Thursday 7 October 2021 11:29:49 AM
सुषमा गौतम
लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी में एक 'फटीचर' से सामाजिक राजनीतिक और अकूत धन-सम्पदा से समृद्धशाली एवं शक्तिशाली हुए और विश्वासपात्र के रूपमें बसपा से दो बार राज्यसभा में भेजे गए मुरादाबाद के बसपाई प्यादे वीर सिंह एडवोकेट, बसपा छोड़कर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व में आस्था जताते हुए सपा में शामिल हुए हैं। लखनऊ से मुरादाबाद तक वीर सिंह पर बफ्तियां कसी जा रही हैं जैसेकि मानो उनके जाने से बसपा वीरान हो जाएगी और वह सपा में रहकर कोई बड़ा चमत्कार दिखाएंगे। यह भी कहा जा रहा है कि राशिद अल्वी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी एवं उन जैसे कुछ और के बाद एक और बड़ा गद्दार बसपा से बाहर हुआ। बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के परम आर्शीवाद से फर्श से अर्श तक पहुंचे उनके बड़े खास भाई नसीमुद्दीन सिद्दीकी को भी अपने बारे में बड़ी ग़लतफहमी हो गई थी कि उनके जाने से बसपा दरबदर हो जाएगी, बसपा तो दरबदर नहीं हुई, मगर नसीमुद्दीन सिद्दीकी जरूर राजनीति के बियानवान में धंस चुकी कांग्रेस में जाकर जूतियां सीधी कर रहे हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती से अमानत में ख़यानत करके अपने बने बनाए अस्तित्व से हाथ धो बैठे नसीमुद्दीन सिद्दीकी को आज कोई पूछने को तैयार नहीं है।
वीर सिंह की हालत भी नसीमुद्दीन सिद्दीकी से भी बदतर होने वाली है, क्योंकि न तो इनका कोई अपना जनाधार माना जाता है और ना ही सपा में इन और इन जैसे प्यादों और तथाकथित नेताओं की कोई हैसियत बनने बचने वाली है। वीर सिंह के बसपा छोड़कर सपा में जाने से इनपर तीखे कटाक्ष हो रहे हैं, इनके बारे में नकारात्मक प्रतिक्रियाएं वायरल हो रही हैं। वीर सिंह को जानने वाले कहते हैं कि वे कभी भी बसपा के लिए शुभ नहीं रहे, जबकि मायावती ने उन्हें बहुत आगे बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ी, बल्कि वीर सिंह ने बसपा अध्यक्ष मायावती से अत्यंत निकटता का लाभ उठाते हुए पश्चिम उत्तर प्रदेश में और जहां भी भेजे गए सदैव उनको गुमराह करके अपनी विघटनकारी एवं भ्रष्ट करतूतों से धन कमाया और बसपा को नुकसान ही पहुंचाया है। उन्होंने बसपा के निष्ठावान जनाधारवाले नेताओं और कार्यकर्ताओं को नीचा दिखाने एवं झूंठे आरोप लगाकर उन्हें बसपा से बाहर कराने का ही काम किया है और आज खुद भी बाहर हो गए। कहा जाता है कि वीर सिंह ने एक समय तो यह भी प्रचारित किया हैकि वह ही बसपा प्रमुख मायावती के उत्तराधिकारी होंगे, जिसे सही मानकर बहुत से नेता और धनपति वीर सिंह की परिक्रमा और धन से चरण वंदना करने लगे थे।
वीर सिंह के पास कभी मात्र लॉ की डिग्री थी और उनके पास कोई भी क्लाइंट नहीं था। माना जाता है कि वीर सिंह ने एक समय मायावती का बड़ा भारी विश्वास हासिल किया है। मायावती ने बसपा संगठन में उनको उनकी हैसियत से बड़े अधिकार दिए। सांसद तथा बसपा का राष्ट्रीय महासचिव बनाया। मायावती सरकार में उन्हें मिनी चीफ मिनिस्टर कहा जाया करता था। वीर सिंह ने अपने अहंकार में उस समय जो चाहा किया, जिसको चाहा बसपा में शामिल करा लिया और जिसे चाहा उसे पार्टी विरोधी बताकर, बदनाम करके बसपा से निकलवा दिया। कहा जाता है कि वीर सिंह ने बसपा और मायावती के नाम पर ज़बरदस्त और जबरन धन वसूली की और बसपा के टिकट तक बेचे। बसपा पर वीर सिंह के विरुद्ध गंभीरतम आरोपों की एक लंबी फहरिस्त बताई जाती है, जिससे मायावती का उनसे नसीमुद्दीन सिद्दीकी की तरह विश्वास उठ गया और वीर सिंह ने एक चोर की तरह फरार होकर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के यहां शरण ले ली। वीर सिंह को यह एहसास हो गया था कि उसकी विश्वासघाती करतूतों का ससबूत भंडाफोड़ होने वाला है और मायावती उसे कभी भी लात मार सकती है।
मायावती के बारे में यह कहा जाता है कि वे एक सीमा तक ही किसी पर विश्वास करती हैं एवं सच्चाई और झूंठ सामने आने पर बख्शती नहीं हैं चाहे वह कोई भी हो। मायावती ने वीर सिंह के समाजवादी पार्टी में जाने को लेकर उनका नाम लिए बिना एक ट्वीट भी किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि दूसरी पार्टियों के स्वार्थी टिकटार्थियों और निष्कासित लोगों को सपा में शामिल कराने से सपा का कुनबा और जनाधार बढ़ने वाला नहीं है, यह सपा की केवल खुद को झूंठी तसल्ली देने और अपनी पार्टी में संभावित भगदड़ को रोकने की कोशिश के अलावा और कुछ नहीं है। मायावती ट्वीट में कहती हैं कि जनता यह सब खूब समझती है, अगर सपा दूसरी पार्टियों के ऐसे लोगों को अपनी पार्टी में लेगी तो निश्चय ही टिकट की लाइन में खड़े इनके भी बहुत से लोग जरूर दूसरी पार्टियों में जाने की राह तलाशेंगे, जिससे उनकी ही हानि होगी, किंतु कुछ अपनी आदत से मजबूर होते हैं। मायावती ने कहा है कि मीडिया में भी इन खबरों को जिस प्रकार से बढ़ा चढ़ाकर पेश किया जाता है, उससे बीएसपी का महत्व कम होने के बजाए बढ़ रहा है, समझने की बात है कि इनके लिए ऐसे लोगों का इतना महत्व है तो फिर यकीनन बीएसपी नेताओं और उम्मीदवारों में बसपा के जमीन स्तर पर कितना अधिक दम होगा।
