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चिकित्सा सेवाकर्मियों की अब कड़े क़ानून से सुरक्षा

नए क़ानून में स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के खिलाफ हिंसा जीरो टॉलरेंस

राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, चिकित्सा जगत ने आभार जताया

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 23 April 2020 05:14:50 PM

strict protection of medical service workers

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वचनबद्धता और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को दिए आश्वासन के बारह घंटे के भीतर केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए कोविड-19 महामारी के दौरान सबसे महत्वपूर्ण सर्विस प्रोवाइडर्स यानी स्वास्थ्य सेवाओं के सदस्यों पर हमले, उनके साथ हिंसा करने और अपना चिकित्सकीय कर्तव्य निभाने से रोकने वाले किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के खिलाफ सात साल तक के कारावास या पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का कानून लागू कर दिया है। इससे देश का चिकित्सा सेवा विभाग और सेवाकर्मियों ने बड़ी राहत की सांस ली है और भारत सरकार के इस कदम की दिल खोलकर सराहना की है। गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के दौरान अपना चिकित्सकीय धर्म निभा रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के साथ देश के विभिन्न स्थानों पर कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें उन्हें निशाना बनाकर उनपर हमले किए गए हैं और ऐसा करके स्वास्थ्य सेवाकर्मियों को उनके कर्तव्यों को पूरा करने से रोका गया है। चिकित्सा समुदाय के सदस्य तब भी लगातार लोगों की जान बचाने का काम कर रहे हैं। इस कानून से अब ये हमलावर सलाखों के पीछे होंगे। यह कानून काफी सख्त है और कोई भी इसका उल्लंघन करने के लिए सौ बार सोचेगा।
भारतीय चिकित्सक समुदाय और उनके सहायक स्वास्थ्य सेवाकर्मी अपनी जान हथेली पर रखकर कोरोना वायरस से लोगों की जान बचाने का कार्य कर रहे हैं, फिरभी दुर्भाग्य से वे ही सबसे ज्यादा हमलावरों के आसान शिकार बन रहे हैं, उनपर दोषारोपण के साथ उनका बहिष्कार करने के मामले सामने आए हैं, उनके साथ हिंसा की घटनाएं घट रही हैं। इससे पूरा देश चिंतित है और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने इन घटनाओं के फलस्वरूप आंदोलन की चेतावनी भी दी थी। भारत सरकार ने इन घटनाओं को बहुत गंभीरता से संज्ञान लिया और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन को आश्वासन देने के बारह घंटे के भीतर चिकित्सक समुदाय और उनके सहायक स्वास्थ्य सेवाकर्मियों की सुरक्षा के लिए एक सख्त कानून स्थापित कर दिया है, जिसके अंतर्गत दोषी या दोषियों को सजा के कड़े प्रावधान किए गए हैं। सरकार ने कहा है कि हमले जैसे हालात चिकित्सा समुदाय को कर्तव्यों को पूरा करने, चिकित्सा में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देने और मनोबल बनाए रखने में बाधा बनते हैं, इसलिए इस राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट की घड़ी में यह कानून बेहद जरूरी है। स्वास्थ्य सेवा कर्मी बिना किसी भेदभाव के अपना काम कर रहे हैं तो समाज का सहयोग और समर्थन मिलना एक मूलभूत जरूरत है, जिससे वे पूरे विश्वास के साथ अपने कर्तव्यों को निभा सकें।
