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Tuesday 22 February 2022 01:14:06 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने आजादी के अमृत महोत्सव के तत्वावधान में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और यूनेस्को नई दिल्ली क्लस्टर कार्यालय के सहयोग से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया। गौरतलब हैकि भाषायी और सांस्कृतिक विविधता केबारे में जागरुकता बढ़ाने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने केलिए दुनियाभर में हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है और इस विशेष दिन को मनाने केलिए हर साल यूनेस्को एक अनूठी थीम चुनता है। साल 2022 का विषय है-'बहुभाषी शिक्षा केलिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर', यह बहुभाषी शिक्षा और सभी के सीखने एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के विकास को आगे बढ़ाने में प्रौद्योगिकी की संभावित भूमिका पर केंद्रित है।
अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस कार्यक्रम में संस्कृति सचिव गोविंद मोहन, एरिक फाल्ट निदेशक यूनेस्को क्लस्टर ऑफिस नई दिल्ली और प्रसिद्ध गीतकार एवं कवि प्रसून जोशी उपस्थित थे। गोविंद मोहन ने भारत की स्थानीय भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन की आवश्यकता पर बल दिया। संयुक्तराष्ट्र की टिप्पणियों का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहाकि वर्ष 2100 तक दुनिया की आधी भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी, विलुप्त होने की दर इतनी हैकि हर दो सप्ताह में एक स्थानीय भाषा समाप्त हो रही है। उन्होंने कहाकि आज हम यहां 'अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस' मनाने केलिए इकट्ठा हुए हैं, जिससे भारत की स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित करने केसाथ ही उसे बढ़ावा दिया जा सके। उन्होंने कहाकि भारत में एक कहावत लोकप्रिय है 'कोस-कोस पे पानी बदले, चार कोस पे वाणी' यह बात स्पष्ट रूपसे हमारे देश में बोली जाने वाली भाषाओं की बहुलता का बखान करती है। गोविंद मोहन ने कहाकि हालांकि समय केसाथ भारत की मूल भाषाओं पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि मातृभाषा बोलने वाले लोग कम होते जा रहे हैं और प्रमुख भाषाओं को ही अपनाया जा रहा है, यह भारत के लोगों और समुदायों का सामूहिक प्रयास होना चाहिए कि वे बहुभाषी विविधता के संरक्षण और परिक्षण केलिए एक साथ आएं, जो हमारी सांस्कृतिक संपदा का एक हिस्सा है।
एरिक फाल्ट ने कहाकि यह हम सभी केलिए जागृत होने का समय है, क्योंकि दुनियाभर में करीब दो हफ्ते में एक भाषा समाप्त हो जाती है। उन्होंने कहाकि शिक्षा प्रणाली में केवल कुछ सौ भाषाओं को ही स्थान दिया गया है और पब्लिक डोमेन में आज डिजिटल दुनिया में 100 से भी कम भाषाओं का उपयोग किया जाता है, किसी भाषा का नुकसान अपूरणीय होता है, इसीलिए अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार आया। उन्होंने कहाकि दुनियाभर में हमें भाषा के विकास, प्रौद्योगिकी और स्थानीय भाषाओं केलिए डिजिटल संसाधन पर समान रूपसे जोर देना चाहिए, जिससे स्थानीय समुदायों को सशक्त किया जा सके। उन्होंने प्रौद्योगिकियों और नवाचारों पर ध्यान देने पर जोर दिया, जिससे हम कुछ उन बड़ी चुनौतियों विशेष रूपसे शिक्षा में समाधान कर सकें, जिनका हम आज सामना कर रहे हैं। प्रसून जोशी ने अपने हास्य, ज्ञानवर्धक अनुभवों और अपनी कुछ कविताओं के पाठ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उन्होंने कहाकि मातृभाषा को आगे ले जाने केलिए युवा पीढ़ी की भागीदारी जरूरी है, हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व का अनुभव होना चाहिए और इसका भरपूर उपयोग करना चाहिए अन्यथा हम इसे खो सकते हैं।
प्रसून जोशी ने कहाकि हम दूसरी भाषाओं को सीखना जारी रख सकते हैं, जो एक कौशल प्राप्त करने जैसा है, लेकिन यह मातृभाषा ही होती है, जो हमारे सांस्कृतिक लोकाचार से भावनात्मक लगाव पैदा करती है। इस अवसर पर डीन आईजीएनसीए प्रोफेसर रमेश सी गौर की 'भारत की जनजातीय और देशज भाषाएं' पुस्तक का विमोचन किया गया। कार्यक्रम के बाद वर्चुअल पैनल चर्चा और अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के विषय 'बहुभाषी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग: चुनौतियां और अवसर' पर सत्र आयोजित किया गया। ज्ञातव्य हैकि अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का विचार सबसे पहले बांग्लादेश से आया था। संयुक्तराष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के आम सम्मेलन में साल 2000 में हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूपमें मनाने का फैसला किया गया था। इस दौरान साहित्य नाटक अकादमी के कलाकारों ने कथक केसाथ सरस्वती वंदना, कवियों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में कविता पाठ और दिलचस्प समूह नृत्य प्रस्तुत किया गया। संस्कृति मंत्रालय की संयुक्त सचिव उमा नंदूरी ने अतिथियों का स्वागत किया।