दिनेश शर्मा
Saturday 21 February 2015 03:03:48 AM
नई दिल्ली/ पटना। कठपुतली व्यक्ति के लिए एक प्रसिद्ध कहावत है-'कोठी कुठले छूना नहीं, बाकी सब घर तेरा' जी हां! बिहार में मांझी को नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव और उनके पिछलग्गुओं ने ऐसे ही खूब नाच नचाया है। जीतन राम मांझी बिल्कुल सच बोल रहे हैं कि बिहार सरकार के कोठी-कुठलों को इस गिरोह ने छूने तक नहीं दिया। बिहार में आरजेडी, जनता दल (यू) और कांग्रेस गठबंधन के नेताओं ने जीतन राम मांझी की सरकार को बिल्कुल इसी तरह और अपनी शर्त पर चलाया और जब मांझी सत्ता चलाने को आए तो उनका तख्ता ही उलट दिया गया। जनता दल यू और आरजेडी बिहार में देश के कुछ लोमड़ियों सदृश नेताओं के साथ मिलकर अब जो गुल खिलाने निकले हैं, उनकी सच्चाई जल्द ही बिहार और पूरे देश के सामने होगी।
बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी का विधानसभा में अपना बहुमत सिद्ध करने से पहले ही इस्तीफा देते हुए गठबंधन के नेताओं की ट्रांसफर पोस्टिंग की लिस्ट, चहेते मंत्रियों को विभाग का आवंटन, फाइव स्टार जन सुविधाओं के लिए दबाव, पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव या कांग्रेस के अजगर नेताओं के कार्यों के अनैतिक दबावों और बिहार विधानसभा अध्यक्ष के उनके प्रति संदेहजनक आचरण का फोड़ा जब फूटा तो ये सब मीडिया के सामने सफाई देते घूम रहे हैं। नीतीश कुमार ने फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए उतावले होकर, जिस तरह जीतन राम मांझी का तख्तापलट किया, उसके गड़े मुर्दे तो सामने आने ही थे। मांझी ने आखिर मीडिया को बताया कि इन नेताओं ने उन्हें किस तरह काम ही नहीं करने दिया। यह तो सर्वविदित ही था कि मांझी को मुख्यमंत्री बनाने की उनसे हजार गुना कीमत वसूल की जाएगी और यह बात उनके ही मुख से सामने भी आ गई कि वह नाम के मुख्यमंत्री थे, शासन तो कोई और ही चला रहे थे। मांझी वास्तव में अपने इन नेताओं के अनैतिक दबाव में थे, जिसका भंडाफोड़ हो गया।
भाजपा नेता नरेंद्र मोदी की प्रचंड विजय की भारी खिसियाहट में बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर महादलित जीतन राम मांझी की सरकार बनवाने वाले नीतीश कुमार आज कह रहे हैं कि वह भावनाओं में आ गए थे, दोबारा गलती नहीं होगी, बिहार की जनता उन्हें माफ करे और वह फिर से मुख्यमंत्री बनने को तैयार हैं। बिहार की जनता ने तो उन्हें भाजपा गठबंधन के साथ बहुमत दिया था, न कि आरजेडी या कांग्रेस के साथ। नीतीश कुमार चला चली की बेला में हैं और बिहार की जनता से माफी मांग कर उसे धोखा ही दे रहे हैं, जिसकी चपेट में बिहार की जनता शायद ही आए। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव, मायावती या उनके ही बिहार के मित्र लालू प्रसाद यादव नीतीश कुमार के लिए कितने संकटमोचक बनेंगे, जल्द ही इसकी पोल खुल जाएगी।
बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही जीतन राम मांझी के इस्तीफे के बाद बिहार में राजनीतिक संकट और ज्यादा गहरा गया है। आरजेडी, जनता दल यू और कांग्रेस के नेताओं को मांझी के गंभीर आरोपों का जनता में जवाब देना होगा। मांझी का महादलित हथियार नीतीश कुमार ने ही चलाया था। राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी ने नीतीश कुमार को सरकार बनाने के लिए न्यौता भेज दिया है और बाईस तारीख को सरकार बनवाने एवं उसके बाद लालू प्रसाद यादव की बेटी के कन्यादान के लिए बिहार से जमकर वसूली करने के बाद नकली दोस्ती का असली खेल शुरू हो जाएगा। बिहार में यह एक और बड़ी राजनीतिक अराजकता ही होगी, क्योंकि इस साल बिहार विधानसभा चुनाव में सजायाफ्ताओं, भ्रष्टाचारियों और अवसरवादियों का गिरोह सत्ता पाने के लिए सब तरह की होली खेलने को तैयार है। जीतन राम मांझी का अपने नेताओं से मोह भंग कोई यूं ही नहीं हुआ है, वह जनता दल यू के बड़े ही प्रतिबद्ध नेता थे और नीतीश कुमार ने सर्वाधिक विश्वासपात्र और महादलित नेता के रूप में उनको मुख्यमंत्री बनवाया था।
नीतीश कुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सामना करने से भाग खड़े हुए थे। यह तो उनका पाखंड ही था कि वे बहुत बड़े त्यागी राजनेता हैं। वास्तव में उन्हें अपने खिलाफ विद्रोह का खतरा था और लोकसभा चुनाव में अपनी भारी पराजय को भी सहन नहीं कर पा रहे थे, जिससे उन्होंने प्रपंच रचकर मांझी की सरकार बनवाई। वे चाहते थे कि जीतन राम मांझी रबर स्टैम्प की तरह चलें, किंतु एक समय बाद यह असंभव होता गया और इसकी परिणिति कुछ ही महीने में एक राजनीतिक विद्धवंस के रूप में हुई। एक समय जो मांझी कहा करते थे कि जिस दिन नीतीश कुमार कहेंगे, वे मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे, आज वे बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के लिए बड़ा काटा बन गए हैं, जिसे निकालना नीतीश कुमार या लालू यादव के बस की बात नहीं रही है। जीतन राम मांझी के सामने सरकार चलाने में ऐसी और क्या दुश्वारियां आईं कि उन्हें सार्वजनिक रूप से अपने नेताओं की इच्छा के विपरीत चलना पड़ा? इस प्रश्न का उत्तर बिहार मांगेगा। बिहार की सहायता के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करना मांझी का क्या कोई गुनाह था? नीतीश और लालू से बिहार के लोग यह पूछेंगे और उन्हें उनसे पूछना भी चाहिए। नीतीश कुमार ने लालू यादव से दोस्ती क्यों की, जब उनको लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ जनादेश मिला था? क्या मांझी का बिहार के विकास के लिए प्रधानमंत्री की सराहना करने का अपराध नीतीश कुमार के जोड़तोड़ की राजनीति में शामिल होने से बड़ा है? इन नेताओं को जवाब तो देना होगा।
नीतीश कुमार कह रहे हैं कि जीतन राम मांझी की स्क्रिप्ट बीजेपी ने लिखी है। प्रश्न यह है कि जब भाजपा के पास पासवान के रूप में दलित मौजूद हैं तो दलितो में मुट्ठीभर मुसहर भाजपा के लिए क्या कुछ कर पाएंगे? भाजपा विश्वासमत पर मांझी के पक्ष में खड़ी हुई थी तो क्या अब उसका नज़रिया नीतीश कुमार के विश्वासमत के लिए उनके पक्ष में हो जाएगा? नीतीश कुमार का खतरा टला ही नहीं है, चाहे वह अपनी सरकार का बहुमत सिद्ध क्यों न कर लें। नीतीश कुमार को उकसाकर लालू यादव उनसे अपना पुराना हिसाब बराबर कर चुके हैं, रही-सही कसर आगे पूरी हो जाएगी। नीतीश कुमार के साथ बाकी जो लोग दिख रहे हैं, उनमे ज्यादातर भागते भूत की लंगोटी ही सही के लिए साथ हैं। जीतन राम मांझी जो बोल रहे हैं, कि बड़े दबाव में वह सरकार चला रहे थे, तो इस विवाद के साथ बिहार में राजनीतिक और सत्ता का झगड़ा अब अपने चरम की तरफ जा रहा है, जिसमें दिल्ली की तरह से बिहार के परिणाम