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Thursday 21 May 2015 03:24:36 AM
देहरादून। उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल के आमंत्रण पर राज्य के बारह जनपदों के 6 से 15 वर्ष तक के 72 बच्चों ने राजभवन के प्रेक्षागृह में लोकप्रिय बाल फिल्म ‘द लायन किंग’ का हिंदी रूपांतरण देखा। राज्यपाल ने इन सभी बच्चों के बीच पहुंचकर उनसे संवाद स्थापित किया। नितांत अनौपचारिक वातावरण में राज्यपाल से हुई मुलाकात तथा उनके स्नेहिल व्यवहार से प्रसन्न तथा उत्साहित बच्चों ने राज्यपाल को शिविर के अनुभव सुनाने के साथ ही उनके समक्ष आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए। बच्चों की सुंदर सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से अभिभूत राज्यपाल डॉ कृष्णकांत पाल ने कहा कि ग्रामीण अंचलों से आए इन बच्चों ने साबित किया है कि उनमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं है।
उत्तराखंड बाल कल्याण परिषद के तत्वावधान में दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के ये सभी बच्चे ’मिलकर रहना सीखो’ राज्य स्तरीय वार्षिक पांच दिवसीय शिविर 2015 के अंतर्गत राजभवन पहुंचे थे। शिविर के दौरान बच्चों की प्रतिभा को प्रोत्साहित करने की दृष्टि से आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेता बच्चों को राज्यपाल ने सम्मानित भी किया। राज्यपाल ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि बच्चों को एक बेहतर इंसान और एक अच्छे नागरिक बनाने में ’मिलकर रहना सीखो’ जैसे आयोजनों की भूमिका बहुत अहम हो सकती है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग जाति-धर्म, भाषा-बोली तथा अलग-अलग पारिवारिक माहौल से आए ये बच्चे जब कई दिनों तक एक साथ शिविर में रहते हैं तो उन्हें एक-दूसरे का व्यवहार समझने का मौका मिलता है, इससे आपस में मिलजुल कर रहने, एक-दूसरे की मदद करने की भावना और समझ विकसित होती है, शिविर में कोई भेदभाव न होने से उनमें सामाजिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता की भावना भी पनपती है।
राज्यपाल ने कहा कि राज्य के सुदूरवर्ती ग्रामीण अंचल से देहरादून आए इन बच्चों को नई-नई जगह देखने का मौका मिलने से इनके ज्ञान, सोच-विचार तथा कल्पनाओं का दायरा बढ़ेगा, आत्मविश्वास में भी वृद्धि होगी, जिससे इन्हें जीवन में आगे बढ़ने का हौसला और ऊर्जा मिलेगी। राज्यपाल ने पुरस्कृत बच्चों को शाबासी देने के साथ ही अन्य बच्चों से कहा कि वे यह न समझें कि उनमें काबिलियत नहीं है, जिन्हें आज पुरस्कार नहीं मिला है, उन्हें कल किसी और क्षेत्र में जरूर सम्मान मिलेगा। उन्होंने बच्चों को पूरे लगन, कड़ी मेहनत से पढ़ने तथा अनुशासित आचरण के लिए प्रेरित करते हुए कहा कि अनुशासन एक ऐसी ताकत है, जिससे प्रत्येक लक्ष्य हासिल हो सकता है। उन्होंने बच्चों से कहा कि शिविर से वापस जाकर वे अपने अनुभव साथियों से साझा करें। बच्चों के साथ आए शिक्षकों एवं शिविर के आयोजकों की सराहना करते हुए राज्यपाल ने कहा शिक्षक देश और समाज की उन्नति के सारथी होते हैं, बच्चों का भविष्य संवारना उनकी अहम जिम्मेदारी है, विशेष रूप से किशोरावस्था में पहुंच चुके या पहुंचने वाले बच्चों को शिक्षकों का सही मार्गदर्शन उनकी ज़िंदगी को नया मोड़ दे सकता है।
राज्यपाल ने कहा कि इंटरनेट के इस युग में शिक्षकों का बच्चों को पढ़ाई से संबंधित विषयों का ज्ञान देने से ज्यादा अहम है, उनके चरित्र निर्माण का कार्य, शिक्षकों को बच्चों के सामने अपने आचरण से ऐसे आदर्श रखने होंगे, जिन्हें देखकर बच्चों को अच्छा नागरिक और इंसान बनने की प्रेरणा मिल सके। उन्होंने सुविधाविहीन परिवारों के बच्चों की पढ़ाई में मददगार शिक्षकों व स्वयंसेवियों की सराहना करते हुए कहा कि उनके इस प्रयास से समाज के और लोग भी प्रेरित होंगे और शीघ्र ही ऐसा समय भी आएगा, जब प्रत्येक बच्चे को समान शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त हो जाएगा। भ्रमण दल में बच्चों के साथ जनपदों से आए 25 एस्कार्ट शिक्षक-शिक्षिका एवं राज्य बाल कल्याण परिषद के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सुशील डोभाल, महासचिव बाल कृष्ण डोभाल, संयुक्त सविच केपी भट्ट सहित कई आजीवन सदस्य तथा स्वयंसेवी संगठनों के प्रमुख भी मौजूद थे।