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Thursday 19 August 2021 05:53:56 PM
नई दिल्ली। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने शत्रुतापूर्ण रडार खतरों के खिलाफ भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों की सुरक्षा केलिए एक उन्नत चैफ प्रौद्योगिकी विकसित की है। रक्षा प्रयोगशाला जोधपुर ने वायुसेना की गुणात्मक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए डीआरडीओ की पुणे प्रयोगशाला और उच्च ऊर्जा सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला के सहयोग से उन्नत चैफ सामग्री और चैफ कार्ट्रिज-118/I विकसित किया है। भारतीय वायुसेना ने सफल उपयोगकर्ता परीक्षणों के पूरा होने के बाद इस तकनीक को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। आज के इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में आधुनिक रडार खतरों में प्रगति के कारण लड़ाकू विमानों की उत्तरजीविता प्रमुख चिंता का विषय है।
विमान की उत्तरजीविता सुनिश्चित करने केलिए काउंटर मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है, जो इंफ्रा-रेड और रडार खतरों के खिलाफ निष्क्रिय जामिंग प्रदान करता है। चैफ एक महत्वपूर्ण रक्षा तकनीक है, जिसका उपयोग लड़ाकू विमानों को शत्रुतापूर्ण रडार खतरों से बचाने केलिए किया जाता है। इस तकनीक का महत्व इस तथ्य में निहित है कि हवा में तैनात बहुत कम मात्रा में चैफ सामग्री लड़ाकू विमानों की सुरक्षा सुनिश्चित करने केलिए दुश्मन की मिसाइलों को विक्षेपित करने केलिए प्रलोभन का काम करती है। भारतीय वायुसेना की वार्षिक रोलिंग आवश्यकता को पूरा करने केलिए बड़ी मात्रा में उत्पादन के लिए उद्योग को प्रौद्योगिकी दी गई है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने इस महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी के स्वदेशी विकास के लिए डीआरडीओ, आईएएफ और उद्योग की सराहना की है तथा इसे रणनीतिक रक्षा प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में डीआरडीओ का एक और महत्वपूर्ण कदम बताया है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ जी सतीश रेड्डी ने इस उन्नत तकनीक के सफल विकास से जुड़ी टीमों को बधाई दी, जो भारतीय वायुसेना को और मजबूत करेगी।