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Thursday 2 December 2021 03:51:13 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज नई दिल्ली में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के विधायकों, सांसदों के फोरम और डॉ अंबेडकर चैंबर ऑफ कॉमर्स के आयोजित पांचवें अंतर्राष्ट्रीय आंबेडकर सम्मेलन का उद्घाटन किया और इसके लिए उनकी सराहना की। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत में जन्मा एक ऐसा महापुरुष, जो अपने व्यक्तित्व और कृतित्व के कारण संविधान निर्माता बना, राष्ट्र निर्माता भी कहलाया तथा जो समाज सुधारक और विकासपुरुष के रूपमें विभिन्न क्षेत्रों में जीवनपर्यंत अपना सर्वस्व योगदान देता रहा, ऐसे महापुरुष को बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर कहते हैं। उन्होंने कहाकि उनके कृतित्व का वर्णन करना किसी एक संबोधन में संभव नहीं है, उनके विचारों में हमारे भविष्य निर्माण का मार्ग उपलब्ध है। उन्होंने कहाकि यह फोरम लगातार सामाजिक और आर्थिक न्याय के मुद्दों को उजागर कर रहा है और बाबासाहेब के विचारों के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि बाबासाहेब के जीवन के बारे में जानकर किसी भी व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व निर्माण और भविष्य निर्माण की प्रेरणा स्वतः मिलती है, हर प्रकार की चुनौतियों को पार करते हुए बाबासाहेब ने विश्व की सर्वोच्च उपलब्धियां हासिल कीं, विश्व के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में से एक कोलम्बिया यूनिवर्सिटी ने उनको एलएलडी की उपाधि से सम्मानित किया था। राष्ट्रपति को यह जानकर भी खुशी हुईकि यह सम्मेलन संवैधानिक अधिकारों के मुद्दे के साथ-साथ शिक्षा, उद्यमिता, नवाचार और आर्थिक विकास पर केंद्रित है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि बाबासाहेब भारतीयता के अविचल पुरोधा थे, स्वाधीनता की लड़ाई तथा उसके बाद संविधान निर्माण के लगभग तीन वर्ष के दौरान सांप्रदायिक वैमनस्य का वातावरण बना हुआ था, उस समय एक सौहार्दपूर्ण वातावरण के निर्माण केलिए बहुत सारे नेता कहा करते थेकि हमसभी लोग हिंदू और मुसलमान बाद में हैं, सबसे पहले हमसब भारतीय हैं।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि यह सोच बहुत अच्छी थी, लेकिन बाबासाहेब की सोच उससे भी ऊपर थी, जब दूसरे नेता कहते थे कि हम पहले भारतीय हैं और बाद में हिंदू, मुसलमान, सिख या ईसाई हैं, उस समय बाबासाहेब कहा करते थेकि ‘हम पहले भी भारतीय हैं बादमें भी भारतीय हैं और अंतमें भी भारतीय हैं, इस प्रकार हम सदैव भारतीय ही हैं।’ अर्थात बाबासाहेब की सोच में भारतीयता के समक्ष जाति, धर्म और संप्रदाय का कोई स्थान नहीं था। राष्ट्रपति ने कहाकि संविधान के प्रारूप के निर्माण का कार्य सम्पन्न हो जाने केबाद संविधान सभा में बाबासाहेब की प्रशंसा में संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने अपने उद्गार व्यक्त किए थे। राष्ट्रपति ने कहाकि बाबासाहेब समाज की नैतिक चेतना को जगाने के पक्षधर थे, वे कहते थेकि अधिकारों की रक्षा केवल कानूनों से नहीं की जा सकती, बल्कि समाज में नैतिक और सामाजिक चेतना का होना भी आवश्यक है। उन्होंने हमेशा अहिंसक और संवैधानिक साधनों पर जोर दिया। राष्ट्रपति ने कहाकि हमारे संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा केलिए कई प्रावधान किए गए हैं, संविधान का अनुच्छेद 46 निर्देश देता हैकि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक एवं आर्थिक हितों का विशेष ध्यान देकर विकास करेंगे।
राष्ट्रपति ने कहाकि इस लेख में राज्य को सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से बचाने का निर्देश दिया गया है, इन दिशानिर्देशों को लागू करने केलिए कई संस्थान और प्रक्रियाएं स्थापित की गई हैं, सुधार हुआ है, लेकिन हमारे देश और समाज को अभी बहुत कुछ करना बाकी है। राष्ट्रपति ने कहाकि वंचित वर्गों के बहुत से लोग अपने अधिकारों और उनके कल्याण केलिए सरकार की पहल से अवगत नहीं हैं, इसलिए इस फोरम के सदस्यों का यह दायित्व हैकि वे उन्हें उनके अधिकारों और सरकार की पहल के बारे में जागरुक करें। उन्होंने कहाकि यह उनकी भी जिम्मेदारी हैकि वे अनुसूचित जाति और जनजाति के उन लोगों को आगे ले जाएं, जो विकास यात्रा में पीछे छूट गए हैं, ऐसा करके ही आप बाबा साहब के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त कर सकेंगे।