विपिन कुमार सिंह
लखनऊ। ‘हमारा काम आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी बनाने के साथ-साथ यह भी है कि आप यह सीखें कि आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने व्यक्तित्व का भी प्रदर्शन करना है। ऐसा दिखना चाहिए कि आप अपने में एक संपूर्ण खेल व्यक्तित्व हैं, इसलिए हम चाहते हैं कि आप अपने खेल पर पूरा ध्यान दें और साथ ही अपने व्यक्तित्व की उन कमियों को भी सुधारें जो आगे चलकर आपकी स्पर्धा में बाधा बन सकती हैं।’
लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कालेज के प्रधानाचार्य निर्मल सिंह सैनी सबेरे साढ़े पांच बजे कालेज के खिलाड़ी छात्र-छात्राओं की एसेंबली में यह प्रेरणा दे रहे हैं। निर्मल सिंह सैनी अपने बच्चों को यह प्रेरणा रोज देते हैं। इस कालेज ने देश को विभिन्न खेलों में अंतराष्ट्रीय स्तर की कई प्रतिभाएं दी हैं इनमें भी ऐसी कई प्रतिभाएं अपने लक्ष्य का पीछा कर रहीं हैं। उनमें और कहां सुधार की जरूरत है इस पर निर्मल सिंह सैनी और उनके प्रशिक्षक खिलाड़ियों पर नियमित रूप से नज़र रखते हैं। वे इन खिलाड़ियों को अपने देश की संस्कृति भाषा और संस्कारों के प्रति भी जागरूक करते हैं और उसके बाद सभी खिलाड़ी अपने-अपने प्रशिक्षकों के सानिध्य में चले जाते हैं, जो उनको प्रशिक्षण दे रहे हैं। खिलाड़ी क्रिकेट, हाकी, बॉलीवाल, जिमनास्टिक, भारोत्तोलन और धावकों वाले ग्रुप में चले जाते हैं। यहां पर उच्च स्तर का जिम है जिसमें खिलाड़ियों को अपनी शारीरिक दक्षता बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षकों एवं विशेषज्ञों का मार्गदर्शन मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के प्रशिक्षक गोविंद शर्मा की देख-रेख में यहां के जिम में भारोत्तलन प्रतियोगिता की तैयारियां जोर-शोर से चल रहीं हैं। यहां पर यहां भी उनके प्रशिक्षक अपने प्रशिक्षण की शुरूआत प्रेरणादायी संवादों से करते हैं।
यहां के कड़े अनुशासन और एक अच्छे खेल वातावरण के बारे में मीडिया और अभिभावकों में चर्चा होती रही है। जो खिलाड़ी यहां से अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में चयनित हो कर आगे निकले हैं, वे अपने साक्षात्कार में भी इसकी चर्चा किया करते हैं। इसलिए एक दिन मैंने जब गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कालेज लखनऊ के खिलाड़ियों की एसेंबली देखी तो मुझे यह देखकर इतना अच्छा लगा कि मन किया कि मैं भी यहां दाखिला ले लूं, और इस असेंबली में रोज शामिल होऊं। लेकिन अगले क्षण मुझे एहसास हुआ कि केवल मैं यह कल्पना ही कर सकता हूं क्योंकि यहां मेरे लिए कोई स्पर्धा नहीं है। यहां दाखिले के नियम कानून हैं, खिलाड़ियों में स्पर्धाएं हैं, इसलिए यह इच्छा मेरे मन में ही रही कि मैं भी यहां एसेंबली का हिस्सा बनूं और रोज उन विचारों को सुनूं जो यहां के प्रधानाचार्य और प्रशिक्षक अपने प्रशिक्षणार्थियों के साथ आदान-प्रदान करते हैं। इनका कर्तव्य और प्रेरणा देखकर मुझे बचपन में अपने स्कूल की एसेंबली याद आ रही थी जिसमें प्रार्थना हुआ करती थी कि ‘वह शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं’ और मुझे अपना कर्तव्य याद आ गया जिसके लिए मैं यहां आया था।
