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Friday 27 December 2013 06:58:54 AM
मुजफ्फरनगर। मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ितों को उनके घर से सुरक्षित राहत शिविरों में भेजने का फैसला अखिलेश सरकार के लिए दंगे से भी बड़ी मुसीबत बन गया है। सरकार ने सोचा था कि हालात सामान्य होने पर ये लोग अपने घरों को लौट जाएंगे, लेकिन सरकार की दंगा पीड़ित परिवार के प्रतिएक मृत सदस्य के परिजन को पांच लाख रुपए देने की रणनीति अखिलेश सरकार और समाजवादी पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो रही है। दंगा पीड़ितों को लोग उकसा रहे हैं और अब बच्चों की मौत पर भी उतना ही मुआवजा मांगा जा रहा है। राहत शिविरों में बड़े पैमाने पर हांसिल सभी बुनियादी सुविधाओं के कारण कोई इन शिविरों से अपने घर लौटने को तैयार नहीं है। टीवी चैनलों के राहत शिविरों में आते ही इनके लोग औरतों बच्चों को आगे कर देते हैं और वो रो-रोकर ऐसा दृश्य पैदा कर देते हैं कि लगता है कि वे दंगों से तो बरबाद हुए ही हैं, इन राहत शिविरों में भी महफूज नहीं हैं, उन्हें कोई राहत नहीं मिल रही है। यही नहीं, राहत शिविरों में मदरसे खुल गए हैं, जिन्होंने शिविरों की बेशकीमती जमीनें कब्जा ली हैं, जिन्हें उनसे मुक्त कराना भी सरकार के लिए एक नई बड़ी समस्या बन गई है। इन मदरसों में दीनी शिक्षा के अलावा बच्चों के सामने भड़काऊ तकरीर दी जाती है, इसलिए यदि आप बच्चों से बात करें तो उनकी भाषाशैली में आक्रामकता है और वे रटे-रटाए शब्द बोलते हैं कि हम यहां से नहीं जाएंगे।
अखिलेश सरकार के प्रमुख प्रतिक्रियावादी मंत्री मोहम्मद आज़म खान, कुछ और भी मुस्लिम मंत्री एवं सपा के ही मुसलमान नेता और बाहर से आ रही तंजीमों के लोग इन शिविरों में जमे बैठे पीड़ितों को उकसाने का काम कर रहे हैं। यदि आप इन राहत शिविरों में जाएं और अपने को मीडिया का आदमी ना बताएं तो आपको यहां का सच अच्छी तरह से देखने और सुनने को मिल जाएगा। इन लोगों को समझाया गया है कि मीडिया, मंत्री, अफसरों और नेताओं के आने पर उन्हें क्या कहना और करना है। एक विषय पर ये एकमत होकर बढ़ा-चढ़ाकर बोलते हैं कि उनका सबकुछ लुट चुका है और वे लौटे तो मार दिए जाएंगे, इसलिए अब वे अपने घर या गांव नहीं लौटेंगे। मुजफ्फरनगर और शामली में कुछ लोग ऐसे भी मिले, जिनका कहना था कि सरकार को उनके गांव और घरों पर सुरक्षा देकर हालात को सामान्य बनाने में सभी समुदायों का सहयोग लेना चाहिए था, इन राहत शिविरों से स्थितियां सुधरी नहीं हैं, बल्कि और ज्यादा खराब हुई हैं। सामान्य वार्तालाप में कुछ का कहना था कि हर कोई समझ रहा है कि लोकसभा चुनाव में मुसलमानों के वोट लेने के लिए ही ये सब हो रहा है, उसके बाद इन मुसलमानों को उनके हालात पर छोड़ दिया जाएगा, जो और भी खराब हो सकते हैं। यहां एक सवाल भी लोगों के ज़ेहन में है कि क्या ये राहत शिविर उनकी समस्या का अंतिम समाधान हैं? कुछ लोग अपने घर लौटना भी चाहते हैं, तो उन्हें मदरसे नहीं लौटने दे रहे हैं। अधिकांश इस सच्चाई को समझते हैं कि अपने घरों को छोड़ा भी नहीं जा सकता, खेती-बाड़ी है जमीनें हैं। उनके गावों के लोग भी उनसे संपर्क कर उन्हें अपने गांव लौटने और पहले की तरह मिल-जुलकर रहने को कह रहे हैं, लेकिन कुछ हैं, जो उन्हें कुछ और ही पढ़ा रहे हैं।
