंद्र प्रसाद को ‘बड़ा आया बसपा और बामसेफ नेता कहकर’ और शशि के किन्हीं दूसरों से संबंध जोड़कर खिल्ली उड़ा रहे थे। पुलिस ने इसमें वांछित ड्राइवर विजय सेन का नार्को टेस्ट कराया है, शशि के पिता को इसमें भी लीपापोती ही लग रही है।
फैजाबाद और उसके आस-पास की राजनीति पर इस मामले का असर पड़ना लाजिम है। क्योंकि मायावती को अपने ही दलितों के इस ज्वलंत सवाल का उत्तर देना होगा कि जब वे भय, अन्याय और अपराध मुक्त प्रदेश बनाने का दावा करती हैं तो फिर इतने दिन तक एक दलित और वह भी बसपा के समर्पित कार्यकर्ता की बेटी का पता लगाने में या उसके पिता के आरोप पर समय रहते कार्रवाई करने में क्या करती रहीं? इस मामले का फैजाबाद की जनता के बीच पहले ही पर्दाफाश हो चुका था। यह मामला हर खास औ आम की जुबान पर चल रहा है कि आनंद सेन ने शशि की हत्या कराकर उसका शव भी ठिकाने लगा दिया है। फिर पुलिस किसके इशारे पर इस मामले में कोई कार्रवाई करने के बजाय गाल बजाती और उसके पिता योगेंद्र प्रसाद को जलील करती रही? मायावती को अपने दलितों को यह जवाब भी देना होगा कि आखिर क्यों यह मामला सीबीआई को सौंपा गया और सीबीआई जांच शुरू होने से पहले ही उनके कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह ने आनंद सेन को निर्दोष भी करार दे दिया? इससे क्या यह मतलब नहीं निकाला जाए कि राज्य सरकार इस जांच में सीबीआई की कोई मदद नहीं करने वाली है क्योंकि उसका स्टैंड सीबीआई जांच से पहले ही क्लियर हो चुका है?
फैजाबाद की अकबरपुर (सु) लोकसभा सीट से मायावती सांसद रह चुकी हैं और इस बार जिन लोकसभा क्षेत्रों से मायावती के चुनाव लड़ने की चर्चा है उनमें अकबरपुर का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। मुलायम सिंह यादव सरकार के समय में इस क्षेत्र में बसपा काफी कमजोर पड़ गई थी लेकिन इस विधानसभा चुनाव के बाद बसपा में फिर जान आ गई है। यहां यादवों और दलितों का एक ताकतवर समीकरण है, जिसमें मित्रसेन यादव की जरूरत बसपा है और बसपा की कमजोरी मित्रसेन यादव हैं। मित्रसेन यादव इस समय मायावती के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह यादव के धुर विरोधियों में से एक हैं इसलिए मायावती को मित्रसेन और उसके कुनबे की बहुत जरूरत है। यही कारण है कि मायावती ने अपने मंत्रिमंडल विस्तार में मित्रसेन के पुत्र आनंद सेन को अपराधिक मामलों में जेल में रहते ही राज्य मंत्री बना दिया था जिसकी जेल से छूटते ही राज्यमंत्री पद की शपथ भी कराई गई थी।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि मायावती के लिए मित्रसेन यादव और आनंद सेन यादव का कितना राजनीतिक महत्व है। यही वजह मानी जाती है मायावती के एक दलित का साथ छोड़कर, आनंद सेन के साथ खड़े दिखाई देने की। भले ही आनंद सेन ने एक दलित और साकेत महाविद्यालय की कानून की इस छात्रा को गर्भवती बनाकर उसकी जान ले ली हो, लेकिन वह आनंद सेन यादव और मित्रसेन यादव से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है। इस इलाके के दलित खुलकर कह रहे हैं कि मायावती की यह राजनीति उन्हें उसी स्थिति में और सत्ता से कोसों दूर पहुंचा देगी। इस बार सत्ता संभालने के बाद वे अपने ही समाज को पूरी तरह नजरंदाज कर रही हैं यह मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है। ऐसा महसूस होता है कि उनके आस-पास ऐसे लोगों का जमघट है जो उन्हें राज्य की सच्चाइयों से दूर रख रहेहैं, और जो उनके संघर्ष के साथी रहे हैं।