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Friday 30 January 2015 05:52:21 AM
नई दिल्ली। कांग्रेस नेता जयंती नटराजन ने दिल्ली में मीडिया के सामने भारी नाराजगी व्यक्त करने के बाद आज कांग्रेस छोड़ दी। यूपीए सरकार में 2011 से 2013 तक वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहने वाली जयंती नटराजन ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक ख़त लिखा, जिसमें उन्होंने कहा है कि पर्यावरण से जुड़े कई प्रोजेक्ट्स को हरी झंडी न देने के लिए उन पर राहुल गांधी की ओर से दबाव था। उन्होंने लिखा कि उनके इस्तीफ़ा देने के बाद राहुल गांधी के दफ़्तर की ओर से उनके खिलाफ मीडिया में प्रचार किया गया।
जयंती नटराजन अभी तक इन मुद्दों पर खामोश थीं, लेकिन उन्होंने जब मुंह खोला, तब दिल्ली विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। जयंती नटराजन के इस इस्तीफे का इस चुनाव पर भी जरूर असर दिखेगा। उन्होंने अभी किसी राजनीतिक दल में जाने की घोषणा तो नहीं की है, लेकिन समझा जाता है कि वे भाजपा की ओर रुख कर सकती हैं या दक्षिण भारत में एक क्षेत्रीय दल के साथ जा सकती हैं, जिसके शीघ्र ही सामने आने की संभावना है। ध्यान रहे कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के पुत्र काति चिदंबरम ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करके कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। हाल ही में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी का भी ऐसा ही बयान आया था, जिसे बाद में उन्होंने सामान्य हालात की तरफ ढकेल दिया। पंजाब कांग्रेस के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह की भी नाराजगी सामने आई है और दिल्ली प्रदेश कांग्रेस में भी नाराजगी के स्वर सुनाई दिए हैं। कुल मिलाकर कई कांग्रेस नेता अपनी नाराजगी प्रकट कर चुके हैं।
जयंती नटराजन की नाराजगी कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है और दिल्ली में दक्षिण भारतीय वोटों का लाभ भाजपा को मिलना लाजिमी माना जा रहा हैं। उधर वित्तमंत्री अरुण जेटली ने आरोप लगाया है कि सोनिया गांधी को जयंती नटराजन का पत्र पुख्ता तौर पर साबित करता है कि कांग्रेस के लिए वैधानिक या आवश्यक मंजूरी की नहीं, बल्कि नेताओं की मर्जी ही अहम थी। अरुण जेटली ने जयंती नटराजन के परियोजनाओं के लिए हरित मंजूरी में राहुल गांधी के हस्तक्षेप के आरोप के बाद मंजूर और खारिज की गई पर्यावरणीय परियोजनाओं की समीक्षा की मांग की। वित्तमंत्री ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि अब पर्यावरण मंत्रालय उस समय मंजूरी और नामंजूर की गईं उन सभी अनुमतियों की समीक्षा करेगा और सुनिश्चित करेगा कि केवल कानून के मुताबिक ही इनका निपटारा हो और किसी अन्य बात पर नहीं।
वित्तमंत्री ने संवाददाताओं से कहा कि संप्रग शासन के दौरान विकास दर तेजी से घटी और इसकी मुख्य वजह परियोजनाओं की मंजूरी में विलंब था। उन्होंने कहा कि जयंती नटराजन का पत्र ठोस रूप से साबित करता है कि तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस गठबंधन के लिए वैधानिक या जरूरी मानदंडों का महत्व नहीं था। उन्होंने कहा कि उनके लिए जो महत्वपूर्ण था, वह था नेताओं की मर्जी के अनुसार किसको पर्यावरणीय मंजूरी दी जाए और किसको नहीं दी जाए। उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जहां ‘मर्जी’ कानूनी योग्यताओं पर भारी पड़ जाती है तो यह सांठगांठ वाले पूंजीवाद का मामला बन जाता है, जैसा कि संप्रग शासन में हो रहा था। संप्रग पर प्रहार करते हुए अरुण जेटली ने कहा कि यह एक अर्थव्यवस्था का कारोबार था, जो प्रतिशोध में कुछ लोगों को सबक सिखाना चाहता था, जबकि कुछ अन्य का समर्थन करना चाहता था।