स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Wednesday 30 March 2022 02:35:09 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने समारोहपूर्वक तीसरा राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रदान किया और जल शक्ति अभियान: कैच द रेन-2022 की भी शुरुआत की। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर कहाकि जल प्रबंधन के क्षेत्र में अनुकरणीय कार्य केलिए राष्ट्रीय जल पुरस्कार प्रदान किया गया है और हमारे दैनिक जीवन एवं पृथ्वी पर जल के महत्व को रेखांकित करने केलिए जल अभियान का विस्तार करना सराहनीय है। राष्ट्रपति ने कहाकि उन्हें 'जल शक्ति अभियान: कैच द रेन 2022' की शुरुआत करते हुए बेहद प्रसन्नता हो रही है। उन्होंने सभीसे अभियान के इस संस्करण के प्रमुख हस्तक्षेपों पर काम करने का अनुरोध किया। राष्ट्रपति ने कहाकि जल संरक्षण के कार्य में हर एक व्यक्ति की सक्रिय भागीदारी केलिए स्थानीय जनता को प्रेरित करने में जिलाधिकारियों और ग्राम सरपंचों को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सभीसे यह संकल्प लेने का अनुरोध कियाकि जिस तरह भारत में इतिहास का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, उसी प्रकार हमसभी इस अभियान को इतिहास का सबसे बड़ा जल संरक्षण अभियान बनाएंगे। राष्ट्रपति ने कहाकि यह कहना बिल्कुल उचित हैकि जल ही जीवन है, प्रकृति ने मानव को जल संसाधनों का वरदान दिया है, इसने हमें विशाल नदियां दी हैं, जिनके तटपर महान सभ्यताएं विकसित हुई हैं, भारतीय संस्कृति में नदियों का विशेष महत्व है और उन्हें माता के रूपमें पूजा जाता है। उन्होंने कहाकि हमारे पास नदियों की पूजा केलिए समर्पित स्थल हैं-उत्तराखंड में गंगा व यमुना, मध्य प्रदेश में नर्मदा और बंगाल में गंगा-सागर, इस तरह के धार्मिक अभ्यासों ने हमें प्रकृति से जोड़े रखा है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि तालाबों और कुओं के निर्माण को एक पुण्य कार्य माना जाता था, लेकिन दुर्भाग्य से आधुनिकता और औद्योगिक अर्थव्यवस्था के आगमन के साथही हमने प्रकृति से वह जुड़ाव खो दिया है, जनसंख्या में बढ़ोतरी भी इसका एक कारण है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि हम खुद को प्रकृति से अलग महसूस करते हैं, जिसने हमें बनाए रखा है, हम अपना आभार व्यक्त करने और यमुना की पूजा करने केलिए यमुनोत्री की कठिन यात्रा करते हैं, लेकिन जब हम राजधानी दिल्ली लौटते हैं तो हम पाते हैंकि वही नदी बेहद प्रदूषित हो गई है और अब यह हमारे शहरी जीवन में उपयोगी नहीं है। राष्ट्रपति ने कहाकि शहर को पूरे साल जल देने वाले तालाब और झील जैसे जलस्रोत भी शहरीकरण के दबाव में लुप्त हो गए हैं, इसके चलते जल प्रबंधन अस्त-व्यस्त हो गया है, भूजल की मात्रा घट रही है और इसका स्तर नीचे जा रहा है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि एक तरफ शहरों को सुदूर इलाकों से पानी लाना पड़ता है तो दूसरी ओर मानसून में सड़कों पर जल भराव हो जाता है। उन्होंने कहाकि वैज्ञानिक और कार्यकर्ता भी पिछले कुछ दशक से जल प्रबंधन के इस विरोधाभास को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते रहे हैं, भारत में यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि हमारे देश में विश्व की आबादी का लगभग 18 फीसदी हिस्सा है, जबकि हमारे पास केवल 4 फीसदी शुद्ध जल संसाधन हैं, जल की उपलब्धता अनिश्चित है और यह काफी सीमा तक वर्षा पर निर्भर करती है।
