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गाजियाबाद। हत्याओं, लूट, डकैती, फिरौतियों और गुंडा टैक्स की तरह चंदा वसूली से थर्राये गाजियाबाद और आस-पास के इलाकों में लोगों की जान-माल और सुरक्षा भले ही चौबीस घंटे खतरे में हो मगर यहां पुलिस उन मामलों में ज्यादा दिलचस्पी लेती दिखाई दे रही है जिनमें बड़े पैमाने पर धन की उगाही हो सकती है। दहेज एवं महिला उत्पीड़न, एससी/एसटी एक्ट, आवश्यक वस्तु अधिनियम, खाद्य पदार्थों में मिलावट, अवैध शराब की बिक्री और ज़मीन-जायदाद के मामलों में गाजियाबाद पुलिस की दिलचस्पी 'खास' मायनों में देखते ही बनती है। दहेज उत्पीड़न और बहु को मानसिक और शारीरिक यातनाएं देकर उसे घर से निकालने एवं उसमें पुलिस की फाइनल रिपोर्ट का एक मामला इन दिनों गाजियाबाद में काफी चर्चा का विषय है। अपने को मुख्यमंत्री मायावती का अत्यंत विश्वासपात्र प्रचारित करने वाले और आईपीएस काडर में भ्रष्ट और बदनाम गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रघुबीर लाल की इस मामले में भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह मामला शुरूआती दौर में तो न्याय की तरफ जाता दिखाई दिया था मगर जैसे ही यह एसएसपी रघुबीर लाल के हाथों में आया, न्याय की धज्ज़ियां उड़ती चली गईं। मामला कुछ इस तरह से बताया जाता है-
गाजियाबाद की वसुंधरा कालोनी में दो अभिन्न मित्र हुआ करते थे- गिरीश चंद्र आर्य और विजय कुमार चावला। विजय चावला ने इस दोस्ती को रिश्ते में बदलने के लिए अपने पुत्र अमित चावला के लिए गिरीश आर्य से उनकी पुत्री मांगी। आर्य दंपत्ति ने कहा भी कि दोस्ती को दोस्ती ही रहने दिया जाए लेकिन चावला दंपत्ति ने उन्हें इसके लिए राजी कर लिया। चावला परिवार यह बात अच्छी तरह जानता था कि आर्य दंपत्ति की आर्थिक स्थितियां क्या और कैसी हैं। आर्य दंपत्ति ने अपनी पुत्री प्रियंका की शादी 26 अप्रैल 2007 को विजय कुमार चावला के पुत्र अमित चावला के साथ बड़ी धूम-धाम से और अपनी हैसियत से भी ज्यादा दान-दहेज के साथ की। मगर विजय चावला, उनकी पत्नी विनोद कुमारी चावला और पुत्र अमित चावला की और ज्यादा दहेज की मांग ने आर्य दंपत्ति को स्तब्द्ध कर दिया और इस पर बढ़ी तकरार की शिकार बनी आर्य दंपत्ति की पुत्री प्रियंका। आर्य दंपत्ति को शादी के पूर्व कभी यह एहसास नहीं हुआ कि शादी के तुरंत बाद प्रियंका का पति अमित चावला और उसके घर वाले दहेजखोर हो जाएंगे और अपनी मांग मनवाने के लिए प्रियंका को मानसिक और शारीरिक यातनाएं भी देने लगेंगे। प्रियंका का पति अमित चावला तो रोज ही सवेरे दोपहर शाम मारुति स्विफ्ट कार और अन्य सामान के लिए प्रियंका को मारने-पीटने लगा। प्रियंका चुपचाप यह सब बर्दाश्त करती रही और चावला परिवार का तांडव अपने चरम की ओर बढ़ने लगा। बात यहां तक बढ़ गई कि चावला परिवार, प्रियंका की हत्या पर ही उतारू हो गया। प्रियंका पर अत्याचारों को वसुंधरा कालोनी के रहवासियों ने भी आए दिन अपनी आंखो से देखा और सुना है। नोएडा में एमिटी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता (मास कॉम) पढ़ा रहे अमित चावला की दरिंदगी इस हद तक बढ़ गई की उसने शाकाहारी प्रियंका को जबरदस्ती मांस खाने, शराब पीने एवं सिगरेट पीने के लिए विवश कर दिया। वह शाकाहारी खाना खाती तो यह दरिंदा उसके खाने में ही घर में बने मांस का टुकड़े या चूसी गई हड्डियां डाल दिया करता था जिससे वह खाना छोड़कर भूखी रह जाती थी। इस कारण वह धीरे-धीरे गंभीर रूप से बीमार हो गई। ध्यान देने की बात है कि अमित चावला एमिटी में कथित रूप से पत्रकारिता पढ़ाता है। पत्रकारिता अध्यापन और अपने कारनामों में वह किस प्रकार सामंजस्य स्थापित करता है यह हैरत भरी बात है। आर्य परिवार और प्रियंका को कानून एवं अपनी सुरक्षा के लिए गाजियाबाद प्रशासन का सहारा लेना पड़ा।
