Friday 16 January 2015 05:20:59 AM
दिनेश शर्मा
नई दिल्ली। दिल्ली में देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी रहीं किरण बेदी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होते ही दिल्ली विधानसभा चुनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। यूं तो यह चुनाव भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साख पर हो रहा है, किंतु किरण बेदी दिल्ली में भाजपा के एक तेज़तर्रार और साफ-सुथरे राजनीतिक चेहरे की जरूरत को जरूर पूरा करती हैं। दिल्ली वासियों का सुझाव भी था कि किरण बेदी राजनीति में आएं और नई पीढ़ी के सामने अपने प्रशासन के आर्दश प्रस्तुत करें। भाजपा ने किरण बेदी को यह अवसर दिया है और उनको दिल्ली में नरेंद्र मोदी की आशाओं से जोड़ते हुए आम आदमी पार्टी के नेता और कुछ दिन के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल से सामना करा दिया है। दिल्ली के संभावित चुनाव परिणाम लगभग सबको पता हैं, लेकिन इस चुनाव में जो खास है, वह किरण बेदी और अरविंद केजरीवाल का मुकाबला है, जिसमें जनसामान्य से लेकर राजनीति के लोगों और नौकरशाहों तक की दिलचस्पी जाग उठी है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की इस रणनीति के सामने आम आदमी पार्टी के नेता और कांग्रेस की स्थिति बड़े संघर्ष में चली गई है। भाजपा नेतृत्व ने दिल्ली की राजनीति में एक चाणक्य की तरह सजग वरिष्ठ केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के सुझावों को महत्व देते हुए और दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय, केंद्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन एवं विजय गोयल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को केंद्रित करते हुए उनको यह जिम्मेदारी दे दी है कि दिल्ली में भाजपा कम से कम पचास सीटें जीत कर आए। दिल्ली भाजपा में गुटबाजी से सख्ती से निपटते हुए भाजपा नेतृत्व ने किरण बेदी को भाजपा में शामिल कर आम आदमी पार्टी से हमदर्दी रखने वालों या उसके लिए काम कर रहे लोगों का मन बदलने का भी काम किया है, जैसे कि आम आदमी पार्टी की फायरब्रांड नेता रहीं शाजिया इल्मी और अन्ना आंदोलन से जुड़े और भी कई नेता भाजपा से जुड़ रहे हैं या जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं। अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल के लिए वातावरण विकसित करने में किरण बेदी की भी बड़ी भूमिका रही है, इसीलिए दिल्ली में जो लोग दुविधा की स्थिति में आ गए थे, वे अब निश्चित रूप से किरण बेदी के साथ दिखेंगे। अरविंद केजरीवाल के लिए यह स्थिति अत्यंत निराशाजनक है।
दिल्ली में जिन लोगों ने किरण बेदी की पुलिसिंग नहीं देखी है, वे उन्हें दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ते देखेंगे तो यह भी एक रोमांच होगा। नेता नही होकर भी नेताओं जैसे लिबास, अंदाज और मीडिया का कुशलता से सामना करने के तेवर से लैस किरण बेदी को भाजपा में शामिल होने के बाद, जब मीडिया ने घेरा तो कुछ के यही सवाल थे कि दिल्ली की मुख्यमंत्री होकर के वे क्या करेंगी? तो उन्होंने एक सवाल का उत्तर तो अमित शाह पर छोड़ दिया और दूसरे प्रश्न पर उन्होंने कहा कि दिल्ली को हिंदुस्तान का दिल बनाएंगे। इसका दूसरा उत्तर उनके पति बृज बेदी ने भी दिया कि वे सीएम बनती हैं तो उनके पास दिल्ली का अनुभव और अपार प्रशासनिक क्षमता है, वे बहुत काम करेंगी। स्थिति स्पष्ट हो गई है कि दिल्ली में भाजपा की जीत हुई तो किरण बेदी ही मुख्यमंत्री होंगी। वैसे भी किरण बेदी का भाजपा में आना यूं ही नहीं हुआ है, वह भले ही मोदी विज़न को आगे बढ़ाने की बात कह रही हों। किरण बेदी के दिल्ली की राजनीति में कूदने का दिल्ली की राजनीति पर बड़ा असर पड़ना लाजिम है। उनका भाजपा में आना भी मायने रखता है और इस असर से दिल्ली के भाजपा नेता भी प्रभावित हो गए हैं। अब उनके सामने भाजपा नेतृत्व के लक्ष्य को जी-जान से पूरा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि भाजपा अब दिल्ली में लक्ष्य हासिल करेगी। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में कांग्रेस नेता अजय माकन फंस गए हैं, जिनके नेतृत्व में कांग्रेस इस बार यह चुनाव लड़ रही है।