देश के कई राज्यों ने डॉक्टरों और सहायक चिकित्सा कर्मियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष कानून बनाए हुए हैं। कोविड-19 के प्रकोप ने एक अलग स्थिति पैदा कर दी है, जहां सभी मोर्चों पर बीमारी के प्रसार को रोकने के काम में जुटे स्वास्थ्य सेवाकर्मियों का श्मशान घाट तक में उत्पीड़न हो रहा है। राज्यों के मौजूदा कानूनों की सीमा और प्रभाव इतना व्यापक नहीं है। वे आमतौर पर घर और कार्यस्थल पर उत्पीड़न को इसमें शामिल नहीं करते और उनका ज्यादा फोकस केवल शारीरिक हिंसा पर रहता है। उनके कानूनों में निहित दंडात्मक प्रावधान शरारतपूर्ण दुर्व्यवहार को रोकने के लिए सख्त नहीं हैं। केंद्रीय कैबिनेट की 22 अप्रैल को हुई बैठक में महामारी के दौरान हिंसा के खिलाफ स्वास्थ्य सेवाकर्मियों और संपत्ति की सुरक्षा, जिसमें उनका रहना या काम करने का परिसर भी शामिल है के लिए महामारी रोग अधिनियम-1897 में संशोधन के लिए एक अध्यादेश पारित करने को मंजूरी दे दी गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी अध्यादेश पर अपनी सहमति दे दी है। अध्यादेश में ऐसी हिंसा की घटनाओं को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध घोषित करने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाकर्मियों को चोट लगने या नुकसान या संपत्ति को नुकसान, जिसमें महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवाकर्मियों का सीधा हित जुड़ा हो सकता है के लिए भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
भारत सरकार का कहना है कि अध्यादेश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मौजूदा महामारी के दौरान किसी भी स्थिति में स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा और संपत्ति को लेकर जीरो टॉलरेंस होगा। आम जनता स्वास्थ्यकर्मियों के साथ पूरी तरह से सहयोग करती है और फिर भी हिंसा की कुछ घटनाएं हुई हैं, जिससे चिकित्सा समुदाय का मनोबल गिरा है। ऐसा महसूस किया गया कि इस तरह की हिंसा की घटनाओं को रोकने के लिए एक प्रभावी डिटेरेंट के तौरपर अलग और सबसे सख्त प्रावधान समय की जरूरत है। अध्यादेश में हिंसा को उत्पीड़न, शारीरिक चोट और संपत्ति को नुकसान को शामिल करते हुए परिभाषित किया गया है। हेल्थकेयर सेवा कर्मियों, जिसमें पब्लिक और क्लीनिकल हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल वर्कर और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, ऐक्ट के तहत बीमारी के प्रकोप या प्रसार को रोकने के लिए काम करने वाला अधिकार प्राप्त कोई अन्य व्यक्ति और आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा राज्य सरकार द्वारा घोषित ऐसे व्यक्ति शामिल हैं। दंडात्मक प्रावधानों में संपत्ति के नुकसान के मामलों में लागू किया जा सकेगा, जिसमें क्लीनिक, क्वारंटीन और मरीजों के आइसोलेशन के लिए निर्धारित केंद्र, मोबाइल मेडिकल यूनिटें एवं कोई अन्य संपत्ति, जिसका महामारी के संबंध में स्वास्थ्य सेवाकर्मियों से सीधा संबंध हो।
महामारी कानून संशोधन हिंसा को संज्ञेय और गैरजमानती अपराध बनाता है। हिंसा के ऐसे कृत्यों को करने या उसके लिए उकसाने पर तीन महीने से लेकर 5 साल तक की जेल और 50 हजार रुपये से लेकर 2 लाख तक के जुर्माने की सजा हो सकती है। गंभीर चोट पहुंचाने के मामले में कारावास की अवधि 6 महीने से लेकर 7 साल तक होगी और एक लाख से 5 लाख रुपये तक जुर्माना देना होगा, इसके अलावा पीड़ित की संपत्ति को हुए नुकसान पर अपराधी को बाज़ार मूल्य का दोगुना हर्जाना भी देना होगा। तीस दिन के भीतर इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी अपराध की जांच करेंगे और सुनवाई एक साल में पूरी होगी, जबतक कि कोर्ट द्वारा लिखित रूपमें कारण बताते हुए इसे आगे न बढ़ाया जाए। कोविड-19 प्रकोप के दौरान जरूरी हस्तक्षेपों को देखते हुए केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ एक समवर्ती भूमिका दी गई है, जिससे किसी महामारी के प्रकोप से बचने या फैलने से रोकने के लिए आवश्यक उपाय किए जा सकें। देश में आने या जाने वाले जहाजों की जांच का दायरा सड़क, रेल, समुद्र और हवाई जहाजों को शामिल करने के लिए बढ़ा दिया गया है। यह आशा की जाती है कि इस अध्यादेश से स्वास्थ्य सेवाकर्मियों के समुदाय में भरोसा बढ़ेगा, जिससे वे मौजूदा कोविड-19 के प्रकोप के दौरान सामने आई मुश्किल परिस्थितियों में अपने महान प्रोफेशन के जरिए मानव जाति की सेवा में अपना योगदान जारी रख सकेंगे।

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