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Thursday 26 May 2016 04:47:00 AM
बीजिंग/ नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भारत और चीन के बीच गहरे विश्वास, आर्थिक विकास, सामाजिक और धार्मिक संबंधों की आवश्यकता पर बार-बार जोर देते हुए कहा है कि दोनों देशों के लिए इससे कम पर काम नहीं चलेगा। पीकिंग विश्वविद्यालय में 'भारत-चीन संबंध जनकेंद्रित साझेदारी के लिए आठ कदम' विषय पर एक व्याख्यान देते हुए राष्ट्रपति ने कहा है कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के समय में भारत और चीन विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या के दबाव के बावजूद, एकता और विकास को बनाए रखने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्व में अर्थव्यवस्था के साथ-साथ क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए दोनों देशों के संयुक्त योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है, भारत और चीन शीर्ष वैश्विक शक्तियों की श्रेणी में शामिल होने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि यह दोनों देशों पर निर्भर करता है कि वे क्षेत्रीय और वैश्विक समृद्धि को पोषित करने पर बराबर ध्यान केंद्रित हुए उभरती हुई आर्थिक ताकत भी बने रहें।
राष्ट्रपति ने कहा कि 'एशियाई सदी' में सकारात्मक ऊर्जा और पुर्नरूत्थान के सृजन के लिए आपस में हाथ मिलाने के लिए दोनों देश उपलब्ध अवसर की दहलीज पर हैं, यह काम आसान नहीं होगा, सभी बाधाओं को धैर्य के साथ हल करने की जरूरत है, दोनों देशों को अपने-अपने सपने साकार करने के लिए मजबूत रहना चाहिए, उन्हें स्थिर दोस्ती के लिए हाथ मिलाने चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि घनिष्ठ विकासात्मक भागीदारी के लिए भारत और चीन के मध्य राजनीतिक समझदारी बहुत महत्वपूर्ण है, जो राजनीतिक संचार को बढ़ाकर विकसित की जा सकती है। उन्होंने कहा कि जनकेंद्रित भागीदारी बनाने के लिए आपसी सम्मान के बारे में आपसी विश्वास होना चाहिए और संबंधित राजनीतिक और सामाजिक प्रणालियों की बेहतर सराहना होनी चाहिए, यह सब सभी स्तरों पर नजदीकी संपर्कों से प्राप्त किया जा सकता है। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि दोनों देशों की जनता को आपसी हितों के लिए सहयोग को और मजबूत बनाने की जरूरत है। राष्ट्रपति ने गांधीजी का उद्धरण देते हुए कहा कि मैं उस दिन के लिए उत्सुक हूं, जब स्वतंत्र भारत और स्वतंत्र चीन अपनी भलाई और एशिया तथा विश्व की भलाई के लिए एक मैत्री और भाईचारे के वातावरण में मिलकर काम करेंगे।
प्रणब मुखर्जी ने भारत और चीन के लोगों का आह्वान किया कि वे मौजूदा चुनौतियों के बावजूद इस उद्देश्य के लिए बिना थके काम करें। जनकेंद्रित भारत-चीन संबंधों के प्रयासों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत और चीन युवा समाज हैं, हमारे युवाओं की साझा महत्वाकांक्षाएं और धारणाएं हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि युवाओं का वार्षिक आदान-प्रदान बहुत लाभदायक रहा है, लेकिन दोनों पक्षों को उनकी संभावनाओं में तालमेल बैठाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि डिजिटल युग में संयुक्त फिल्म उत्पादन हमारी जनता में सकारात्मक भावनाओं का निर्माण करने में लाभदायक औजार बन सकता है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा के संस्थानों में अधिक आदान-प्रदान, अधिक सांस्कृतिक उत्सवों, संयुक्त अनुसंधान और छात्रवृत्ति कार्यक्रमों से इस धारणा को दूर करने में मदद मिल सकती है कि हमें पश्चिम देशों की ओर देखने की जरूरत पड़ती है, बल्कि हमें शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति करने के लिए एक-दूसरे की ओर देखने की जरूरत है।
राष्ट्रपति ने कहा कि दोनों देशों के मध्य यात्रा भी एक बहुत महत्वपूर्ण कारक हो सकता है, भारत के लोग चीन में अपने पवित्र स्थलों की यात्रा के अवसर प्राप्त करना चाहेंगे तो इसके बदले भारत में बौद्ध धार्मिक स्थलों के लिए चीन के लोगों की यात्राओं का भी स्वागत करेंगे। राष्ट्रपति ने कहा कि सतत समाधानों और अनुभवों को साझा करके दोनों देशों के नागरिक समाज, संबंधित मानदंडों का सम्मान करते हुए सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम जी-20, ब्रिक्स, ईएएस, एआईआईबी, एससीओ और संयुक्त राष्ट्र सहित बहुपक्षीय मंचों का आपस में मिलकर साझा भविष्य को आकार देने के लिए दोनों देशों द्वारा इच्छित जन चेतना को बढ़ाने के लिए उपयोग कर सकते हैं, हमारी समानताओं को और मजबूत करने के लिए व्यापार और वाणिज्य सबसे शक्तिशाली एजेंट हो सकते हैं। उन्होंने व्यापार के नए मॉडलों का सृजन करने के लिए संयुक्त नवाचार हेतु भारत-चीन के उद्यमियों का आह्वान किया।