अरविंद केजरीवाल की विफलताएं किरण बेदी के लिए सफलता का कारक होंगी। अरविंद केजरीवाल केंद्रीय सेवा के अधिकारी रहे हैं, लेकिन एक राजनेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी राजनीतिक उदंडता उनके सामने एक अभिशाप बनकर खड़ी हो गई है। उनके राजनीतिक मुद्दे उनके ही खिलाफ गए हैं। उनके कार्यकर्ताओं में संशयात्मक जोश बचा है और वे जिन गलतियों को सुधारने की बात कर रहे हैं, राजनीति में उनकी कोई माफी नहीं है। अरविंद केजरीवाल को जनता ने एक अच्छे राजनेता के रूप में स्वीकार किया था, किंतु वे उकसावे की राजनीति में बनारस चुनाव लड़ने पहुंच गए। भ्रष्टाचार के मुद्दे ने भी उनका साथ छोड़ दिया है। वे ऐसी हवा के साथ चल रहे हैं, जो कभी भी पलट जाती है और किसी का स्थाई साथ नहीं देती। जहां तक उनकी ईमानदारी का प्रश्न है, आज लोग उसपर भी हंसते हैं। एक राजनेता के लिए इससे ज्यादा निराशाजनक स्थिति नहीं हो सकती। खुद को ईमानदार और दूसरों को बेईमान समझने की प्रवृत्ति ने उनको भारी नुकसान पहुंचाया है। इसका परिणाम विफल हुआ, जिसमें अन्ना आंदोलन सबके सामने है। वह जनसैलाब अपने परिणाम तक पहुंचने में यदि विफल हुआ तो उसके कारण भी अरविंद केजरीवाल एवं उनके कुछ खास मित्र भी हैं। दिल्ली विधानसभा चुनाव में कहने या करने के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा है। किरण बेदी ने दिल्ली में एक नई राजनीतिक हवा चला दी है, जो दिल्ली में आम आदमी पार्टी पर सबसे ज्यादा चलेगी। दिल्ली की जंग वाकई में दिलचस्प हो चली है, जिसका परिणाम अभी से दिखाई पड़ रहा है।
दिल्ली में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने किरण बेदी को भाजपा में शामिल करने की घोषणा करने के साथ जब ऐलान किया कि वे दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी लडे़ंगी, तो तभी समझ लिया गया था कि किरण बेदी भाजपा के मुख्यमंत्री का चेहरा भी होंगी, हालॉकि अमित शाह ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बारे में इतना ही कहा कि इसका निर्णय पार्टी का संसदीय बोर्ड करेगा। अमित शाह ने किरण बेदी को पार्टी का औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने से तो फिलहाल इंकार किया है, लेकिन कहा है कि भाजपा के सभी कार्यकर्ता मुख्यमंत्री बनने की क्षमता रखते हैं और अब किरण बेदी भी भाजपा की कार्यकर्ता हैं। भाजपा मुख्यालय में अमित शाह, केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली और डॉ हर्षवर्धन की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण करते हुए किरण बेदी ने कहा भी कि उनके पास 40 साल का प्रशासनिक अनुभव है और वह इस अनुभव को दिल्ली को भेंट करने आई हैं। उनका कहना था कि दिल्ली को एक मजबूत और स्थिर सरकार की जरूरत है, दिल्ली में बहुत-सी बुराइयां हैं, मुझे अनुभव है, मुझे काम करना और काम करवाना आता है, हम दिल्ली को हिंदुस्तान का दिल बनाएंगे। अरुण जेटली ने भी स्वीकार किया कि भाजपा ने इसी उद्देश्य से किरण बेदी के साथ संपर्क बनाया हुआ था, उनके आ जाने से भाजपा को और ताकत मिलेगी। सचमुच दिल्ली में नए मुख्यमंत्री की किरण दिखी है, अरविंद केजरीवाल के सपने पर किरण बेदी अभी से भारी दिख रही हैं, उधर दिल्ली में कांग्रेस में कोहराम और आम आदमी पार्टी पर विराम का शोर सुनाई दे रहा है।