प्रियंका के पिता गिरीश चंद्र आर्य ने 3 अक्टूबर 2009 को गाजियाबाद के थाने इंदिरापुरम- में एफआईआर दर्ज करने हेतु लिखित सूचना दी थी जिसकी प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक एवं पुलिस अधीक्षक नगर गाजियाबाद को भी दी गई थी मगर पुलिस अधीक्षक नगर के आदेश पर चार अक्टूबर 2009 को संबंधित थाने में अपराध संख्या 2396/09 धारा 498A, 307, 323, 504, 506 आई पीसी और 3/4 दहेज एक्ट के अंतर्गत अमित चावला आदि के खिलाफ मुकद्मा दर्ज हो सका। एक माह तक पुलिस की जांच-पड़ताल हुई और चार नवंबर 2009 को प्रियंका के पति अमित चावला को पुलिस ने गिरफ्तार किया गया। इस मुकदमें में अमित के पिता विजय चावला और अमित की माँ विनोद चावला गाजियाबाद पुलिस की तेज तर्रार नज़रों से कैसे ओझल हो गए इसके पीछे कहा जाता है कि पुलिस और विजय चावला में एक बड़ा सौदा हुआ जिसका पूरा असर गाजियाबाद के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रघुबीर लाल पर देखा जा सकता है। मामले में वांछित अमित चावला के पिता और मां आदि की पुलिस ने अमित के साथ गिरफ्तारी नहीं की बल्कि उन्हें अपनी गिरफ्तारी विरूद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय से स्थगन आदेश ले आने का पूरा अवसर दिया जिस कारण उनकी गिरफ्तार नहीं हो सकी। इस मामले में एक महीने पुलिस क्या करती रही इसका जवाब एसएसपी रघुबीर लाल के पास नहीं है। एफआईआर के परिणाम स्वरूप अमित चावला जरूर पचास दिन जिला कारागार, गाजियाबाद में निरूद्ध रहा। जमानत पर छूटने के बाद अमित चावला एवं उसके घर वालों ने सबसे बड़े पैरोकार वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गाजियाबाद रघुबीर लाल हो गए हैं और उन्होंने आर्य परिवार पर यह मुकद्मा वापस लेने के लिए विभिन्न तरीकों से दबाव बनाना शुरू कर दिया। इस सांठ-गांठ का भांडा-फोड़ इसी तथ्य से हो जाता है कि संगीन धाराओं वाले इस मामले में वसुंधरा पुलिस चौकी के इंचार्ज और इस मामले के जांच अधिकारी टीपी सिंह ने फाइनल रिपोर्ट ही लगा दी है। यानी अदालत से पचास दिन तक अमित चावला को जमानत नही मिली मगर जांच अधिकारी ने अपने आका के इशारे पर फाइनल रिपोर्ट लगाने का चमत्कार कर दिखाया है। मामले को देखकर अंदाजा लगाईए कि रोज ताबड़तोड़ अपराधो से थर्राए गाजियाबाद में कितनी जल्दी फाइनल रिपोर्ट लगती है।
दहेज जैसे गंभीर मामले में गवाहों और स्थितियों की अनदेखी करके लगाई गई फाइनल रिपोर्ट की जानकारी होने पर गिरीश चंद्र आर्य अपनी पीड़ित पुत्री प्रियंका के साथ 18 मार्च 2010 को गाजियाबाद के एसएसपी के सामने न्याय की गुहार लगाने पहुंचे तो वहां एसएसपी रघुबीर लाल का अभद्रता पूर्ण व्यवहार देख गिरीश आर्य परिवार के होश उड़ गए। रघुबीर लाल उनसे इस तरीके से पेश आए जैसे कि यह रघुबीर लाल का निजी मामला हो। ऐसे व्यवहार की किसी उद्दण्ड सिपाही से भी उम्मीद नही की जा सकती। खुलेआम चावला परिवार की तरफदारी करते हुए एसएसपी रघुबीर लाल ने गिरीश आर्य को डरा-धमका कर पुलिसयाई धौंस में लेने की कोशिश की और कहा कि आप अपने मुकदमें वापस लीजिए और लड़की को सुसराल के मकान से तुरंत ले जाईए साथ ही उन्हीं के सामने इलाके के दरोगा को फोन पर आदेश