की आशा करने वाले ये नेता हाशिए की तरफ बढ़ रहे हैं। बिहार में लालू यादव सत्ता के लिए परेशान हैं, मगर अपने दम पर सत्ता में वापसी की उनकी दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं दिखती है। चुनाव में सीटों को लेकर उनकी नीतीश कुमार से फिर से जंग भी तय ही है। बिहार चुनाव के लिए इन सभी का किसी तरह भाजपा विरोधी गठबंधन बनता भी है तो बिहार में ऐसे भी समीकरणों का उदय हो रहा है, जो भाजपा को उसके अनुकूल परिणाम दे सकते हैं।
नीतीश कुमार मीडिया के सामने इस भय से भी ग्रस्त दिख रहे हैं कि बिहार में दलित मुद्दा उनका राजनीतिक रूप से भारी नुकसान कर सकता है, क्योंकि लालू यादव भी पराई आग से दूर रहने की पूरी कोशिश करेंगे। नीतीश कुमार ने मुलायम सिंह यादव का दर्द जाने बिना, बसपा अध्यक्ष मायावती से जो भावी राजनीतिक आशा लगा रखी है, वह भी बिहार में इसलिए फलीभूत नहीं हो सकती, क्योंकि एक तो मायावती भरोसेमंद राजनेता नहीं हैं और फिर पहले वह उत्तर प्रदेश ही देख लें, जहां से उनका सफाया हो चुका है, दूसरे बिहार में उनकी रामविलास पासवान के सामने एक भी नहीं चलने वाली है। जहां तक बीजेपी का जीतन राम मांझी के विश्वासमत को समर्थन देने की घोषणा का प्रश्न है, तो उसने अपने को इस आक्षेप से बचाया है कि बिहार में सबने मिलकर एक महादलित को सत्ता से बेदखल कर दिया है। भाजपा जानती थी कि जीतन राम मांझी के सामने बहुमत साबित करने के लिए पर्याप्त संख्याबल नहीं है, लेकिन उसने स्पष्ट रूप से रणनीतिक तौर पर जीतन राम मांझी के विश्वासमत का समर्थन करने का फैसला किया। नीतीश कुमार एवं अन्यों को उसमें क्या जोड़तोड़ नज़र आई? भाजपा तो यहां किसी भी तरह सरकार नहीं बना रही थी। उसकी नज़र तो बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियों पर है, इसलिए नीतीश कुमार के आरोप किसी के गले उतरने वाले नहीं हैं।
बीएसपी ने भी एक बयान में नीतीश कुमार से सुर मिलाते हुए भाजपा पर उन जैसे ही खिसियाहट से भरे आरोप लगाए हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि भाजपा को बिहार में सत्ता हथियाने हेतु साम, दाम, दंड, भेद आदि अनेक प्रकार के हथकंडे अपनाने के बावजूद मुंह की खानी पड़ी है। मायावती ने भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार पर सत्ता हथियाने के लिए बिहार राज्य को राजनीतिक तौर पर अस्थिर करने एवं वहां एक प्रकार से अराजकता का माहौल पैदा करने का आरोप लगाया है। मायावती की स्थिति यह है कि वे स्वयं अपने ही दल बसपा में किसी को नेता बनते देखना नहीं चाहतीं, बिहार में रामविलास पासवान उन्हें घुसने नहीं देते और वे अब जीतन राम मांझी का विरोध करने निकली हैं। ममता बनर्जी हों या मायावती, बिहार में इनका कोई वजूद नहीं है। रही बात मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव की, तो दोनों में रिश्तेदारी इनके लिए कोई राजनीतिक शक्ति प्रदान कर सकेगी, इसका बिहार विधानसभा चुनाव में ही पता चल जाएगा। नीतीश कुमार बाईस तारीख को बिहार के चौथी बार मुख्यमंत्री बन जाएंगे। भाजपा से अलग हो जाने के बाद भी उनकी सरकार को बहुमत मिल गया था और इस बार भी बहुमत हासिल हो जाना चाहिए, किंतु कहने वाले कहते हैं कि कितने समय के लिए मुख्यमंत्री होंगे नीतीश कुमार और लालू यादव से आगे कितनी दोस्ती चल पाएगी?