मैं इस खेल परिसर में लगभग सभी खेलों की तरफ गया। मुझे यहां के कड़े अनुशासन का भी ध्यान रखना था। सबसे पहले मैं क्रिकेट के प्रशिक्षणार्थियों की तरफ बढ़ा। वे अनुशासित होकर एक लाइन में खड़े थे। क्रिकेट से मेरा भी लगाव है। मैने यहां भी देखा कि क्रिकेट प्रशिक्षक दीपक शर्मा और राजू सिंह चौहान भी अपने खिलाड़ियों से यही कह रहे थे कि ‘हम यहां आपको खेल का बेहतर प्रशिक्षण तो देते ही हैं, लेकिन हम यह भी सिखाते हैं और उम्मीद करते हैं, कि आप जब आगे जाएंगे तो आपको दुनिया के सामने अपने खेल का शानदार प्रदर्शन ही नहीं करना है, बल्कि अपने देश की गरिमा, शिक्षा और संस्कार के साथ अपने व्यक्तित्व का भी श्रेष्ठ प्रदर्शन करना है। क्योंकि अगर खेल आपको विजेता बनाता है, तो उसके दूसरे पक्ष खेल की आत्मा हैं।’ प्रशिक्षु खिलाड़ी बड़े ध्यान से अपने प्रशिक्षकों के आदर्श विचार ग्रहण करते हैं और अपने नियमित अभ्यास में जुट जाते हैं। यह सब देखकर मैं अन्य खिलाड़ियों की ओर बढ़ गया और खिलाड़ी अपने-अपने प्रातःकालीन अभ्यास में जुट गए। यहां खिलाड़ियों में अपने जीवन की इस पारी के प्रति भी बड़ी उत्सुकता दिखी। हॉस्टल की एक अलग ही जिंदगी होती है, जहां एक अच्छा वातावरण मिल जाए तो कहने ही क्या हैं। कई खिलाड़ियों से बात करने पर पता चला कि यहां हॉस्टल में आने के बाद उनकी वह झिझक खत्म हो गयी जो कि किसी भी खिलाड़ी के अंदर किन्ही भी कारणों से हीन भावना के कारण आती है। क्योंकि यहां सभी खिलाड़ी जाति भेद और सामाजिक असमानता से ऊपर उठकर एक साथ खेलते, खाते, सोते हैं। यहां के प्रबंध के बारे में खिलाड़ी बहुत आश्वस्त दिखे। कुछ नए खिलाड़ियों को अपने घर के प्रति काफी भावुक दिखे। लेकिन यहां अपने भविष्य का भी मामला है और इसमें सभी को एक ही तरह से रहना होता है।
स्पोर्ट्स कालेज की यह नियमित दिनचर्या है, जिसे देखकर मेरे मन में प्रश्न खड़े हुए कि अगर ऐसे ही सब जगह होता होगा तो फिर खेल में अंतरराष्ट्रीय मैदानों पर खिलाड़ियों के बीच में कभी-कभी अपने देश की जग-हंसाई क्यों हो जाती है? हॉकी, क्रिकेट, फुटबाल जैसे विख्यात खेलों में हम देखते आ रहें हैं कि खिलाड़ी खेलते-खेलते लड़ने लगते हैं, गाली-गलौज पर उतारू हो जाते हैं, जिससे खेल का जो आनंद है वह मिट्टी में मिल जाता है। यह किस देश का खिलाड़ी था या वह कौन है आपस में इन प्रश्नों की बौछार शुरू हो जाती है और जब देश का नाम सामने आता है तो उसका जनाजा निकलना स्वाभाविक ही है। मगर अब यह देखा जा रहा है कि खेल प्रशिक्षण में खिलाड़ी के व्यक्तित्व के विकास पर भी पूरा जोर दिया जा रहा है और खिलाड़ी को समझाया जा रहा है कि व्यक्तित्व के अभाव में उसके खेल के कोई मायने नहीं हैं। यही मैंने लखनऊ के स्पोर्ट्स कालेज में देखा है और एक प्रशिक्षक से मैंने जब प्रश्न किया तो उनका बड़ा ही साफ कहना था कि अनुशासन नहीं तो खेल नहीं।
पिछले कुछ समय से अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के सामान्य व्यवहार की देश में काफी चर्चा होती आ रही है। यह व्यवहार खेल मर्यादा की सीमाएं लांघ रहा है और अभद्रता की हद हो गई है। क्रिकेट, हॉकी और फुटबाल में सिर फुटव्वल की नौबत है जिससे दर्शकों का उत्साह और यकीन खत्म होता जा रहा है। निश्चित रूप से दर्शक खेल देखने आते हैं न कि गाली-गलौज सुनने। दर्शक टीवी के सामने या मैदान पर अगर किसी खिलाड़ी का खेल देखते हैं तो वह यह विवेचन भी करते हैं कि खिलाड़ी का सामान्य व्यवहार कैसा है? जिस देश का वह प्रतिनिधित्व कर रहा होता है उसकी प्रत्तिछाया की झलक भी उस खिलाड़ी में दिखाई देती है और यदि वह उद्दंडता पर उतारू होता है तो उस देश की बदनामी भी उस खिलाड़ी के नाम के साथ होती है।