दिया कि प्रियंका को वहां से भगाईए और गिरीश आर्य के खिलाफ कोई फौजदारी का मुकदमा दर्ज कर उसे जेल भेज दीजिए। गिरीश आर्य ने राज्य की 'लोकप्रिय' मुख्यमंत्री मायावती और उनके 'लोकप्रिय' प्रमुख सचिव गृह, राज्य के पुलिस महानिदेशक, आईजी-डीआईजी मेरठ, मानवाधिकार आयोग को अपने परिवार के साथ न्याय की उम्मीद से भेजे प्रत्यावेदनों में सिलसिलेवार समस्त स्थितियों का वर्णन किया है। न्याय न मिलने और पुलिस की ओर से लगातार प्रताड़ना से निराश इस दंपत्ति ने प्रमुख्ा सचिव गृह और डीजीपी को एक अलग से पत्र लिखकर कहा है कि उन्हें और उनकी पीड़ित पुत्री प्रियंका को गाजियाबाद के एसएसपी रघुबीर लाल की असहनीय प्रताड़ना से बचाया जाए नहीं तो वह सपरिवार आत्महत्या के लिए विवश हो जाएगा। गिरीश आर्य ने प्रार्थना पत्रों में पुलिस के उन मोबाइल नंबरों का भी जिक्र किया है जिनसे गिरीश आर्य और उनकी पुत्री के मोबाइल नंबर पर धमकियां दी गईं हैं कि या तो वह अपना मुकदमा वापस ले ले और सुसराल एवं उस घर की तरफ फटकने की हिम्मत न करे नहीं तो वह पुलिस को अच्छी तरह जानते हैं कि पुलिस क्या कर सकती है। मोबाइल नंबर 9958781674 से 18 मार्च की सायं 7:38 बजे प्रियंका के पिता गिरीश आर्य को एक कॉल आई जोकि मामले के जांच अधिकारी और वसुंधरा पुलिस चौकी इंचार्ज टीपी सिंह ने की थी जिसमें उन्होंने गिरीश आर्य को धमकी दी कि 'वे अपनी बेटी से आरोपियों का मकान तुरंत खाली करा दें, एसएसपी साहब का आदेश है।' उसके बाद 9654757505 मोबाइल से फिर एक मिस कॉल आई और अगले दिन यानी 19 मार्च को 14/205-सी वसुंधरा, गाजियाबाद के इस मकान का पुलिस ने ताला तोड़कर प्रियंका का कुछ सामान तो बाहर सड़क पर फेंक दिया गया और बाकी सामान चावला परिवार और पुलिस साथ ले गई। उस समय प्रियंका उस घर पर मौजूद नही थी और पुलिस उत्पीड़न की संभावित कार्रवाई से बचने के लिए कोर्ट गई हुई थी। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस मामले में पुलिस की कितनी दिलचस्पी है। मोबाइल नंबरों की जब छानबीन से पता चला कि वह नंबर भी वसुंधरा पुलिस चौकी पर तैनात सिपाही सत्यभान सिंह का है। तीसरे मोबाइल नंबर से गाजियाबाद पुलिस की वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के अधीन महिला पुलिस सेल की प्रभारी ने प्रियंका को 9868678840 मोबाइल नंबर से 29 मार्च को सायं 3:36 बजे उसके मोबाइल पर फोन किया और गाली-गुफ्तार के साथ धमकी दी कि वह 31 मार्च को एसएसपी साहब के सामने पेश हो जाए नहीं तो परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहे। प्रियंका ने जब फोन करने वाली का नाम जानना चाहा तो उसके बदले उस महिला ने और तेज गंदी-गंदी गालियां देकर फोन काट दिया। इस मोबाइल फोन के बाद प्रियंका और उसके माँ-बाप घबराए हुए हैं और अपनी मदद के लिए इधर-उधर गुहार लगा रहे हैं। गिरीश आर्य का कहना है कि उनका या उनकी पुत्री प्रियंका का उस मकान से कोई मोह नही है क्योंकि उन्होने मकान से नहीं बल्कि विजय चावला के पुत्र अमित चावला से शादी की थी और उनके लिए मकान से ज्यादा प्रियंका का सुख और जीवन महत्वपूर्ण है। मकान का विवाद तब आया जब प्रियंका को पुलिस की सांठ-गांठ से वहां से भगाने की कोशिश की गई जिसमें एसएसपी की भी मुख्य भूमिका है।
