वीरेंद्र त्रिपाठी
Saturday 29 September 2018 06:23:56 PM
लखनऊ। राष्ट्रस्तरीय वैज्ञानिक संगठन ब्रेकथ्रू साइंस सोसाइटी के उत्तर प्रदेश राज्य प्रखंड ने अपना दूसरा राज्य सम्मेलन आईएमए भवन लखनऊ में आयोजित किया, जिसमें भारतीय विज्ञान शिक्षण एवं अनुसंधान कोलकाता के डीन, संगठन के राष्ट्रीय महासचिव और भटनागर सम्मान प्राप्त प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने प्रमुख वक्ता थे और सम्मेलन का विषय था-'विज्ञान का समाज के साथ एकीकरण।' प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने विषय पर बोलते हुए कहा कि विज्ञान ने भिन्न-भिन्न असंख्य तरीक़ों से हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में तमाम वे चीजें जिन्हें हमने अभिन्न अंग के तौरपर स्वीकार कर लिया है जैसे एक बटन दबा देने मात्र से ही तत्काल उजाला हासिल कर लेना, विज्ञान से प्राप्त उपहार है। सम्मेलन में आम जनमानस तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण की गहरी पैठ कराने हेतु कारगर प्रयास के इरादे से एक सलाहकार मंडल और एक संयोजन समिति का गठन भी किया गया।
प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा कि विज्ञान केवल तकनीकी विकास और खोजों से सम्बद्ध नहीं है, विज्ञान एक विश्व दृष्टिकोण है, यह वस्तु जगत को देखने का एक विशेष तरीक़ा है, इसके पास हमारे इर्द-गिर्द के संसार को समझने की एक विशिष्ट पद्धति है, यह चिंतन की एक ख़ास शैली को अंतर्निविष्ठ कराता है और इसकी एक सामाजिक प्रतिबद्धता है। प्रोफेसर बनर्जी ने कहा कि विज्ञान का दर्शन, प्राचीन एवं आधुनिक दर्शनों की अन्य सभी श्रेणियों से स्पष्टतया भिन्न है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश हमारी शिक्षा प्रणाली लगभग पूर्णतया विज्ञान के केवल तकनीकी पहलू के अनुकूल बना दी गई है, इसकी पद्धति, इसके दर्शन और विश्व दृष्टिकोण को केवल एक सरसरी निग़ाह से देखा जाता है, वो भी अगर हो सका तो। प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा कि हमारी शिक्षा ख़ासतौर पर स्कूली स्तरपर शिक्षार्थियों को विवेकपूर्ण चिंतन और तर्कसंगत कार्यकलापों के लिए शिक्षित नहीं करती है, परिणामस्वरूप यद्यपि हमारा संविधान नागरिकों को वैज्ञानिक स्वभाव को आत्मसात करने और बढ़ावा देने का विशेषाधिकार प्रदान करता है।
प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा कि विवेकशीलता, वस्तुनिष्ठता और एक दृढ़ एवं उत्साहपूर्ण रचनात्मक संशयवादिता जैसे सद्गुण वर्तमान भारतीय समाज की मनोवृत्ति में गहरी पैठ नहीं बना पाए हैं। प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा कि समाज और विज्ञान के बीच एक विच्छेद है, जो भारतीय समाज एवं भारतीय विज्ञान, दोनों ही के लिए घातक साबित हुआ है। प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा कि आमजन के व्यापक तबके अपनी पतनोन्मुखी परिस्थिति से अपने को ऊपर उठाने में अक्षम रह गए हैं और अंतत: सामाजिक योगदान के अभाव के कारण भारतीय विज्ञान भी क्षरित होता जा रहा है। बीरबल पुरातत्व विज्ञान संस्थान के अवकाशप्राप्त और दिल्ली में परामर्शदाता के रूपमें कार्यरत वैज्ञानिक डॉ चंद्रमोहन नौटियाल ने एक संक्षिप्त वक्तव्य का पाठ किया। सॉफ्टवेयर इंजीनियर मनीष शुक्ला ने कुछ वैज्ञानिक प्रयोगों के प्रदर्शन से छात्रसमूह का ज्ञानवर्धन किया।
लखनऊ विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ सरजित सेनशर्मा, हरकोर्ट बटलर प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कानपुर के एसोसियेट प्रोफेसर डॉ ब्रजेश कटियार, सेवानिवृत्त प्रोफेसर एचएस निरंजन और संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य दिनेश मोहांता एवं जयप्रकाश मौर्य ने भी विज्ञान सम्मेलन को संबोधित किया। श्रोताओं ने वक्ताओं से वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्बंधित तमाम सवाल किए और समाज के साथ विज्ञान के एकीकरण का रुख लिए हुए विज्ञानसभा भवन से विदा ली। कार्यक्रम की शुरुआत प्रख्यात गायन शिक्षक और संगीतकार असीम सरकार के एक स्वागत गीत से हुई। सम्मेलन में भाग लेने वाले छात्रसमूह को प्रमाणपत्र वितरित किए गए और प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने वायलिन पर एक संक्षिप्त संगितिक प्रस्तुति देते हुए कार्यक्रम का समापन किया।