स्वतंत्र आवाज़
word map

देश में भगवान बुद्ध की विरासत का पुनरुद्धार!

'पाली भाषा को शास्त्रीय दर्जा महान बुद्ध विरासत का सम्मान'

अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस पर बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 17 October 2024 03:46:34 PM

international abhidhamma day

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस समारोह का विज्ञान भवन नई दिल्ली में उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि इस वर्ष अभिधम्म दिवस के आयोजन केसाथ एक ऐतिहासिक उपलब्धि जुड़ी है, भगवान बुद्ध के अभिधम्म, उनकी वाणी, उनकी शिक्षा विरासत जिस पाली भाषा में विश्व को मिली हैं, इसी महीने भारत सरकार ने उसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया है, इसलिए आज ये अवसर और भी खास हो जाता है। उन्होंने कहाकि पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान है। उन्होंने कहाकि धम्म के मूल भाव को समझने केलिए पाली भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है, धम्म यानी बुद्ध के संदेश, सिद्धांत, मानव के अस्तित्व से जुड़े सवालों का समाधान, मानव मात्र केलिए शांति का मार्ग, बुद्ध की सर्वकालिक शिक्षाएं और समूची मानवता के कल्याण का अटल आश्वासन! उन्होंने कहाकि विश्व भगवान बुद्ध के धम्म से प्रकाश लेता रहा है। गौरतलब हैकि अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस इससे पहले 2021 में कुशीनगर में आयोजित हुआ था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि दुर्भाग्य से पाली जैसी प्राचीन भाषा, जिसमें भगवान बुद्ध की मूल वाणी है, वो आज सामान्य प्रयोग में नहीं है। उन्होंने कहाकि भाषा केवल संवाद का माध्यमभर नहीं होती, भाषा सभ्यता और संस्कृति की आत्मा होती है, हर भाषा से उसके मूलभाव जुड़े होते हैं, इसलिए भगवान बुद्ध की वाणी को उसके मूलभाव केसाथ जीवंत रखने केलिए पाली को जीवंत रखना हम सबकी ज़िम्मेदारी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि उनकी सरकार ने ये ज़िम्मेदारी निभाई है, भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों, लाखों भिक्षुकों की अपेक्षा को पूरा करने का कारगर प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने कहाकि अभिधम्म दिवस हमें याद दिलाता हैकि करुणा और सद्भावना सेही हम दुनिया को और बेहतर बना सकते हैं और ये मेरा सौभाग्य हैकि भगवान बुद्ध केसाथ जुड़ाव की जो यात्रा मेरे जन्म केसाथ ही शुरू हुई है, वो अनवरत जारी है। उन्होंने कहाकि मेरा जन्म गुजरात के वडनगर में हुआ, जो एक समय बौद्ध धर्म का महान केंद्र हुआ करता था, उन्हीं प्रेरणाओं को जीते-जीते मुझे तथागत गौतम बुद्ध के धम्म और शिक्षाओं के प्रसार के इतने सारे अनुभव मिल रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उल्लेख कियाकि इन 10 वर्ष में भारत के ऐतिहासिक बौद्ध तीर्थ स्थानों से लेकर दुनिया के देशों तक नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली के दर्शन, मंगोलिया में उनकी प्रतिमा के अनावरण से लेकर श्रीलंका में वैशाख समारोह तक उन्हें कितने ही पवित्र आयोजनों में शामिल होने का अवसर मिला है। उन्होंने कहाकि आजही भारतीय चेतना के महान ऋषि वाल्मीकि की जन्म जयंती भी है, मैं देशवासियों को वाल्मीकि जयंती की भी बधाई देता हूं। उन्होंने कहाकि भाषा, साहित्य, कला, आध्यात्म, किसीभी राष्ट्र की ये धरोहरें उसके अस्तित्व को परिभाषित करती हैं, हर राष्ट्र अपनी विरासत को अपनी पहचान केसाथ जोड़ता है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत इस दिशा में काफी पीछे छूट गया था, जो बुद्ध भारत की आत्मा में बसे हैं, आज़ादी के समय बुद्ध के जिन प्रतीकों को भारत के प्रतीक चिन्हों के तौरपर अंगीकार किया गया, बादके दशकों में उन्हीं बुद्ध को भूलते चले गए, पाली भाषा को सही स्थान मिलने में 7 दशक ऐसे ही नहीं लगे। प्रधानमंत्री ने कहाकि देखिए कितना बड़ा सुभग संयोग हैकि बाबासाहेब डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर से भी ये सुखद रूपसे जुड़ जाता है, बौद्ध धर्म के महान अनुयायी हमारे बाबासाहेब की पाली में धम्म दीक्षा हुई थी और स्वयं उनकी मातृभाषा मराठी थी। उन्होंने कहाकि इसी तरह हमने बांग्ला, असमिया और प्राकृत भाषा को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है।