गाजियाबाद पुलिस से न्याय की उम्मीद से निराश और अपने खिलाफ उल्टे कोई झूंठा मामला बना देने की संभावना से परेशान प्रियंका ने उन्नीस मार्च 2010 को जिला न्यायालय गाजियाबाद में एक वाद दर्ज कराया गया है जो कि महिला उत्पीड़न और कानूनी प्रक्रिया अपनाए बिना आवास से बेदखल न करने के संबंध में है। इस वाद से वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रघुबीर लाल और दहेज मामले के जांच अधिकारी टीपी सिंह बौखला गए हैं। उन्हें लग रहा है कि इस संपूर्ण घटनाक्रम पर न्यायालय का रूख पुलिस के विपरीत जा सकता है। इसलिए मामले की कमान रघुबीर लाल ने अपने हाथ में ले ली है और जांच अधिकारी को मोहरा बनाकर इससे साफ बचने के लिए तरह-तरह के हथकंडों पर उतर आए हैं। इस मामले में यह बात भी प्रकाश में आई है कि दहेज मामले पर पुलिस उतना ध्यान नही दे रही है जितना ध्यान पुलिस का वसुंधरा गाजियाबाद के पॉश इलाके में स्थित करीब दो करोड़ रूपए कीमत के इस विवादित हो चुके मकान पर है। कहते हैं कि एसएसपी रघुबीर लाल इस आवास को अदालती विवाद से मुक्त रखना चाहते हैं। चर्चा हो रही है कि एसएसपी रघुबीर लाल प्रियंका के ससुर विजय चावला से यह विवादित मकान दहेज एक्ट के 'समझौते' में अपने लिए मिट्टी के मोल लेना चाहते हैं। विजय चावला भी दहेज एक्ट की भयावहता को समझते हैं जिसमें उनकी काफी मदद हो चुकी है और जिससे आगे बचने के लिए उन्होंने एसएसपी रघुबीर लाल के सामने कोई 'सशर्त समर्पण' कर दिया है। यह मामला उच्च स्तरीय जांच का विषय बन चुका है जिसकी रघुबीर लाल की कथित रूप से चर्चित योजना के बारे में निष्पक्ष जांच, मायावती सरकार में संभव नही हो सकती। रघुबीर लाल की आरोपी पक्ष से कथित सांठ-गांठ की गतिविधियां धीरे-धीरे उजागर हो रही हैं। प्रियंका की ओर से जो वाद अदालत में हैं उनकी आंच सीधे पुलिस पर आ ही रही है। आर्य परिवार को डरा धमका कर किसी तरह एक वाद को कमज़ोर करने के चक्कर में एसएसपी हर संभव कोशिश कर रहे हैं जिनमें की परिवार को पुलिस के विभिन्न फोन नंबरों से धमकियां दिलवाना प्रमुख कोशिश है। पुलिस ने इसमें जो नया पैतरा लिया है कि दहेज के मामले को न उठाते हुए इसे मकान पर कब्जे का मामला बना दिया जाए उसका लाभ कम से कम विजय चावला को नहीं ही है। एसएसपी इसी लाइन पर चल रहे हैं और दहेज के मुख्य मामले में अपनी संदिग्ध भूमिका को विलुप्त करने की असफल कोशिश कर रहे हैं। गाजियाबाद के लोगों की नज़रों में आरोपी पक्ष से किसी स्तर पर मोटी घूस लेकर मामले को रफादफा करने का यह मामला है और घूम फिरकर उंगली रघुबीर लाल के ऊपर जा रही है। रघुबीर लाल की भ्रष्टतम कार्यशैली को यहां हर कोई जानता है। पुलिस विभाग में तो मुख्यमंत्री मायावती का सबसे बड़ा विश्वासपात्र अपनी भ्रष्ट गतिविधियों के लिए काफी चर्चित है।
गाजियाबाद के इन मोबाइल नंबरों पर स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम ने भी संपर्क किया। इनमें 9868678840 मोबाइल नंबर पर जब संपर्क किया गया और जानना चाहा गया कि ये किनका नंबर है तो इस नंबर से बोली महिला ने अपनी पहचान को प्रकट करने के बजाय अभद्रता पूर्वक बोलना शुरू कर दिया और जब उस महिला को यह बताया गया कि जो भी आप बोल रही हैं वह साक्ष्यों के लिए रिकॉर्ड भी किया जा रहा है तब वह महिला कहती है कि 'मैं महिला सेल की इंचार्ज हूं और डीजीपी तक भी मेरी पहुंच है, मैने प्रियंका को एसएसपी महोदय के कहने पर उनके सामने 31 मार्च को पेश होने के लिए कहा था और हां यह भी कहा था कि यदि तू पेश नहीं हुई तो तेरे अगेंस्ट में लिख दूंगी। महिला सेल इंचार्ज ने कहा कि एसएसपी साहब ने मुझसे कहा था और फिर कहा कि एसएसपी साहब के यहां से मुझे मैसेज आया था, उन्होने मुझे प्रियंका के खिलाफ जांच दी है कि मै प्रियंका