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Wednesday 4 February 2015 02:33:36 PM
नई दिल्ली/ बीजिंग। अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत में राजपथ पर ऐतिहासिक गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के रूप में भारत यात्रा के बाद विश्व समुदाय को गए सकारात्मक संदेश से चीन काफी असहज दिख रहा है। उसकी कोई एक चिंता नहीं है, बल्कि उस पर अविश्वास के कारण और बदली हुई स्थितियों में भारत जैसे बड़े बाजार का हाथ से निकल जाने का भय, भारत में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार और उसमें भी उसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दुनियाभर में तेजी से बढ़ती लोकप्रियता एवं भारत की युवा शक्ति उसकी प्रमुख चिंताओं में हैं, जो अब कम होती नज़र नहीं आ रही हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हुईं नरेंद्र मोदी की चीन यात्राओं और अब भारत के प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा या चीन के प्रति उनके और भारत के नजरिए को एक दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
चीन ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि भारत की जनता एक झटके में हिंदूवादी भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता सौंप देगी, जो भारत के संदर्भ में उसकी विदेश नीति के लिए एक बड़ी और असहज कर देने वाली चुनौती बन जाएगी। भारत में कई फिरकों में बंटी कांग्रेस गठबंधन सरकार के खात्में ने रातों-रात विश्व के शक्तिशाली देशों का भारत के प्रति नज़रिया ही बदल दिया है, जिसकी परिणिति आज सबके सामने है। चीन के एक शक्तिशाली पड़ौसी और उसके भारत से तल्ख संबंधों की पृष्ठभूमि में भारतीय कूटनीति की सफलता और विफलता देखी जाएगी। भारत के सामने पाकिस्तान कोई बड़ी चुनौती नहीं है, उसके लिए चीन सर्वदा ज्यादा परेशानी खड़ी करने वाला देश है, जिसके कारण भारत को रक्षा तैयारियों पर बहुत धन खर्च करना होता है। एक सौ पच्चीस करोड़ की आबादी को पार कर चुके भारत को देखना है कि वह अपनी रक्षा तैयारियों और देश में विकास और गरीबी उन्मूलन जैसे कार्यक्रमों के बीच कैसे संतुलन स्थापित करे। भारत में दोनों का ही संबंध उथल-पुथल से भरी अर्थव्यवस्था से है, जिसके भीतर जातीय, सांप्रदायिक और सामाजिक समस्याओं का कोई अंत नहीं है। भारत में शक्तिशाली लोकतंत्र ही है, जिसने उसे इन सभी ताकतों का मुकाबला करने की शक्ति दी हुई है और दुनिया में इसकी बड़ी अहमीयत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मई में प्रस्तावित चीन यात्रा से पूर्व भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की चीन की कूटनीतिक यात्रा के दौरान यहां-वहां के मीडिया और कूटनीतिक क्षेत्रों में भी इस प्रकार के विचार और विश्लेषण छाए हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित चीन यात्रा चीनी मीडिया की सुर्खियां हैं। विश्लेषक यहां तक कहते हैं कि बदली हुई स्थितियों में दक्षिण एशिया में भारत के महत्व को देखते हुए चीन को भारत की सभी आशंकाओं को दूर करना चाहिए, चाहे वो सीमा विवाद हो या चीनी सैनिकों की भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ। उनका कहना है कि यदि चीन इसकी उपेक्षा जारी रखता है, तो उसे यह भी समझना होगा कि वह भारतीय बाजार से भी हाथ धो सकता है, जो किसी भी युद्ध में हुई जय और पराजय से बहुत ऊपर है। देखा जाए तो भारत का बाजार इस समय चीन के उत्पादों से अटा हुआ है, लेकिन कब तक? भारत की अर्थव्यवस्था में तेजी से सुधार हो रहा है और भारतीय बाजार पर बाकी दुनिया की भी तो नज़र है और कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में आना तय कर चुकी हैं।
चीनी सरकार नियंत्रित चाइना डेली और ग्लोबल टाइम्स के अलावा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अखबार पीपुल्स डेली ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात को प्रथम पृष्ठ पर जगह दी है, लेकिन यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि चीन के मन में भारत के प्रति धारणा सुखद हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि भारत-चीन के रिश्तों की डोर हजारों साल से हमें अटूट बंधन में बांधे हुए है, इसलिए दोनों को चाहिए कि हम एक-दूसरे को और बेहतर ढंग से समझे। चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित ‘विजिट इंडिया ईयर 2015’ कार्यक्रम को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए संबोधित करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि हमारी पुरातन सभ्यताओं ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है, आने वाली सदी एशिया की होगी, इस सदी में हमें एक बार फिर दुनिया को बहुत कुछ देना है, बहुत कुछ बताना है, इसके लिए जरूरी है कि हम एक-दूसरे को देखें, जानें, और समझें और यह तब होगा, जब हम एक-दूसरे के यहां और बड़ी संख्या में आए-जाएं, जनता के बीच आदान प्रदान विश्वास और सहयोग बढ़ाएं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सब यूं ही नहीं कहना पड़ा है। उनका संदेश साफ है, जिसमें सबकुछ है।
भारत के प्रधानमंत्री ने कहा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सितंबर में हुई भारत यात्रा के समय हमने फैसला किया था कि 2015 में चीन में विजिट इंडिया इयर होगा और 2016 में भारत में विजिट चाइना इयर होगा। उन्होंने चीन के लोगों को भारत आने का भी न्योता दिया। नरेंद्र मोदी का कहना है कि चीन के साथ मेरा निजी रूप से भी एक विशेष नाता है और मैं उसे बहुत गहरा रिश्ता समझता हूं। वे कहते हैं कि मेरा जन्म जहां हुआ, वो गुजरात प्रदेश का एक छोटा सा गांव वड़नगर है, जहां चीन के प्रसिद्द यात्री, शुआन जांग आए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन से संबंधों को बेहतर बनाने के जो प्रयास कर रहे हैं, उन्हें विश्व समुदाय भी देख समझ रहा है, लेकिन चीन की जो वास्तविकता है, वह कुछ और ही है। सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना भारत की नीति है, इसमें आज जो सबसे ज्यादा ध्यान रखने की बात है वो ये है कि विश्व के देशों की नज़र में भारत बदल गया है, चीन चाहे आज भी कुछ भी समझता हो। अमरीका से भारत की दोस्ती के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा के लिए मई की प्रतीक्षा शुरू हो गई है।