Wednesday 22 August 2018 04:15:45 PM
दिनेश शर्मा
लखनऊ/ नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के शिखर राजनेता, लखनऊ से पांच बार सांसद, तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ में पहली पसंद लालजी टंडन को बिहार का राज्यपाल बना दिया गया है। लालजी टंडन लखनऊ से लेकर दिल्ली तक जनसंघ, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जाना पहचाना नाम है। अटल बिहारी वाजपेयी ने जब सक्रिय राजनीति से सन्यास लिया तो उनके स्थान पर लालजी टंडन ही लखनऊ से लोकसभा चुनाव लड़े और उनकी खड़ाऊं रखकर आगे का राजनीतिक सफर तय किया। उत्तर प्रदेश सरकार में कई बार मंत्री रहे लालजी टंडन का राजनीतिक और सामाजिक इतिहास बहुत समृद्धशाली है और नवाबों की नगरी लखनऊ को वे अपने हाथ की रेखाओं की तरह जानते हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज जिन महानुभावों को राज्यपाल नियुक्त किया है, उनमें लालजी टंडन का नाम सर्वाधिक चर्चा में है। गौरतलब है कि उनके पुत्र आशुतोष टंडन गोपालजी भी योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं और उनके पास दो महत्वपूर्ण विभाग हैं। लालजी टंडन वर्ष 2003-2007 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा में नेता विरोधी दल भी रहे हैं।
लखनऊ के विश्व प्रसिद्ध चौक से लालजी टंडन का जनम-जनम का नाता है, वहां उनका पुश्तैनी घर है। लखनऊ में भाजपा मुख्यालय के बराबर में जरूर उनको सरकारी आवास मिला है, लेकिन वे चौकवाले घर में ही रहते हैं, अब यह अलग बात है कि राज्यपाल हो जाने के बाद उन्हें अपना ज्यादा वक्त बिहार को देना होगा, लेकिन यह भी देखिएगा कि उनका लखनऊ का मोह बना रहेगा, क्योंकि लखनऊ उनकी जीवनशैली, परंपरागत दिनचर्या में रचा-बसा है। वे आज पटना में तो कल लखनऊ में दिखाई दिया करेंगे, क्योंकि उनके चाहने वालों और उनकी बैठकवालों की एक कतार है, जिनमें कुछ तो ऐसे हैं, जिनसे नहीं मिलकर न तो लालजी टंडन का हाजमा होता है और न उनका। लालजी टंडन की जीवनशैली ऐसी है, जिसमें कोई भौकाल नहीं है, वे सभी से उन्मुक्त स्वभाव से मिलते हैं और सभी उनका बड़ा सम्मान करते हैं। लालजी टंडन ऐसे ही अनेक कारणों से अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी और प्रिय बने।
लालजी टंडन बसपा अध्यक्ष मायावती की सरकार में भी मंत्री बनाए गए थे। वे हमेशा एक शक्तिशाली और प्रभावशाली मंत्री रहे हैं। उन्होंने मायावती के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाए रखे। मायावती भी उनसे काफी प्रभावित रही हैं और वे उन्हें राखी भी बांधती हैं। लालजी टंडन ने ही अनेक भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का यदाकदा कोप भी झेला है, जो यह समझते थे कि मायावती भाजपा का नुकसान करती है और वह ही मायावती सरकार को भाजपा का समर्थन दिलाने में सबसे आगे रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से लालजी टंडन की सक्रियता घट गई थी, जब उनके स्थान पर लखनऊ से राजनाथ सिंह को लड़ा दिया गया था। वे विधानसभा चुनाव नहीं लड़े और उन्होंने अपने पुत्र आशुतोष टंडन को राजनीतिक विरासत सौंप दी। लालजी टंडन को राज्यपाल बनाया जा सकता है, इसका अंदाजा तो लगभग सभी को था, लेकिन वे तब राज्यपाल बनाए गए हैं, मोदी सरकार का कुछ ही महीनों का कार्यकाल बचा है। आनेवाले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की सत्ता में वापसी जरूर होगी, यह सभी को विश्वास है, इसलिए आशा की जाती है कि लालजी टंडन का नया राजयोग अपने पूरे कार्यकाल चलेगा। लालजी टंडन के मीडिया से भी बड़े मधुर संबंध हैं। यद्यपि वे सक्रिय रूपसे पत्रकार नहीं रहे, लेकिन उन्हें पत्रकारिता की सौबत हासिल है और तथ्यों के प्रस्तुतिकरण में उनका कोई सानी नहीं है। उन्होंने हाल ही में लखनऊ पर एक किताब भी लिखी है, जिसकी काफी चर्चा हुई है, इसीलिए कहा ना कि लालजी टंडन लखनऊ को हाथ की रेखाओं की तरह जानते हैं।
