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Saturday 9 April 2022 02:00:14 PM
लेह/ वाराणसी। लद्दाख की हिमालयी ऊंचाइयों से वाराणसी में गंगा के तट तक भी पश्मीना शिल्प विरासत को नई ब्रांड पहचान मिल रही है। वाराणसी के अत्यधिक कुशल खादी बुनकरों द्वारा तैयार पश्मीना उत्पादों को वाराणसी में केवीआईसी के अध्यक्ष विनयकुमार सक्सेना ने लॉंच किया है। यह पहला अवसर हैकि जब पश्मीना उत्पाद लेह-लद्दाख क्षेत्र तथा जम्मू और कश्मीर से बाहर तैयार किए जा रहे हैं। केवीआईसी अपने शोरूमों, दुकानों तथा ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से मेड इन वाराणसी पश्मीना उत्पादों की बिक्री करेगा। पश्मीना कश्मीरी कला के रूपमें विख्यात है, लेकिन देशकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक राजधानी काशी यानी वाराणसी में इसकी फिरसे खोज अनेक दृष्टि से अनूठी है।
वाराणसी में तैयार पश्मीना इस विरासती कला को क्षेत्रीय सीमा से मुक्त करता है और लेह-लद्दाख, दिल्ली तथा वाराणसी की विविध कारीगरी का मेल करता है। वाराणसी के बुनकरों द्वारा तैयार पहले दो पश्मीना शॉल वाराणसी में पश्मीना उत्पादों के औपचारिक लॉंच से पहले केवीआईसी के अध्यक्ष विनयकुमार सक्सेना ने 4 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेंट किए थे। वाराणसी में पश्मीना उत्पादन की यह यात्रा लद्दाख से कच्ची पश्मीना ऊन के संग्रह से प्रारंभ होती है, इसे डी-हेयरिंग, सफाई और प्रसंस्करण केलिए दिल्ली लाया जाता है। प्रसंस्कृत ऊन को रोविंग रूपमें वापस लेह लाया जाता है, जहां केवीआईसी के उपलब्ध कराए गए आधुनिक चरखों पर महिला खादी शिल्पी इसे सूत का रूप देती हैं। पश्मीना का सूत फिर वाराणसी भेजा जाता है, जहां इसे प्रशिक्षित खादी बुनकर अंतिम पश्मीना उत्पाद के रूपमें प्रस्तुत करते हैं।
प्रामाणिकता और अपनत्व की निशानी के रूपमें वाराणसी के बुनकरों के पश्मीना उत्पादों पर बुनकरों के नाम और वाराणसी शहर के नामको अंकित किया गया है। केवीआईसी अध्यक्ष ने कहाकि वाराणसी में तैयार पश्मीना उत्पाद से ही वाराणसी में खादी की कुल बिक्री में लगभग 25 करोड़ रुपए और जुड़ जाएंगे। उन्होंने कहाकि वाराणसी में पश्मीना की फिरसे खोज करने के पीछे लद्दाख में महिलाओं केलिए रोज़गार के सतत अवसर पैदा करना और वाराणसी में पारंपरिक बुनकरों के कौशल को विविध रूप देना है, यही परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की है। इसके दृष्टिगत विशेष स्थिति में वाराणसी में पश्मीना बुनकरों को 50 प्रतिशत अतिरिक्त मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है। यह दस्तकारों केलिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है।
सामान्य ऊन के शॉल की बुनाई केलिए बुनकरों को 800 रुपए का पारिश्रमिक दिया जाता है, जबकि पश्मीना शॉल बनाने केलिए वाराणसी में पश्मीना बुनकरों को 1300 रुपए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। वाराणसी में पश्मीना बुनाई से लेह-लद्दाख की महिला दस्तकारों केलिए पूरे वर्ष की आजीविका सुनिश्चित होगी। अत्यधिक सर्दी के कारण लगभग आधे वर्ष तक लेह-लद्दाख में कताई का काम बंद रहता है। इसमें सहायता देने केलिए केवीआईसी ने लेह में पश्मीना ऊन प्रसंस्करण इकाई की स्थापना भी की है। वाराणसी में पश्मीना बुनाई का कार्य 4 खादी संस्थानों-कृषक ग्रामोद्योग विकास संस्थान वाराणसी, श्रीमहादेव खादी ग्रामोद्योग संस्थान गाजीपुर, खादी कम्बल उद्योग संस्थान गाजीपुर और ग्राम सेवा आश्रम गाजीपुर में किया जा रहा है।