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Wednesday 12 March 2025 04:32:29 PM
नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के दो दिवसीय बोधिपथ फिल्म महोत्सव के समापन समारोह में तिब्बत हाउस के निदेशक गेशे दोरजी दामदुल ने तथागत भगवान गौतम बुद्ध की ओर से 2500 वर्ष पूर्व जिस तरह की कला और चित्रों को मान्यता दी गई थी, उसकी तुलना सिनेमा के माध्यम से की। उन्होंने कहाकि दृश्य कला हमेशा से ही आम जनता केलिए शिक्षा और सूचना का माध्यम रही है। गेशे दोरजी दामदुल ने कहाकि हालांकि सिनेमा, जनता की सोच के स्तर को भी दर्शाता है तो समाज में मौजूदा सोच के अनुसार ही फिल्मों का निर्माण हो। उन्होंने उल्लेख कियाकि भगवान बुद्ध के समय में शाक्यमुनि की शिक्षाओं को दर्शाने वाली और लोगों को शिक्षित करने वाली पेंटिंग्स बनाई गई थीं। उन्होंने बतायाकि व्यक्ति की पांचों इंद्रियां संदेश को आत्मसात करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, यदि दृश्य 'निम्न स्तर' के हैं तो समाज उन्हें आत्मसात कर लेगा और हम इन दिनों साइबर अपराध सहित बहुत सारे अपराधों को देखते हैं। उन्होंने कहाकि इसी तरह संघर्ष, युद्ध, जलवायु संबंधी आपदा और अविश्वास को देखा जाने लगेगा।
पद्मश्री से सम्मानित अमेरिकी बौद्ध लेखक और शिक्षाविद् प्रोफेसर रॉबर्ट एएफ थर्मन भी समारोह में उपस्थित थे। उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म पर कई किताबें लिखी हैं, संपादित की हैं और उनका अनुवाद किया है। उन्होंने मंजुश्री पर अपनी नवीनतम पुस्तक के बारेमें जानकारी साझा की। प्रोफेसर रॉबर्ट एएफ थर्मन ने बतायाकि महायान बौद्ध धर्म में मंजुश्री एक बोधिसत्व हैं, जो गहन बुद्धिमत्ता और शिक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने कुछ रोचक किस्से सुनाए और कुछ व्यक्तिगत अनुभवों साझा करके श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। हॉलीवुड की फिल्मों के प्रसिद्ध कलाकार और बौद्ध धर्म के अनुयायी रिचर्ड गेरे ने एक रिकॉर्ड संदेश के जरिए कहाकि बोधिपथ फिल्म महोत्सव बुद्ध की शिक्षाओं के प्रसार का एक रोमांचक क्षण है, यह बुद्ध के मार्ग पर चलने का शानदार दर्शन प्रस्तुत करता है। समारोह के मुख्य अतिथि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठी ने कहाकि भारत में नाट्य शास्त्र की परंपरा 3000 वर्ष सेभी अधिक पुरानी है एवं बौद्ध धर्म का नाट्य शास्त्र और कहानी कहने की विधा से गहरा संबंध है।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक चित्तरंजन त्रिपाठी ने रंगमंच के विभिन्न तत्वों के उदाहरण देते हुए बतायाकि पूरी दुनिया एक रंगमंच है, एक विशाल मोंटाज की पृष्ठभूमि केसाथ वेशभूषा और मनोदशा केसाथ एक भूमिका का खेल चल रहा है। उन्होंने कहाकि रंगमंच भी दर्शकों के सामने अपने तरीके से कहानी सुनाता है, अंतर यह हैकि सिनेमा में इसे पर्दे पर दिखाया जाता है। उन्होंने कहाकि विश्वमंच पर चलरहे इतने संघर्ष केबीच बौद्ध धर्म हमें एक बेहतर दुनिया की ओर लेजा सकता है। प्रख्यात पार्श्व गायक मोहित चौहान ने बतायाकि किस तरह उन्होंने अपने निजी जीवन में करुणा और अहिंसा का पालन किया। उन्होंने कहाकि बौद्ध धर्म का उनके जीवन पर विशेष प्रभाव है, वे हिमाचल प्रदेश में आवारा पशुओं केलिए आश्रय गृह चलाते हैं और 400 से अधिक पशुओं की देखरेख करते हैं। मोहित चौहान ने भारत और मंगोलिया केबीच गहरे और प्राचीन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंध को सक्षम बनाने की दिशामें मंगोलिया के सांस्कृतिक राजदूत के रूपमें अपने योगदान को रेखांकित किया।
