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Tuesday 12 September 2023 01:42:59 PM
नई दिल्ली। जनजातीय कार्य मंत्रालय के ट्राइफेड यानी ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत की समृद्ध जनजातीय विरासत और शिल्प कौशल का उल्लेखनीय प्रदर्शन किया। भारत के विभिन्न क्षेत्रों के जनजातीय कारीगरों के तैयार किए गए कई श्रेष्ठ उत्पादों ने दुनियाभर के प्रतिनिधियों का ध्यान खींचा और प्रतिनिधियों ने सराहना भी की। लोकप्रिय परेशभाई जयंतीभाई राठवा ने जी-20 शिल्प बाजार में पिथौरा कला के लाइव प्रदर्शन केसाथ अपनी उल्लेखनीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया। श्रृंखला में प्रस्तुत की गई वस्तुओं ने प्रतिनिधियों केबीच अत्यधिक रुचि पैदा की।
जनजातीय विरासत और शिल्प कौशल के कलात्मक खजाना में हैं-लोंगपी पॉटरी, मणिपुर के लोंगपी गांव के नाम पर तांगखुल नागा जनजाति इस असाधारण मिट्टी के बर्तनों की शैली का अभ्यास करती है। अधिकांश मिट्टी के बर्तनों के उलट, लोंगपी कुम्हार के चाक का उपयोग नहीं करते हैं। सभी आकार हाथ से और सांचे की मदद से दिए जाते हैं। विशिष्ट ग्रे-ब्लैक कुकिंग पाट्स, स्टाउट केटल, विचित्र कटोरे, मग और नट ट्रे, कभी-कभी बारीक गन्ने के हैंडल केसाथ लोंगपी के ट्रेडमार्क हैं, लेकिन अब उत्पाद श्रृंखला का विस्तार करने केसाथ मौजूदा मिट्टी के बर्तनों को सुशोभित करने केलिए नए डिजाइन तत्व पेश किए जा रहे हैं। छत्तीसगढ़ पवन बांसुरी-छत्तीसगढ़ में बस्तर की गोंड जनजाति द्वारा क्यूरेट की गई, 'सुलूर' बांस की पवन बांसुरी एक अनूठे संगीत सृजन के रूपमें सामने आई है। पारंपरिक बांसुरी के विपरीत यह एक साधारण एक हाथ के घुमाव के माध्यम से धुन पैदा करती है।
छत्तीसगढ़ पवन बांसुरी के शिल्प कौशल में मछली के प्रतीकों, ज्यामितीय रेखाओं और त्रिकोणों केसाथ सावधानीपूर्वक बांस चयन, होल ड्रिलिंग और सतह पर नक़्क़ाशी शामिल है। संगीत से परे 'सुलूर' उपयोगितावादी उद्देश्यों को पूरा करता है, जनजातीय पुरुषों को जानवरों से दूर करने और जंगलों के माध्यम से मवेशियों का मार्गदर्शन करने में मदद करता है। यह कलात्मकता और कार्यक्षमता की एक सामंजस्यपूर्ण त्रिवेणी है, जो गोंड जनजाति के विशिष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है। गोंड पेंटिंग्स-गोंड जनजाति की कलात्मक प्रतिभा उनके जटिल चित्रों के माध्यम से निखरकर आती है, जो प्रकृति और परंपरा केसाथ उनके गहरे संबंध को दर्शाती है। ये पेंटिंग्स दुनियाभर में कला केप्रति उत्साही लोगों की कहानी व्यक्त करती हैं। गोंड कलाकारों ने अद्वितीय तकनीकों का उपयोग करते हुए समकालीन माध्यमों को विशिष्ट रूपसे अपनाया है। वे डॉट्स से शुरू करते हैं, छवि की मात्रा की गणना करते हैं, जिसे वे जीवंत रंगों से भरे बाहरी आकार बनाने केलिए जोड़ते हैं। ये कलाकृतियां, उनके सामाजिक परिवेश की गहराई से जुड़ी हैं, रोजमर्रा की वस्तुओं को कलात्मक रूपसे बदल देती हैं। गोंड पेंटिंग जनजाति की कलात्मक सरलता और उनके परिवेश केसाथ उनके गहरे संबंध के प्रमाण को दर्शाती है।