को ठीक करूं।' महिला प्रभारी ने स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम से यह भी कहा कि 'जब प्रियंका ने 31 मार्च को आने से मना कर दिया और कहा कि हमारे वकील ही बात करेंगे तो मुझे उससे भुगतने की बात कहनी पड़ी।' इसके बाद महिला ने स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम का फोन काट दिया। इसके कुछ ही देर बाद अर्थात दोपहर 1:13 बजे गाजियाबाद से स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम को 2820758 नंबर से कॉल आई और बोलने वाले व्यक्ति ने कहा कि 'कौन है (गाली) अभी तू एसएसपी गाजियाबाद को जानता नहीं है।' इससे पहले कि आगे बात की जाती उस व्यक्ति ने तुरंत फोन काट दिया। ये एसएसपी गाजियाबाद कार्यालय का नंबर है। पहले इस घटनाक्रम में एसएसपी गाजियाबाद रघुबीर लाल की संदिग्ध भूमिका पर उनसे स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम ने कई बार संपर्क करना चाहा मगर उनके मोबाइल नंबर 9454400274 ने रिस्पांस ही नहीं किया। उनके घर और कार्यालय के फोन नंबर पर अनेक बार संपर्क करने के करीब बीस घंटे बाद एसएसपी गाजियाबाद रघुबीर लाल कार्यालय के फोन पर उपलब्ध हुए और उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुर के हर मुलाकाती से बात करने के विख्यात स्टाईल 'बताईए-बताईए-बताईए-बताईए जल्दी बताईए' में बात शुरू की और यह कहने पर कि कल से मैं आपसे संपर्क कर रहा था रघुबीर लाल ने एक भद्दी सी गाली बोलते हुए फोन काट दिया। बात का विषय उन्हें पहले से मालूम था क्योंकि उनके घर वाले फोन ड्यूटी को बता दिया गया था कि स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम को उनसे प्रियंका और अमित चावला वाले मामले में उनसे बात करनी है। ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री मायावती के विश्वासपात्र माने जाने वाले रघुबीर लाल जैसे पुलिस अधिकारियों का इस तरह से वार्तालाप उनका स्टाइल बन गया है। यह एक बानगी है जो एसएसपी रघुबीर लाल के सामान्य शिष्टाचार और जनसंपर्क के तरीकों पर प्रकाश डालती है।
एसएसपी रघुबीर लाल जहां भी तैनात रहे हैं उनके नए-नए किस्से सामने आए हैं। शासन और प्रशासन में भी बहुत से अधिकारी इसलिए खामोश रहते हैं कि उनके बारे में कहा जाता है कि वे सीधे मुख्यमंत्री मायावती से जुड़े हुए हैं। कहने वाले यहां तक कहते हैं कि चूंकि मायावती ने इन्हें कई गंभीर मामलों में फंसने से बचाया हैं इसलिए रघुबीर लाल की तैनाती और उनके कृत्यों पर कोई बोलता नहीं है, लेकिन जो सच्चाई है वह सबको मालूम है। रघुबीर लाल जैसे बदनाम और भ्रष्ट अधिकारियों के कारण ही आज सब जगह एक प्रचंड और सख्त राजनेता मायावती की आलोचना होती आ रही है। उन तक ऐसे अधिकारियों के भ्रट कारनामे पहुंच ही नहीं पा रहे हैं इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि दुर्भाग्य से मायावती ऐसे अधिकारियों से घिरीं हैं जो मायावती के जन कल्याणकारी एजेंडें सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के लिए नहीं बल्कि अपने लिए काम कर रहे हैं। इन्हें मुख्यमंत्री मायावती की छवि से कोई मतलब नहीं है। मायावती के कार्यालय में पंचम तल पर अधिकारियों का आंतरिक झगड़ा भी इसका एक प्रमाण है। जब देश में महिला सशक्तिकरण की बात चल रही है और उत्तर प्रदेश में स्वयं एक महिला मुख्यमंत्री है तब महिलाओं के उत्पीड़न के किस्से सर चढ़कर बोल रहे हैं और रघुबीर लाल जैसे पुलिस अधिकारी मायावती के सामाजिक न्याय की रोज धज्ज़ियां उड़ा रहे हैं।