बसपा अध्यक्ष का यह ट्वीट बसपा में इस सच्चाई की पुष्टि करता है कि सपा से ज्यादा ताकतवर बसपा के ज़मीनी कार्यकर्ता हैं, इसलिए कहा जा रहा है कि वीर सिंह और उन जैसों के बसपा छोड़ने से बसपा पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और राज्य के सभी राजनीतिक दलों के विधायकों को टिकट कटने का डर सता रहा है, इसलिए किसी एक दल में नहीं, बल्कि सभी दलों में भगदड़ का सा माहौल है। सपा-बसपा अभी से अपने टिकट फाइनल करती जा रही है। देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में संगठनात्मक स्थिति ज्यादा खराब लग रही है, वैसे भी मुलायम सिंह यादव के कुनबे में ही दो राजनीतिक दल बने हुए हैं, जिसमें एक दल सपा है, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव हैं और दूसरे दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उनके सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव हैं। इनके सजातीय लोग भी इसी प्रकार दो गुटों में हैं। अखिलेश यादव के पिताश्री मुलायम सिंह यादव राजनीतिक ट्रैक से लगभग बाहर हो ही चुके हैं। ऐसे में सरकार बनाने के बड़े-बड़े दावे करने से पहले अखिलेश यादव के सामने अपने ही सजातीय वोटरों को एकजुट रखने की चुनौती है। अखिलेश यादव हर जगह यह भी दावा करते हैं कि मुसलमान समाजवादी पार्टी के साथ हैं, जबकि उनके पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि उनका समस्त सजातीय समाज परिवार उनके साथ है भी कि नहीं?
दूसरी तरफ देखिए तो उत्तर प्रदेश में करीब चालीस विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां मुसलमान बसपा से अलग रहकर राजनीति में सफल होने की स्थिति में नहीं है, इसलिए वह बसपा के साथ ही रहेगा चाहे मायावती की कोई भी राजनीतिक रणनीति हो। बसपा हमेशा से सड़क पर राजनीतिक धरना प्रदर्शन किए बिना मजबूत दिखाई दी है, अगर बसपा को कहीं नुकसान हुआ है तो उसके कारण राशिद अल्वी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और वीर सिंह जैसे अनेक लोग रहे हैं, जिनपर मायावती को भारी विश्वास रहा और ये लोग अपने लाभ में अपनी नेता मायावती के साथ गद्दारी करने से नहीं चूके और अंतत: एक समय बाद इनका भांडा फूटा और ये लात मारकर बसपा से निकाले गए। बसपा में ये कुछ ऐसे घटनाक्रम हैं, जो यह समझने के लिए काफी हैं बसपा में कुछ लोग केवल अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने आ जाते हैं, अपनी हैसियत बनाते हैं और अपने कर्मों से या कहीं और बड़ा लालच मिलने पर अपनी हैसियत भूल जाते हैं, लेकिन बसपा से जाने या बसपा से निकाले जाने के बाद वे भी दरबदर होते देखे गए हैं। गौरतलब है कि बसपा अध्यक्ष मायावती में अपना वोट किसी को भी ट्रांस्फर करने की क्षमता है, जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव में यह क्षमता नहीं है। लोकसभा चुनाव में बसपा यह सिद्ध कर चुकी है, इसीलिए कहा जाता है कि बसपा नेता बनाती है, यह अलग बात है कि वह गद्दारी या खलीफागिरी करने लग जाए।
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वीर सिंह जैसे किसी भी नेता के बसपा छोड़कर जाने या निकाले जाने से बसपा पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है, बल्कि सच यह है कि जिस कचरे को मायावती ढो रही थीं, वह बसपा से खुद-ब-खुद भी साफ होता जा रहा है। सपा में जाने से बसपा के वीर सिंह की थू-थू ही हो रही है, जबकि बसपा विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन की तैयारियों में मशगूल है। सत्तारुढ़ भाजपा की असली चुनौती भी बसपा मानी जा रही है, भले ही सपा ने किसानों और सांप्रदायिक मुद्दों से राज्य में हिंसक वातावरण बनाया हुआ है। हाल के दिनों में बसपा के कार्यकर्ता कार्यक्रमों में और बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में हुए ब्राह्मण सम्मेलनों में ब्राह्मणों की उल्लेखनीय भागीदारी देखने को मिली है, जिससे यह संदेश जाता है कि बसपा की सर्वसमाज पर मजबूत पकड़ कायम है, जबकि सपा कभी भी सर्वसमाज को अपने नहीं जोड़ पाई, उसने दूसरे दलों के गद्दारों और दागियों को अपने यहां लेकर मायावती के ट्वीट को सही साबित किया है। बहरहाल सपा भाजपा और कांग्रेस की चिंता किए बिना बसपा भावी विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन के लिए उत्साहित नज़र आ रही है। देखिए आगे क्या होता है!