मनोज कुमार
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के स्टार नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरद्र भाई मोदी भाजपा के अग्रिम पंक्ति के नेताओं के लिए चुनौती कायम किये हुए हैं। गुजरात को छोड़कर बाकी देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है, जहां भाजपा ने लगातार अपनी सरकार दोहराई हो। इससे पता चलता है कि भाजपाई मुख्यमंत्रियों ने भी कांग्रेसियों की तरह राज्यों में अपनी शासन प्रणाली से वहां की जनता का दूसरी बार विश्वास नहीं जीता। इसीलिए जनता ने रूष्ट होकर इनको दूसरी बार सत्ता से बाहर किया।यह इस बात का प्रमाण है कि भाजपाई शासन चलाने और लोकप्रिय रणनीतियां बनाने में विफल रहे हैं। गुजरात में नरेंद्र मोदी भारतीय जनता पार्टी को तीसरी बार सत्ता में लाए हैं तो उसका कारण केवल उनका हिंदुत्व नहीं है, बल्कि उन्होंने अपनी रणनीतियां बनाकर और टांग अड़ाने वालों को एक किनारे कर गुजरात में विकास के कार्य किए हैं उससे वहां की जनता ने उन्हें सर आंखों पर बैठाया है। इसीलिए भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने बाकी मुख्यमंत्रियों से मोदी जैसा काम कर दिखाने को कह रहा है।
दिल्ली में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजनाथ सिंह ने अपने अध्यक्षीय भाषण में लालकृष्ण आडवाणी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने का बार-बार जिक्र करके ऐसा संकेत दिया जैसे इस पद के लिए कोई और भी बार-बार दरवाजा खटखटा रहा है, जिसे अंदर आने की इजाजत नहीं मिल रही है। नरेंद्र मोदी की तारीफ भारत सरकार भी कर रही है, जो कह रही है कि गुजरात विकास का एक मॉडल है। भारत सरकार अपनी कई विकास योजनाओं के महत्वपूर्ण प्रयोग गुजरात में कर रही है क्योंकि उसे वहां इनके अनुकूल वातावरण मिल रहा है। जो गुजरात भूकंप से ध्वस्त हो गया था, आज वह फिर से वैसे खड़ा हो रहा है तो निश्चित रूप से यह मोदी के काम की देन है। मोदी ने गुजरात में जमकर विकास किया है तो वैसे ही राजनीति से अपने प्रचंड विरोधियों को ध्वस्त भी किया है।
लोकसभा का चुनाव अभी दूर है और भाजपाइयों ने प्रधानमंत्री तय कर लिया है। भाजपा की इसी लॉबी ने ऑपरेशन नरेंद्र मोदी चलाया हुआ है। कारण यह है कि पूरा देश नरेंद्र मोदी को देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में देख रहा है, जिससे भाजपा के बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह और दूसरे नेताओं के सीने पर सांप लौट रहा है। प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित लालकृष्ण आडवाणी का क्या जनाधार है? यह कि वह भारतीय जनता पार्टी के हार्डकोर के नेता हैं? भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी बुरा लग सकता है लेकिन क्या यह सत्य नहीं है कि उन्होंने भी दूसरों की सरकार बचाए रखने के चक्कर में भाजपा को बहुत पीछे पहुंचा दिया? इस प्रश्न का सही उत्तर भी कभी नहीं मिलने वाला कि उमा भारती भारतीय जनता पार्टी से बाहर क्यों की गईं, गोविंदाचार्य क्यों नाराज हुए और उप्र में मायावती की तीन बार सरकार बनवाने का भाजपा को क्या लाभ मिला? किसी भी भाजपाई की हिम्मत नहीं रही कि वह शीर्ष नेतृत्व के फैसले के खिलाफ खड़ा हो जाए। जो खड़े भी हुए थे, वह आज भाजपा में उपेक्षित हैं या पार्टी से बाहर हैं।
