स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Saturday 7 December 2019 05:24:16 PM
जोधपुर। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज राजस्थान उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन किया और कहा कि हमारे न्यायालयों के प्रवेश द्वार पर प्रायः हमारा राष्ट्र मंत्र ‘सत्यमेव जयते’ अंकित रहता है, जिसका अर्थ है कि सत्य की ही जय होती है। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारी न्यायप्रणाली भी सत्य की आधारशिला पर टिकी हुई है। उन्होंने कहा कि इस राष्ट्र मंत्र से हमारे स्वाधीनता संग्राम को भी बहुत प्रेरणा मिली है, जब भारत गणतंत्र बना तो इस मंत्र को हमने राष्ट्रीय आदर्श वाक्य के रूपमें अपना लिया, इस आदर्श वाक्य को हमने इसलिए अपनाया कि सत्य ही हमारे गणतंत्र का आधार है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान ने न्यायपालिका को ही संवैधानिक सत्य के निर्धारण की गंभीर ज़िम्मेदारी सौंपी है, संविधान ने न्यायपालिका को अपने ‘सर्वोच्च व्याख्याकार और संरक्षक’ की भूमिका दी है। राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान में एक ऐसी न्यायपालिका की परिकल्पना की गई है, जो यह सुनिश्चित करती है कि सत्य की हमेशा विजय हो और असत्य की पराजय हो।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि यह नया भवन बहुत भव्य है, इसका गोल आकार संसद भवन परिसर की याद दिलाता है, इसके बीचों-बीच बना गुम्बद आलीशान है और इसे मारवाड़शैली में फूलों की पारंपरिक चित्रकारी से सजाया गया है। उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया है कि यह पूरा स्थापत्य कुल 288 स्तंभों पर टिका हुआ है, ये स्तंभ जोधपुर के सुप्रसिद्ध चित्तर पत्थर से बने हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि राजस्थान अपने वीरों के असाधारण शौर्य और अपनी कला एवं वास्तुशिल्प में रचे-बसे सौंदर्यबोध के लिए विख्यात है। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि इस भवन की गणना भी राजस्थान की प्रसिद्ध इमारतों में की जाएगी और यह भवन हमारी धरोहर बनेगा। उन्होंने कहा कि राजस्थान उच्च न्यायालय के बार और बेंच की परंपरा बहुत गौरवशाली है, इसने भारत के उच्चतम न्यायालय को अनेक मुख्य न्यायाधीश दिए हैं, यहां के प्रख्यात विधिवेत्ताओं और न्यायविदों के नामों की सूची बहुत बड़ी और प्रभावशाली है, इनमें डॉ नगेंद्र सिंह, डॉ लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय का यह भव्य मंदिर आकर्षक तो है ही इसमें नवीनतम टेक्नॉलॉजी का भी समावेश किया गया है और लोगों को शीघ्रता से न्याय दिलाने में टेक्नॉलॉजी के सदुपयोग का मैं सदैव पक्षधर रहा हूं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि इस भवन में ‘क्रेश’ की सुविधा का होना विशेष रूपसे सराहनीय है, इस सुविधा से लीगल प्रोफेशन से जुड़े लोगों को अपने काम और निजी जीवन के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। क्रेश यानि शिशु गृह जैसी सुविधाओं के उपलब्ध होने से विशेष रूपसे महिला अधिवक्ताओं को सहूलियत होगी और अन्य महिलाएं भी इस प्रोफेशन को उत्साहपूर्वक अपनाने को आकर्षित होंगी। राष्ट्रपति ने कहा कि 26 नवम्बर को संविधान दिवस पर हम सबने अपने राष्ट्रीय ग्रंथ अर्थात संविधान को अंगीकृत किए जाने की 70वीं वर्षगांठ मनाई है और इस दिन मैंने संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को और उसके बाद उच्चतम न्यायालय के बेंच और बार को भी संबोधित किया था। उन्होंने कहा कि संविधान दिवस के दिन मैंने जो बातें उच्चतम न्यायालय में साझा की थीं उनमें से कुछ प्रमुख बातों को मैं यहां दोहराना चाहता हूं, मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि क्या हम सभी के लिए न्याय सुलभ करा पा रहे हैं? उन्होंने कहा कि पुराने समय में राजमहलों में न्याय की गुहार लगाने के लिए लटकाई गई घंटियों का उल्लेख होता रहा है, कोई भी व्यक्ति घंटी बजाकर राजा से न्याय पाने के लिए प्रार्थना कर सकता था, क्या आज कोई ग़रीब या वंचित वर्ग का व्यक्ति अपनी शिकायत लेकर यहां आ सकता है? यह सवाल सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि संविधान की प्रस्तावना में ही हमसब ने सभी के लिए न्याय सुलभ कराने का दायित्व स्वीकार किया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी न्याय की प्रक्रिया में होने वाले खर्च के बारे में बहुत चिंतित रहते थे, उनके लिए हमेशा दरिद्रनारायण का कल्याण ही सर्वोपरि था। रामनाथ कोविंद ने कहा किउनका अनुसरण करते हुए हम सबको अपने आपसे यह सवाल पूछना चाहिए कि क्या प्रत्येक नागरिक को न्याय सुलभ हो पाया है? उन्होंने कहा कि मैं भलीभांति यह समझता हूं कि अनेक कारणों से न्याय प्रक्रिया खर्चीली हुई है, यहां तक कि जनसामान्य की पहुंच के बाहर हो गई है, विशेषकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पहुंचना आम वादियों के लिए नामुकिन हो गया है, लेकिन अगर हम सबसे ग़रीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करते हैं तो हमें सही राह नज़र आ जाएगी, मिसाल के तौरपर हम निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराके जरूरतमंदों की मदद कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे निःशुल्क कानूनी सहायता को बहुत अहमियत देते हैं। उन्होंने कहा कि निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराने के इस प्रयास में उन्हें भारत के सर्वश्रेष्ठ विधिवेत्ताओं में शुमार लंबे समय तक भारत सरकार में कानून मंत्री के पद पर रहे अशोक सेन से बहुत प्रेरणा मिलती थी।
राष्ट्रपति ने उम्मीद जताई कि वकालत के पेशे में सक्रिय अधिक से अधिक लोग उनके उदाहरण से प्रेरणा प्राप्त करेंगे, निःशुल्क कानूनी सहायता देने के इस कार्य में बेंच और बार के सभी सदस्यों का सामूहिक प्रयास ही प्रभावी सिद्ध हो सकेगा। उन्होंने कहा कि आम लोगों को न्याय व्यवस्था में पूर्ण रूपसे भागीदार बनाने के लिए बार और बेंच की युवा पीढ़ी अनेक नए और रचनात्मक समाधान उपलब्ध करा सकती है। राष्ट्रपति ने कहा कि उनके सुझाव के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपनी वेबसाइट पर नौ भाषाओं में अपने निर्णयों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है, कई उच्च न्यायालय भी स्थानीय भाषाओं में अपने निर्णयों का अनुवाद उपलब्ध करा रहे हैं। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस उच्च न्यायालय में भी निर्णयों के प्रमाणित अनुवाद स्थानीय भाषा हिंदी में उपलब्ध कराए जाएंगे। राष्ट्रपति ने नए भवन में कार्य आरंभ करने के लिए राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, साथी न्यायाधीशों एवं अधिवक्ताओं को बधाई और शुभकामनाएं दीं। उन्होंने न्यायालय भवन परियोजना के लिए राजस्थान सरकार के योगदान की भी सराहना की।