अंर्तराष्ट्रीय खेलों में खिलाड़ियों के सामान्य व्यवहार की एक गंभीर समस्या से खेल जगत परेशान है। दुनिया में जितनी भी खेल प्रतियोगिताएं हो रही हैं या होती आ रही हैं उनमें खिलाड़ियों के व्यवहार को लेकर सख्त नियम कानून तो लागू हैं लेकिन उनका अनुपालन उतनी कड़ाई से नहीं हो पाता है जिससे ये नियम कानून बेमानी हो जाती हैं। उसका प्रमुख कारण यही है कि जिस खिलाड़ी को उसके प्रारंभिक प्रशिक्षण के समय ही नियमित रूप से उसके सामान्य व्यवहार और व्यक्तित्व को लेकर जागरूक नहीं किया जाएगा तो यह समस्या ज्यों की त्यों बनी रहेगी जिसका किसी भी सख्त नियम कानून में समाधान नहीं मिल सकता। चीन में ओलंपिक खेल शुरू हो गए हैं लेकिन खेल संघों में जहां अपने खिलाड़ियों के बेहतर प्रदर्शन को लेकर रस्सा-कसी है वहीं एक चिंता भी साथ-साथ चल रही है और वो यही है कि खिलाड़ी का अंतरराष्ट्रीय मैदान पर खेल के दौरान सामान्य व्यवहार।
पिछले कुछ समय में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट, फुटबाल और हॉकी खिलाड़ियों में एक दूसरे के प्रति जो भद्दा व्यवहार मैदान पर देखने को मिला उससे क्रिकेट जैसा शालीन खेल तो प्रभावित हुआ ही वे देश भी उसकी चपेट में आए जिन देशों के खिलाड़ियों के व्यवहार को देश-दुनिया ने नफरत से देखा। क्रिकेट में किसी भी अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह मैदान पर चाहे जैसा व्यवहार करे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचते ही उससे अपने देश की उम्मीदें बढ़ जाती हैं। उम्मीद की जाती है कि वह बेहतर से बेहतर खेल का प्रदर्शन करेगा और साथ ही विजयी होने पर अपने देश की पताका फहराते हुए अपने व्यक्तित्व का भी शानदार प्रदर्शन करेगा जो कि उसके देश की मान मर्यादा को आगे बढ़ाता है। किसी खिलाड़ी के खेल के मानकों में अकेले खेल ही शामिल नहीं किया जा सकता।
जिस प्रकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौंदर्य प्रतियोगिताओं में किसी सुंदरी को चयनित करने के लिए केवल उसकी शारीरिक सुंदरता ही काफी नहीं होती है वैसे ही एक खिलाड़ी के लिए उसका मात्र खेलना ही मानक नहीं माना जा सकता। उसे खेल के साथ-साथ अपने व्यक्तित्व की परीक्षा से भी गुजरना चाहिए। इस पर एक लंबी बहस छिड़ी हुई है। यहां किसी खिलाड़ी विशेष या देश विशेष का नाम नहीं लिया जा रहा है लेकिन अनुशासनहीनता की बीमारी सभी जगह फैल रही है जिस पर तभी काबू पाया जा सकता है जब खिलाड़ी को उसके प्रारंभिक प्रशिक्षण काल में ही उसके व्यक्तित्व के सभी पक्षो के प्रति जागरूक किया जाए।
लखनऊ के गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कालेज में खिलाड़ियों की प्रातःकाल एसेंबली में खेल के उच्च प्रशिक्षण के साथ-साथ यह देखकर भी मुझे बहुत खुशी हुई कि यहां प्रशिक्षु खिलाड़ियों का व्यक्तित्व विकास भी उनके खेल प्रशिक्षण का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें यहां के प्रशिक्षक और प्रधानाचार्य नियमित रूप से इसका पर्यवेक्षण करते हैं। अगर ऐसा ही और इतनी गंभीरता से देश-प्रदेश के अन्य प्रशिक्षण केंद्रों पर भी हो रहा हो तो फिर कोई चिंता की बात नहीं है। हमें एक न एक दिन खिलाड़ी और उसके व्यक्तित्व को भी उतने ही नंबर देने होंगे जितनी उसके खेल की सफलता पर दिए गए हैं।