गुजरात में नरेंद्र मोदी अपने शासन व्यवस्था के दम पर सत्ता में लौटे हैं। जहां तक हिंदुत्व का प्रश्न है तो अगर केवल हिंदुत्व से ही भाजपा की सरकार में वापसी होती तो देश के उत्तर भारत के बाकी राज्यों में भाजपा सत्ता से बाहर क्यों होती आयी है? राजनीतिक विश्लेषण करने वाले कहते हैं कि नरेन्द्र भाई मोदी ने खुद को भारतीय जनता पार्टी का प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित नहीं किया है, अपितु उनकी गुजरात में जबरदस्त जीत ने उन्हें इस पद का दावेदार बना दिया है। इसे बीजेपी के कुछ नेताओं ने स्वतः ही उन्हें अपने लिए खतरा मान लिया है, जिससे वे मोदी को प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से बाहर ढकलने की कोशिश करते नजर आते हैं। स्वतंत्र आवाज डॉट काम, वरिष्ठ पत्रकार आलोक तोमर के इस विश्लेषण से बिल्कुल सहमत है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में जनता नरेंद्र मोदी की ही मांग करेगी और भाजपा के बाकी नेता उस समय हासिये पर दिखाई देंगे। क्योंकि नरेंद्र मोदी ही इस समय भाजपा के लिए अवतार की भूमिका में हैं। जहां तक अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, अरूण जेटली, सुषमा स्वराज, वैंकया नायडू सहित अन्य नेताओं का प्रश्न है तो उनकी भूमिका को किसी भी प्रकार से नकारा नहीं जा सकता। जहां तक हिंदुत्व का प्रश्न है तो अकेले इस मुद्दे पर भाजपा की किसी भी सरकार में वापसी कदापि नहीं हो सकती।
उत्तर प्रदेश में रामप्रकाश गुप्त, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह भाजपाई मुख्यमंत्री हुए हैं। लेकिन इनके कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में न तो सुशासन रहा और न भाजपा बची। इन राजनेताओं के निजी एजेंडों और निरंकुश नौकरशाही ने ईमानदारी के नाम पर प्रदेश में न राजनीतिक माहौल बनने दिया और ना ही यह राजनेता एक शानदार शासन ही दे सके। मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी कमोवेश यही हालत है। वहां आने वाले समय में भाजपा की सरकारों का पतन मानकर चला जा रहा है। इस कालखंड में भाजपा मध्य प्रदेश में तीन मुख्यमंत्री बदल चुकी है और राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया महारानी की तरह से राजमहल में रहती हैं। उन्हें न भाजपा से मतलब है और न आम आदमी से सरोकार। वह न किसी से मिलती हैं और न ही उन्होंने ऐसा विकास का कार्यक्रम राजस्थान को दिया जिसके बल पर वह घर बैठे चुनाव में वापसी का दावा कर सकें। वसुंधरा राजस्थान के जातीय संघर्ष को रोकने में भी पूरी तरह से विफल रही हैं। गुर्जरों और मीणा समुदाय के बीच टकराव का समाधान राजनीतिक रूप से होना था, यह किसी दारोगा या एसपी का काम नहीं था। यह मामला सीधे वसुंधरा राजे सिंधिया की राजनीतिक परीक्षा से जुड़ा था, जिसमें वह पूरी तरह से विफल हुई हैं। भाजपा नेता जसवंत सिंह ने तो वसुंधरा के खिलाफ सीधे-सीधे मोर्चा खोल रखा है। वहां पर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर नेतृत्व बदलने से भी हालात सुधरते नहीं दिख रहे हैं।
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हालात खराब ही खराब हैं। वहां की जनता को सस्ते चावल का झुनझुना देकर खुश करने की कोशिश की जा रही है, मगर दोनों जगह की जनता खुश नहीं है। मध्य प्रदेश में हाल के उप चुनावों के परिणाम भी भाजपा के ही खिलाफ गए हैं। फिर भी शिवराज सिंह चौहान पता नहीं किस फार्मूले से आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा की वापसी का दावा कर रहे हैं। यह तब है जब मध्य प्रदेश में प्रचंड राजनेता उमा भारती के कारण बीजेपी सत्ता में आई थी और आज वह उमा भारती भाजपा से बाहर हैं। एक अदालती वारंट के कारण उमा भारती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था उसके बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उमा भारती का जो हाल बनाया वह पूरे देश के सामने है। उन नेताओं ने उमा भारती को ठिकाने लगाने का काम किया है जिनका कोई जनाधार नहीं है। नरेंद्र मोदी अपने को ऐसे नेताओं से बचाने में सफल हुए हैं जिससे उन्होंने न केवल गुजरात में भाजपा का तीसरी बार परचम लहराया बल्कि उन्होंने एक कुशल राजनेता और शासनकर्ता के रूप में अपने को स्थापित कर लिया है जहाँ तक उनके प्रधानमंत्री बनने का प्रश्न है तो यह भाजपा की आंतरिक रणनीतियों का मामला है लेकिन मोदी अपनी भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत दस्तक दे चुकें हैं, जिसे सभी मान रहें हैं।