राष्ट्रपति ने कहाकि जल का मुद्दा जलवायु परिवर्तन जैसे और भी बड़े संकट का एक हिस्सा है, जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ तथा सूखे की स्थिति लगातार और अधिक गंभीर होती जा रही है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि हिमालय के ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र का स्तर बढ़ रहा है, ऐसे परिवर्तनों के गंभीर परिणाम सामने आ रहे हैं, जिनका किसानों, महिलाओं तथा गरीबों पर और अधिक बुरा प्रभाव पड़ रहा है। राष्ट्रपति ने कहाकि जल संकट एक अंतर्राष्ट्रीय संकट बन गया है और यह भयानक रूप ले सकता है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि कुछ रक्षा विशेषज्ञों ने तो यहां तक कह दिया हैकि भविष्य में यह अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का एक प्रमुख कारण बन सकता है। राष्ट्रपति ने कहाकि हम लोगों को मानवता को ऐसी स्थितियों से बचाने केलिए सतर्क रहना होगा। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त कीकि भारत सरकार इस दिशा में प्रभावी कदम उठा रही है। राष्ट्रपति ने कहाकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का सामना करना और अपनी पृथ्वी की रक्षा करना हम सभीके सामने एक प्रमुख चुनौती है, इससे निपटने केलिए भारत सरकार ने एक नई दृष्टिकोण और विधि अपनाई है।
राष्ट्रपति ने कहाकि वर्ष 2014 में भारत सरकार ने पर्यावरण और वन मंत्रालय का नाम बदलकर एवं उसमें 'जलवायु परिवर्तन' को शामिल करके परिवर्तन का एक शुरुआती संकेत दिया था, इस दिशा में आगे बढ़ते हुए साल 2019 में दो मंत्रालयों का विलय करके जल के मुद्दे पर एकीकृत व समग्र तरीके से काम करने और इसे सर्वोच्च प्राथमिकता देने केलिए जल शक्ति मंत्रालय का गठन किया गया था। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और जल के कुशल उपयोग, जल स्रोतों के संरक्षण, प्रदूषण को कम करने तथा स्वच्छता की सुनिश्चितता के माध्यम से जल सुरक्षा सुनिश्चित करने केलिए प्रभावी कदम उठाए हैं। उन्होंने कहाकि हालिया वर्षों में सरकार की नीतियों में नदियों के संरक्षण, नदी घाटियों का समग्र प्रबंधन, जल सुरक्षा को स्थायी रूपसे मजबूत करने केलिए लंबे समय से लंबित सिंचाई परियोजनाओं को तेजीसे पूरा करना और मौजूदा बांधों का संरक्षण शामिल है। राष्ट्रपति ने कहाकि सभी केलिए जल उपलब्ध करवाने और जल आंदोलन को जनआंदोलन बनाने केलिए भारत सरकार ने 2019 में 'जल शक्ति अभियान' शुरू किया था।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि उसी साल 'जल जीवन मिशन' भी शुरू किया गया था, पिछले साल 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' पर प्रधानमंत्री ने 'जल शक्ति अभियान: कैच द रेन' अभियान को शुरू किया था, जिसे मानसून से पहले और मानसून अवधि के दौरान देश के ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के सभी जिलों में संचालित किया गया था। उन्होंने कोरोना महामारी की चुनौतियों केबीच इस अभियान की सफलता में राज्य सरकारों के योगदान की सराहना की। राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेताओं के अपने-अपने क्षेत्रों में जल प्रबंधन केलिए किए गए अनुकरणीय कार्यों का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे उदाहरणों के आधार पर हमें जल-सुरक्षित भविष्य को प्राप्त करने की उम्मीद है। उन्होंने पुरस्कार से सम्मानित लोगों को बधाई दी और उनसे सभी केलिए अनुकरणीय तथा प्रेरणा के स्रोत बने रहने का अनुरोध किया। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि ये पुरस्कार भारत के लोगों के मस्तिष्क में जल चेतना का संचार करेंगे और व्यवहार में बदलाव लाने में सहायता करेंगे।