स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
श्रीनगर। जम्मू-कश्मीर जल रहा है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड की जमीन के मामले में जम्मू-कश्मीर सरकार के एक फैसले ने वो आग लगाई है कि आज पूरे जम्मू-कश्मीर के दस जिले कर्फ्यू से ग्रस्त हैं और जगह-जगह आर्थिक नाकेबंदी से हाहाकार मचा हुआ है। इस राज्य की जनता अब आपस में भिड़ गई है इसलिए कर्फ्यू भी बेअसर है और सर्वदलीय वार्ताएं भी विफल साबित हो रही हैं। राजनीतिक दलों का जहां तक सवाल है उनके नेताओं की उपयोगिता केवल जनता को भड़काने तक ही सीमित होकर रह गई है। अब उनके वश में नहीं रहा है कि वे उग्र जनता को शांत कर सके इसलिए सेना और पुलिस को सड़कों पर उतरना पड़ा है और उन्हें नियंत्रित करने के प्रयास में अब तक कश्मीर में बीस से भी ज्यादा लोग मौत का शिकार हो गए हैं।
जम्मू-कश्मीर की गुलामनबी आजाद सरकार ने श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को उसकी सुगम यात्रा के लिए जमीन का आवंटन किया और घाटी के पीडीपी जैसे राजनीतिक दलों के दबाव में तुरंत ही वह जमीन वापस भी ले ली गई यानि उसका आवंटन खारिज कर दिया गया। सरकार के इस फैसले ने घाटी में आग लगा दी है और यह आग पूरे देश में फैलती जा रही है। केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर सरकार के अब तक के जो भी शांति प्रयास थे वो विफल हो गए हैं। मुजफ्फराबाद में हालात इतने बिगड़े कि उसमें एक हुर्रियत नेता शेख अब्दुल अजीज की पुलिस फायरिंग में मौत हो गई। अमरनाथ श्राइन बोर्ड की संघर्ष समिति के एक सदस्य के जम्मू-कश्मीर सरकार के फैसले से बोर्ड को दी गई जमीन वापस लेने के फैसले से क्षुब्ध होकर आत्महत्या करने के बाद घाटी के हालात बिगड़े थे। वह दिन है और आज तक घाटी में आंदोलन की आग बढ़ती जा रही है। यदि जम्मू-कश्मीर सरकार भूमि आवंटन को रद नहीं करती तो हो सकता था कि यह मामला कुछ समय चलने के बाद अपने आप ठंडा हो जाता लेकिन सरकार के जमीन वापसी के फैसले ने जम्मू कश्मीर को आग में ही झोंक दिया है।
देश में लोकसभा चुनाव करीब आ रहे हैं। श्री अमरनाथ यात्रा जमीन विवाद जम्मू-कश्मीर से बाहर भी पसर गया है। देश के दूसरे राज्यों में भी इसकी गूंज हो रही है और धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। राज्य सरकारों के लिए यह अतिसंवेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है। यह कानून-व्यवस्था पर भारी पड़ रहा है और सांप्रदायिक सौहार्द्र को भी बिगाड़ रहा है। यह कोई सांप्रदायिक मुद्दा नहीं था लेकिन जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की राजनीतिक पार्टी पीडीपी ने इसे वो रंग दिया कि यह मुद्दा अब अत्यंत नाजुक बन गया है। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी और देश के अन्य भागों में हिंदू संगठनों ने इसे मुद्दा बनाकर आंदोलन शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भाजपा के लोगों पर लाठियां चलवाकर प्रदेश के दूसरे भागों में भी इसे फैला दिया है। इस मामले से निपटने के राजनीतिक प्रयास फिलहाल सफल होते नहीं दिखाई देते क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इसमें कूद पड़ी है। कांग्रेस को मुसलमान वोटों की जरूरत है और भारतीय जनता पार्टी हिंदू वादी लोगों को इकट्ठा करके इस मामले को चुनाव तक खींचना चाहती है। इसलिए मामला अब शांत होने वाला नहीं लगता। यह किसी भी राजनीतिक दल की भेंट जरूर लेगा।
आतंकवाद से नहीं बल्कि इस बार कश्मीर आतंकवाद से भी बड़ी समस्या का सामना कर रहा है। जम्मू-कश्मीर की गुलाम नबी आजाद सरकार ने श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को पहले तो जमीन आवंटित कर दी और फिर घाटी के लोगों के दबाव में उसे वापस ले लिया। इससे जो जम्मू में आग लगी वह धीरे-धीरे पूरे कश्मीर में फैल गई है और अब जम्मू कश्मीर सुलग रहा है। न यहां पर कर्फ्यू का डर है और न ही सेना की गोलियों का। न यहां पर किसी हुर्रियत की चिंता है और न यहां किन्हीं हिंदू नेताओं की। अमरनाथ संघर्ष समिति के आह्वान पर आर्थिक नाकेबंदी होने के बाद कश्मीर के हालात और भी ज्यादा बिगड़ गए। संघर्ष समिति साफ कह रही है कि जब तक अमरनाथ श्राइन बोर्ड को वह जमीन वापस नहीं दी जाती तब तक कोई भी समझौता नहीं होगा चाहे जम्मू कश्मीर में जो भी हो।