गुजरात हैंगिंग्स-गुजरात के दाहोद में भील और पटेलिया जनजाति की तैयार गुजराती वॉल हैंगिंग्स, जिसे दीवार के आकर्षण केलिए बहुत पसंद किया जाता है, एक प्राचीन गुजरात कला रूपसे आई है। पश्चिमी गुजरात की भील जनजातियों के तैयार किए गए इन हैगिंग्स में शुरू में गुड़िया और पालने वाले पक्षी,, सूती कपड़े और रिसाइकल्ड मैटेरियल होते थे, अब वे दर्पण के काम, ज़री, पत्थर और मोती को गौरव के रूपमें बताते हैं, जो परंपरा को संरक्षित करते हुए समकालीन फैशन के अनुरूप विकसित किए गए हैं। भेड़ ऊन के स्टोल-मूल रूप से सफेद, काले और भूरे रंग की मोनोक्रोमैटिक योजनाओं की विशेषता जनजातीय शिल्प कौशल की दुनिया एक बदलाव देख रही है। दोहरे रंग के डिजाइन अब खूब पसंद किए जा रहे हैं, जो बाजार की प्राथमिकताओं की झलक दिखाते हैं। हिमाचल प्रदेश/ जम्मू-कश्मीर की बोध, भूटिया और गुज्जर बकरवाल जनजातियां शुद्ध भेड़ ऊन केसाथ अपनी विशिष्टता का प्रदर्शन करती हैं, जैकेट से शॉल और स्टोल तक परिधानों की एक विविध श्रृंखला तैयार करती हैं। यह प्रक्रिया श्रम केप्रति लगाव को दर्शाती है, जिसे चार पैडल और सिलाई मशीनों केसाथ हाथ से संचालित करघों पर सावधानीपूर्वक किया जाता है। भेड़ के ऊन के धागे जटिल हीरे, सादे और हेरिंगबोन पैटर्न में बुने जाते हैं।
अराकू वैली कॉफी-आंध्र प्रदेश में सुरम्य अराकू घाटी से आने वाली यह कॉफी अपने अनूठे स्वाद और टिकाऊ खेती परिपाटी केलिए प्रसिद्ध है। यह भारत के प्राकृतिक उपहार का स्वाद प्रदान करती है। प्रीमियम कॉफी बीन्स की खेती करते हुए वे फसल से लेकर पल्पिंग और रोस्टिंग तक पूरी प्रक्रिया की सावधानीपूर्वक देखरेख करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक अनूठा पेय बनता है। अराकू घाटी अरेबिका कॉफी व्यवस्थित रूपसे उत्पादित अपने समृद्ध स्वाद उत्साहवर्धक सुगंध और शुद्धता केलिए एक विशिष्ट खूबियों का दावा करती है। राजस्थान कलात्मकता प्रदर्शन में-मोज़ेक लैंप, अम्बाबाड़ी मेटलवर्क और मीनाकारी शिल्प राजस्थान से ताल्लुक रखने वाले, ये हस्तशिल्प एक समृद्ध जनजातीय विरासत को दर्शाते हैं। ग्लास मोज़ेक पोटरी मोज़ेक कला शैली को कैप्चर करता है, जिसे सावधानीपूर्वक लैंप शेड्स और कैंडल होल्डर में तैयार किया गया है। जब रोशन किया जाता है तो वे रंगों का एक बहुरूपक दर्शाता है, जिससे हर स्थान जीवंतता हो जाता है।
मीनाकारी महत्वपूर्ण खनिज पदार्थों के साथ धातु की सतहों को सजाने की एक कला है, जो मुगलों की पेश की गई एक तकनीक है। राजस्थान की यह परंपरा असाधारण कौशल की आवश्यकता के बारे में बताती है। नाजुक डिजाइनों को धातु पर उकेरा जाता है, जिससे रंगों केलिए खांचे बनते हैं। प्रत्येक रंग को व्यक्तिगत रूपसे निकाला जाता है, जिससे जटिल, तामचीनी से सजे टुकड़े बनते हैं। धातु अम्बाबाड़ी मीना जनजाति के तैयार शिल्प तामचीनी को भी अपनाता है। यह एक सावधानीपूर्वक प्रक्रिया जो धातु की सजावट को बढ़ाती है। आज यह सोने से परे चांदी और तांबे जैसी धातुओं तक फैली हुई है। प्रत्येक टुकड़ा राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और शिल्प कौशल को दर्शाता है। प्रदर्शित ये हस्तशिल्प उत्पाद केवल सजावटी वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विविधता और विरासत के जीवंत अभिव्यक्ति हैं।