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Tuesday 04 June 2013 10:22:21 AM
नई दिल्ली। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण ने डिजिटल एड्रेसेबल केबल टेलीविज़न सिस्टम (टीएएस) के लिए लागू इंटरकनेक्शन विनियम तथा सभी एड्रेसेबल सिस्टम (केबल सेवाएं) के लिए लागू शुल्क आदेश का संशोधित मसौदा जारी किया। इस संबंध में हित धारकों से उनकी टीका टिप्पणी देने के लिए अनुरोध किया गया है।
ट्राई ने 20 दिसंबर 2012 को दिनांक 19/10/2012 के टीडीएसएटी न्यायिक फैसले (उद्योग सहभागियों के प्रतिनिधि तथा ट्राई के भीतर आंतरिक समीक्षा) को ध्यान में रखते हुए एक परमर्श पत्र जारी किया था। परमर्श प्रक्रिया के रूप में ही ट्राई ने इंटरकनेक्शन विनियमन तथा शुल्क सूची अनुदेश पर यह संशोधन प्रारूप प्रस्तुत किया है। इसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं-यदि मल्टीसिस्टम ऑपरेटर (एमएसओ) किसी चैनल के वितरण के लिए कैरेज शुल्क की मांग करता है तो वह प्रसारण कर्ता से 'उपलब्ध कराना अनिवार्य' नियम के तहत इस चैनल के लिए सिग्नल की मांग नहीं कर सकता।
मल्टीसिस्टम ऑपरेटर के लिए कोई न्यून्तम चैनल क्षमता निर्धारित नहीं की गई है, यद्यपि 'अनिवार्य क्षमता' नियम के तहत एमएसओ के लिए प्रसारण कर्ता के चैनलों को बिना भेदभाव के लेना होगा। एड्रेसेवल सिस्टम (केबल सेवाएं) के सेवा प्रदाताओं को अपने पैकेज तथा ऑफर के मूल्य तय करने की अनुमति दी गई है, यद्यपि उन्हें संशोधन प्रारूप में प्रस्तावित परिवर्तित दोहरी शर्तें माननी होंगी। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि 'ए-ला-कार्टे' ऑफरों के मूल्य उपभोक्ताओं के लिए पैकेज मूल्य की तुलना में तर्क संगत रहें। भुगतान चैनलों के मामले में ऑपरेटर एक न्यून्तम उपभोग अवधि निश्चित कर सकते हैं जो तीन महीनें से अधिक नहीं होनी चाहिए।
उपभोक्ता ए-ला-कार्टे अथवा बोंक्वेट/पैकेज आधार अथवा ए-ला-कार्टे और बोंक्वेट/पैकेज के किसी भी संयोजन में से चयन कर सकते हैं। एचडी अथवा थ्रीडी चैनल जिनके लिए विशेष प्रकार के सेटटॉप बॉक्स की आवश्यकता होती है, उनको ए-ला-कार्टे के आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि ऐसे चैनल बोंक्वेट/पैकेज के भाग हैं तो ऐसे प्रत्येक बोंक्वेट के समतुल्य ऑपरेटर को एचडी और थ्रीडी चैनल को हटा कर कम कीमत पर (यह कम कीमत एचडी और थ्रीडी चैनलों के घटे हुए शुल्क के अनुपातिक होगी) समान प्रकार का बोंक्वेट प्रस्तुत करना होगा।
इस संशोधन प्रारूप का पूरा विवरण ट्राई की वेबसाइट www.trai.gov.in. पर उपलब्ध है। अठारह जून, 2013 तक इस संशोधन प्रारूप पर हित धारकों की टीका-टिप्पणी लिखित रूप में आमंत्रित हैं।