प्रधानमंत्री ने कहाकि हमने अपने संकल्पों को पूरा करने केलिए लालकिले से ‘पंच प्राण’ का विज़न देश के सामने रखा है, पंच प्राण यानी-विकसित भारत का निर्माण, गुलामी की मानसिकता से मुक्ति, देश की एकता, कर्तव्यों का पालन और अपनी विरासत पर गर्व, इसीलिए आज भारत, तेज़ विकास और समृद्ध विरासत के दोनों संकल्पों को एकसाथ सिद्ध करने में जुटा हुआ है। उन्होंने कहाकि भगवान बुद्ध से जुड़ी विरासत का संरक्षण इस अभियान की प्राथमिकता है, हम भारत और नेपाल में भगवान बुद्ध से जुड़े स्थानों को बुद्ध सर्किट के रूप में विकसित कर रहे हैं, कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी शुरू किया गया है। लुम्बिनी में भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र का निर्माण होरहा है, बौद्ध विश्वविद्यालय में हमने बाबासाहेब अम्बेडकर बौद्ध अध्ययन केलिए पीठ की स्थापना की है। बोधगया, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, सांची, सतना और रीवा जैसे कई स्थानों पर कितने ही विकास परियोजनाएं चल रही हैं। उन्होंने कहाकि 20 अक्टूबर को मैं वाराणसी जा रहा हूं, जहां सारनाथ में हुए अनेक विकास कार्यों का लोकार्पण भी किया जाएगा। उन्होंने कहाकि हम नए निर्माण के साथ-साथ अपने अतीत कोभी सुरक्षित कर रहे हैं, इन 10 वर्ष में हम 600 से ज्यादा प्राचीन धरोहरों, कलाकृतियों और अवशेषों को दुनिया के अलग-अलग देशों से वापस भारत लाए हैं, इनमें से कई अवशेष बौद्ध धर्म से संबंधित हैं यानि बुद्ध की विरासत के पुनर्जागरण में भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता को नए सिरे से प्रस्तुत कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारत की बुद्ध में आस्था केवल अपने लिए ही नहीं, बल्कि पूरी मानवता की सेवा का मार्ग है, दुनिया के देश, जोभी बुद्ध को जानने और मानने वाले लोग हैं, उन्हें हम इस मिशन में एकसाथ ला रहे हैं और दुनिया के कई देशों में इस दिशा में सार्थक प्रयास भी किए जा रहे हैं, म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड समेत कई देशों में पाली भाषा में टीकाएं संकलित की जा रही हैं। उन्होंने कहाकि भारत में भी हम ऐसे प्रयासों को तेज कररहे हैं, पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ हम पाली को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल आर्काइव्स और ऐप्स के जरिए भी प्रमोट करने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहाकि बुद्ध बोध भी हैं, और बुद्ध शोध भी हैं, इसलिए हम भगवान बुद्ध को जानने केलिए आंतरिक और अकैडमिक दोनों तरह की रिसर्च पर जोर दे रहे हैं और इसमें हमारे संघ, बौद्ध संस्थान, भिक्षुकगण युवाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि एकबार फिर विश्व कई अस्थिरताओं और आशंकाओं से घिरा है, ऐसे में बुद्ध न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि अपरिहार्य भी बन चुके हैं। उन्होंने जिक्र कियाकि यूनाइटेड नेशन्स में उन्होंने कहा थाकि भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बुद्ध दिए हैं और आज मैं बड़े विश्वास से कहता हूंकि विश्व को युद्ध में नहीं, बुद्ध में ही समाधान मिलेंगे। उन्होंने अभिधम्म पर्व पर विश्व का आह्वान कियाकि बुद्ध से सीखिए, युद्ध को दूर करिए और शांति का पथ प्रशस्त करिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि हमारी सरकार के कितने ही निर्णय बुद्ध, धम्म और संघ से प्रेरित हैं, आज दुनिया में जहांभी संकट की स्थिति होती है, वहां भारत प्रथम प्रत्युत्तरकर्ता के रूपमें मौजूद रहता है, यह बुद्ध के करुणा के सिद्धांत का ही विस्तार है, चाहे तुर्किए में भूकंप हो, श्रीलंका में आर्थिक संकट की स्थिति हो, कोविड जैसी महामारी के हालात हों भारत ने आगे बढ़कर मदद का हाथ बढ़ाया है। उन्होंने कहाकि विश्वबंधु के रूपमें भारत सबको साथ लेकर चल रहा है, योग हो या मिलेट्स से जुड़ा अभियान, आयुर्वेद हो या नैचुरल फार्मिंग से जुड़ा अभियान हमारे ऐसे प्रयासों के पीछे भगवान बुद्ध की भी प्रेरणा है। उन्होंने कहाकि विकसित होने की तरफ बढ़ रहा भारत अपनी जड़ों को भी मजबूत कर रहा है, हमारा प्रयास हैकि भारत का युवा साइंस और टेक्नॉलॉजी में विश्व का नेतृत्व करे और अपनी संस्कृति एवं संस्कारों पर भी गर्व करे, इन प्रयासों में बौद्ध धर्म की शिक्षाएं हमारी बड़ी मार्गदर्शक हैं। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, माइनॉरिटी अफेयर्स मिनिस्टर किरण रिजिजू, भंते भदंत राहुल बोधी महाथेरो, वेनेरेबल चांगचुप छोदैन, महासंघ के गणमान्य सदस्य, महानुभाव, राजनयिक, बौद्ध विद्वान और धम्म के अनुयायी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]