श्रीलंकाई फिल्म सिद्धार्थ गौतम में मुख्य भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध टीवी कलाकार गगन मलिक ने इस विशाल कृति की शूटिंग के दौरान अपने व्यक्तिगत अनुभवों के बारेमें दर्शकों को बताया। वे भगवान श्रीराम और भगवान शिव की अपनी भूमिकाओं केलिए भी प्रसिद्ध हैं और श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम सहित बौद्ध धर्म को मानने वाले कई देशों में उनके बड़े प्रशंसक हैं। कलाकार आदिल हुसैन ने अपनी फिल्मों-लाइफ ऑफ पाई और द रिलक्टेंट फंडामेंटलिस्ट्स केलिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की है। उन्होंने सिनेमा के बारेमें बड़े उत्साह से बात की और बतायाकि सिनेमा में न केवल दर्शकों के विचारों को आकार देने की शक्ति है, बल्कि अभिनेता के रूपमें निभाई गई भूमिकाओं ने उनके अपने जीवन को भी प्रभावित किया है और दुनिया के बारेमें उनका दृष्टिकोण बदल दिया है। इससे पहले अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव शार्त्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन रिनपोछे ने बोधिपथ फिल्म महोत्सव की सफलता पर कहाकि फिल्में सूचना, विचारधारा के प्रसार और इसके दायरे को व्यापक बनाने का सशक्त माध्यम हैं। आईबीसी के महानिदेशक अभिजीत हलदर ने महोत्सव की अवधारणा और इसमें प्रदर्शित की गईं फिल्मों की श्रृंखला के बारेमें बताया, जिनमें युवा पीढ़ी केलिए प्राचीन फिल्मों का संग्रह और भारत के आधुनिक निर्देशकों की कुछ फिल्में भी शामिल प्रमुख थीं।
बोधिपथ फिल्म महोत्सव में प्रदर्शित फिल्मों में द कप, गेशे मा इज बॉर्न, द कुंग फू नन्स, पाथ ऑफ कम्पैशन, गुरु पद्मसंभव थीं। बौद्ध धर्मगुरू परमपावन दलाई लामा पर बनी प्रसिद्ध फिल्म 'अनटिल स्पेस रिमेन्स' भी महोत्सव में प्रदर्शित की गई, क्योंकि इस वर्ष उनका जन्मदिन मनाया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ की ओर से 10-11 मार्च को हुए बोधिपथ फिल्म महोत्सव के पहले संस्करण में चार पैनल चर्चाएं हुईं, जिसमें विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों ने भाग लिया। इनमें शिक्षाविदों से फिल्म निर्माता और निर्देशकों से लेकर सोशल मीडिया के प्रभावशाली व्यक्तित्व और अभिनेता शामिल हुए थे। ये चर्चाएं फिल्म निर्माण के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित थीं, इनमें बौद्ध फिल्मों के निर्माण में आनेवाली चुनौतियों और विचारशील संचार के संबंध में भी बात हुई। बोधिपथ फिल्म महोत्सव को युवाओं और बुजुर्गों ने काफी पसंद किया और सराहा। विभिन्न बौद्ध संस्थानों से बड़ी संख्या में आए बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों केसाथ भारतीय जनसंचार संस्थान और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी फिल्मोत्सव में भाग लिया।