लालजी टंडन उतने सशक्त नहीं हैं, जितने वे एक रणनीतिककार के रूपमें सशक्त माने जाते हैं। भाजपा नेतृत्व उन्हें मानता है और उनकी उपयोगिता को समझता है, उन्हें राज्यपाल बनाया जाना इस तथ्य का एक प्रमाण है, अन्यथा लालजी टंडन के पुत्र आशुतोष टंडन तो मंत्री हैं ही और उन्हे मंत्री बनाकर समझा जा सकता था कि लालजी टंडन को उनका हक मिल गया है, लेकिन भाजपा नेतृत्व ने उनकी राजनीतिक कुशलता और योग्यता और उपयोगिता को महत्वपूर्ण रूपसे समझा है और राज्यपाल बनने का अवसर दिया है, जिससे लालजी टंडन बहुत प्रसन्न हैं। राज्यपाल बनाए जाने का संदेश मिलने के बाद उन्होंने जब अपने लोगों और मीडिया को यह बात साझा की तो वे प्रसन्न और उतने ही सहज भी थे। उन्होंने कहा कि वे बिहार में गर्वनर का कार्यभार संभालते ही तुरंत लखनऊ वापस आएंगे, क्योंकि उन्हें लखनऊ में अटलजी के अस्थि विसर्जन कार्यक्रम में शामिल होना है। राज्यपाल बनाए जाने की सूचना मिलते ही लालजी टंडन के चौक और हजरतगंज वाले सरकारी घर पर राजनेताओं और कार्यकर्ताओं का जमघट लग गया है। लालजी टंडन को बधाईयां मिल रही हैं। राज्यपाल के पद पर इसी प्रकार दूसरी महत्वपूर्ण नियुक्ति बेबीरानी मौर्य की हुई है, जिन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बनाया गया है। बेबीरानी मौर्य दलित समाज की भाजपा की एक शक्तिशाली और योग्य नेता मानी जाती हैं। वे आगरा की मेयर भी रह चुकी हैं। उन्हें भाजपा नेतृत्व का विश्वासपात्र तो माना ही जाता है, उत्तर प्रदेश के दलित समाज को साधने के लिए उनका महत्व बढ़ाना भाजपा की रणनीति का हिस्सा है।
गौरतलब है कि भाजपा ने दलित समाज को काफी अवसर दिया है, दलित समाज के रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति हैं हीं और वे भी उत्तर प्रदेश हैं। उत्तर प्रदेश से अबतक पांच नेता राज्यपाल बन चुके हैं। राष्ट्रपति ने कुल छह राज्यपालों की नियुक्ति की है, जिनमें सत्यदेव नारायण आर्य हरियाणा, सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर, गंगाप्रसादसिक्किम और कप्तान सिंह सोलंकी त्रिपुरा के राज्यपाल बनाए गए हैं। इनमें गंगाप्रसाद को मेघालय से और कप्तान सिंह सोलंकी को हरियाणा से नई पदस्थापनाएं दी गई हैं। भारतीय जनता पार्टी का ध्यान तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और 2019 लोकसभा चुनाव पर है। भाजपा अब अपने राजनेताओं को जिम्मेदारियां देती जा रही है, जिनमें जातिगत और राजनीतिक समीकरण बहुत करीब से देखे जा रहे हैं। भाजपा की खास रणनीति उत्तर प्रदेश के लिए है, जहां वह दलित कार्ड खेलकर मायावती को कमजोर करने पर लगी हुई है, दूसरी तरफ उसकी पिछड़े वर्ग पर भी नज़र है, जिसमें उसने पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देकर पिछड़ों का विश्वास जीतने का काम किया है। भाजपा ऐसे लोगों को भी अवसर दे रही है, जिनकी लोकसभा चुनाव में जरूरत है। देश और प्रदेश की बहुत सारी सरकारी समितियों और सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों में राजनीतिक नियुक्तियों का दौर शुरू होने वाला है। भाजपा की इन रणनीतियों से विपक्ष के महागठबंधन के सपनों पर ग्रहण लगना स्वभाविक है, खासकर तब जब भाजपा के सामने एक के बाद एक सुअवसर आते जा रहे हैं।