दरअसल ये लोग अब मान रहे हैं कि आजम खां के मुजफ्फरनगर पुलिस के अफसरों को बार-बार गए फोन के बाद यहां के हालात बिगड़ते ही गए। लखनऊ से लेकर यहां तक के अफसरों ने ऊपरी हस्तक्षेप के बाद हाथ ही खड़े कर दिए। अधिकारी अपने आपको बचाने में लग गए। राजनीति शुरू हो गई और हालात को टीवी चैनलों ने इतने वीभत्स तरीके से पेश किया कि सरकार को हड़बड़ाहट में कई ऐसे फैसले करने पड़े जिनमें एक फैसला राहत शिविर स्थापित करने का रहा, जिसका खामियाजा आज इन दंगा पीड़ितों को भुगतना पड़ रहा है। दोनों जिलों के अधिकारी इन राहत शिविरों का दौरा करते हैं और वहां राहत कार्यों पर खुद नज़र रखते हैं। वे डरे-सहमें रहते हैं कि उनकी शिकायत हो गई तो सरकार उनके खिलाफ तुरंत कार्रवाई कर देगी। अधिकारियों का कहना है कि वे उनको पूरी सुरक्षा के साथ उनके गांव घर पहुंचाने को तैयार हैं और बहुत से लोग घर लौटना भी चाहते हैं, सब जगह जनजीवन सामान्य है, लेकिन उन्हें अपने घर लौटने नहीं दिया जा रहा है। उनमें दहशत पैदा की जा रही है। दोनों जिलों के प्रशासन का दावा है कि हालात सामान्य हो चुके हैं और ऐसी स्थिति अब नहीं है कि इन शिविरों को अब चलाया जाए। दूसरी ओर यह बात सामने आई है कि लोगों को यह शिविर की ज़मीन खाली नही करने को कहा जा रहा है और उनसे कहा गया है कि सरकार से उनके लिए यहां पक्के घर बनवाए जाएंगे। मदरसे चलाने वालों ने काफी जमीन पर कब्जा जमा लिया है और प्रशासन के लोग कुछ भी करने या बोलने को तैयार नहीं हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि इस खयानत से हालात बिगड़ भी सकते हैं।
उधर मुजफ्फरनगर में दंगा पीड़ित राहत शिविरों में बच्चों की मौत पर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव गृह अनिल कुमार गुप्ता के बयान को लेकर खासा विवाद खड़ा हो गया है। उनके मुख से निकल गया था कि ठंड से कोई नहीं मरता है, अगर ठंड से कोई मरता तो साइबेरिया में कोई जिंदा नहीं बचता, बाद में उन्होंने कहा कि उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है। बहरहाल ये बयान उन लोगों के जख्म पर मरहम की जगह नमक लगाने जैसा हो गया, जिनके बच्चे राहत शिविरों में ठंड से मरे हैं। इनसे पहले मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि कैंपों में दंगा पीड़ित नहीं, बल्कि कांग्रेस-भाजपा के कार्यकर्ता और साजिशकर्ता हैं। शिविरों में मौतों की संख्या के अलग-अलग आंकड़े हैं। सरकार का कहना है कि विभिन्न कारणों से अबतक 34 बच्चों की मौत हुई है, जबकि गैर सरकारी सूत्र 40 बच्चों की मौत का दावा कर रहे हैं। राज्य सरकार ने शुरू में इन शिविरों में दो बच्चों की मौत की जानकारी दी थी और अब सरकार ने माना है कि राहत कैंप में अब तक 34 बच्चों की मौत हुई है। सरकार यह मानने को तैयार नहीं है कि राहत शिविरों में चिकित्सा और दूसरे इंतजाम नाकाफी थे, जिसकी वजह से ये मौतें हुई हैं। बारह दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मुजफ्फरनगर और शामली में लगाए गए राहत शिविरों में बच्चों की मौत से जुड़ी खबरों को गंभीरता से लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब-तलब किया था, जिसके बाद सरकार ने मेरठ के कमिश्नर मंजीत सिंह की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन किया था। समिति की रिपोर्ट में आया कि वहां कुल 34 बच्चों की मौत हो चुकी है। रिपोर्ट में है कि सामाजिक संगठन राहत सामग्री मुहैया कराने में जुटे हैं।
मुलायम सिंह यादव का यह कहना तो एक राजनीतिक आरोप से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता कि इन शिविरों में कांग्रेस-भाजपा के कार्यकर्ता और साजिशकर्ता हैं, मगर यह सही है कि शिविरों की जमीन पर योजनाबद्ध तरीके से कब्जा किया गया है, जिसे हटाना सपा सरकार के लिए मुश्किल हो गया है। मुलायम सिंह यादव के बयान के बाद मुसलमान नेता अखिलेश सरकार से बेहद नाराज हैं। बरेली के मुसलमान नेता तौकीर रज़ा और एक और राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त नेता ने तो सपा की मुखालफत करने का मीडिया को बयान भी दिया है। लोकसभा चुनाव में मुसलमान वोटों के लिए सपा को इन स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। अब यह एक नया मुद्दा सामने आ गया है। सपा सरकार को वोटों के लिए ब्लैकमेल किया जा रहा है, आज यह हर किसी के मुंह से सुना जा सकता है।