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Friday 15 August 2014 01:14:36 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रीय गन्ना किसान मजदूर संघ ने उच्च न्यायालय, इलाहाबाद में एक जनहित याचिका संख्या 29523/2014 दायर की है। यह जनहित याचिका उत्तर प्रदेश में चीनी मिलों द्वारा किसानों को देय गन्ना मूल्य बकाया वर्ष 2013-14 के संदर्भ में है तथा जनहित याचिका में मुख्य प्रतिवादी उत्तर प्रदेश सरकार, गन्ना आयुक्त उत्तर प्रदेश सरकार एवं उत्तर प्रदेश चीनी मिल संघ है।
याचिका में भारत सरकार के शपथ पत्र पर कुछ विवाद खड़ा हुआ है। जब पूरा कंट्रोल आर्डर न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत कर दिया गया है, तब उसके किसी अंश को उद्धृत करने में यदि कुछ शब्द छूट गए हैं तो उसे बदनीयती बताना अनुचित है, फिर भी न्यायालय में दायर शपथ-पत्र में संशोधन कर ऐसे पूरे अंश को हटा दिया गया है। भारत सरकार ने चीनी मिलों को जो, ब्याज ऋण दिलाने की योजना बनाई थी, उसमें बैंक, प्रदेश को 1875 करोड़ रूपए का ऋण स्वीकृत कर चुके हैं और लगभग 700 करोड़ रूपए के प्रार्थना-पत्र अंडर-प्रोसेस हैं। इन बिलों से प्राप्त धनराशि को एक अलग खाते में रखकर केवल गन्ना मूल्य भुगतान के लिए उपयोग किया जा सकता।
अभी तक इन निर्देशों का पालन न किए जाने की कोई जानकारी भारत सरकार के पास नहीं है, अत: कहीं से ऐसी सूचना प्राप्त होती है तो कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। भारत सरकार गन्ना किसानों को उनकी उपज का उचित एवं लाभप्रद मूल्य दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है। गन्ना किसानों को उनकी उपज का समय से भुगतान सुनिश्चित कराने के लिए आवश्यक कानूनी उपाय राज्य सरकार को ही करने होंगे, जिसके लिए कंट्रोल आर्डर में उन्हें पूरे अधिकार दिए गए हैं, क्योंकि फील्ड सेट-अप राज्य सरकारों के पास ही है।
भारत सरकार प्रतिवर्ष गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य निर्धारित करती है, जिस मूल्य से कम पर चीनी मिलें किसानों से गन्ना क्रय नहीं कर सकतीं। सुगरकेन कंट्रोल आर्डर 1966 में यह व्यवस्था है कि जो चीनी मिल 14 दिनों के अंदर गन्ना किसानों को गन्ने के मूल्य का भुगतान नहीं करती, उसे विलंब की अवधि के लिए 15% की दर से ब्याज देना होगा। समय से किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान कराने का दायित्व राज्य सरकारों का है, जिसके लिए सुगरकेन कंट्रोल ऑर्डर 1966 के क्लॉज 3 (8) के अनुसार राज्य सरकार अथवा उनका कोई प्रतिनिधि बकाया गन्ना मूल्य की वसूली के लिए रिकवरी सर्टिफिकेट कलक्टर को भेज सकता है।