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'वन जलवायु के लिए एक समाधान हैं'

देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में बोले उपराष्ट्रपति

'विकास की जरूरतों केबाद भी वन फलते-फूलते रहें'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 28 October 2023 03:28:51 PM

vice president spoke at forest research institute in dehradun

देहरादून। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बुनियादी जरूरतों की पूर्ति विकास और पर्यावरण संरक्षण केबीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे यह सुनिश्चित हो सकेकि नागरिकों की विकास आवश्यकताओं को पूरा करने केबाद भी हमारे वन फलते-फूलते रहें। यह देखते हुएकि वन लाखों नागरिकों विशेषकर आदिवासी समुदायों की जीवन रेखा हैं, उन्होंने रेखांकित कियाकि यद्यपि इनका संरक्षण नाजुक और जरूरी है, फिरभी वन संसाधनों पर निर्भर समुदायों की भलाई से इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में वनों पर संयुक्त राष्ट्र मंच-भारत द्वारा देश के नेतृत्व वाली पहल के समापन समारोह को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने ये बातें कहीं। उन्होंने जैव विविधता के पोषण और संरक्षण पर बल देते हुए कहाकि हम अपने लापरवाह दृष्टिकोण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन केसाथ अपनी भावी पीढ़ियों को जोखिम में नहीं डाल सकते।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर नियंत्रण सुरक्षित भविष्य केलिए अत्यंत जरूरी है। यह चेतावनी देते हुएकि ये चुनौतियां एक तरह से अस्तित्वगत है, उन्होंने कहाकि यदि विकास टिकाऊ नहीं है तो ग्रह पर जीवित रहना दुष्कर होगा। उपराष्ट्रपति ने कहाकि जिस जलवायु चुनौती का हम सामना कर रहे हैं, वह किसी एक व्यक्ति को प्रभावित न करके समूचे ग्रह को प्रभावित करेगी, इसके समाधान खोजने केलिए एकजुट होकर पूरी ऊर्जा एवं सभी संसाधनों को लगाने का आह्वान किया। उन्होंने कहाकि जैसे विश्व के हर हिस्से केलिए कोविड एक गैर भेदभावपूर्ण चुनौती थी, वैसे ही जलवायु परिवर्तन का विषय कोविड चुनौती से कहीं अधिक संकटपूर्ण और गंभीर है। उन्होंने पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान केलिए समंवित वैश्विक रुख को एकमात्र विकल्प बताते हुए कहाकि कोई एक देश इसका समाधान नहीं ढूंढ सकता है और समाधान खोजने केलिए युद्धस्तर पर सभी देशों को एकजुट होना होगा।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि वन एक ऐसा कार्बन सिंक प्रदान करते हैं, जो हर साल 2 अरब 40 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन को अवशोषित करता है, हम सभीको यह समझने की आवश्यकता हैकि वन जलवायु केलिए एक समाधान हैं। उन्होंने कहाकि हमारे वन मात्र एक संसाधन नहीं हैं, बल्कि ये देश की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत को भी अपने में समाहित करते हैं। उन्होंने कहाकि गांव के जीवन और मवेशियों केलिए आवश्यक गांवों के चरागाहों, तालाबों का कायाकल्प और पोषण होना चाहिए, इन मुद्दों पर ग्रामीण जनता केबीच जागरुकता पैदा करने का आह्वान किया। उन्होंने अमृतकाल में अमृत सरोवर योजना के प्रभावी क्रियांवन्वयन पर भी प्रसन्नता व्यक्त की। यह स्वीकार करते हुएकि ऊर्जा वैश्विक क्षेत्र में शस्त्रीकरण का एक और तरीका बन गया है, उन्होंने स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की दिशा में भारत के विभिन्न कदमों को सूचीबद्ध किया। स्वच्छ ऊर्जा केप्रति भारत की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहाकि 2030 तक हमारी आधी बिजली नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न होगी।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को दूरदर्शी पहल बताते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि यह उद्यमियों केलिए रोज़गार के अवसर प्रदान करने केसाथ ही जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की चुनौतियों का भी ध्यान रखता है। जगदीप धनखड़ ने अमृतकाल को हमारा गौरव काल बताते हुए कहाकि विश्व हमारे अभूतपूर्व विकास से स्तब्ध है। उन्होंने कहाकि ब्रिटेन और फ्रांस को पछाड़कर भारत 2022 में पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन गया और इस दशक के अंततक अर्थात 2030 तक भारत इसबार जापान और जर्मनी केबाद तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बन जाएगा। उन्होंने कहाकि यह उन वैश्विक मुद्दों से निपटने केलिए भारत पर बड़ा दायित्व ले आता है, जिनका दुनिया आज सामना कर रही है। वनों में लगने वाली आग का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि तकनीकी प्रगति केबाद भी विकसित देश भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं, इसके समाधान केलिए बहुस्तरीय दृष्टिकोण का आह्वान करते हुए उन्होंने वनों की अग्नि का शमन करने के कदमों के रूपमें प्रौद्योगिकी, जागरुकता के सृजन और वनों के सही ढंग से पोषण को सूचीबद्ध किया।
उत्तराखंड के दो दिवसीय दौरे पर उपराष्ट्रपति ने पहले गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ के दर्शन किए। अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहाकि जबसे वह और उनकी पत्नी देवभूमि में उतरे हैं, तबसे दिव्यता, उदात्तता, शांति और प्राचीन वातावरण का उन्हें अनुपम अनुभव हुआ है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्राएं उनकी स्मृतियों में सदा बनी रहेंगी और ये दिव्य स्थान हमारी सभ्यता के लोकाचार और मूलतत्व को चिन्हित करते हैं। उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह, वन महानिदेशक चंद्रप्रकाश गोयल, संयुक्त राष्ट्र वन मंच के निदेशक जूलियट बियाओ कौडेनौक पीओ, अतिरिक्त महानिदेशक वन बिवाश रंजन, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद के महानिदेशक भरत, विभिन्न देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने देहरादून में वन अनुसंधान संस्थान में आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया।

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