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Monday 25 May 2020 12:50:09 PM
थाणे। एक कुशल नेता के नेतृत्व में कुछ समर्पित लड़कों के एक समूह और सरकारी संगठनों से प्राप्त सक्षमकारी सहायता से क्या-क्या हो सकता है? जाहिर है, बहुत कुछ। थाणे में शाहपुर की आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था जो गिलोय और अन्य उत्पादों का विपणन करती है, ने एक बार फिर इस सच्चाई को साबित कर दिया है। गिलोय एक चिकित्सकीय पौधा है, जिसके लिए फार्मास्युटिकल कंपनियों से और जनता से भारी मांग है। गौरतलब है कि गिलोय आयुर्वेद की सर्वप्रिय एक ऐसी बेशकीमती बेल है, जो कहीं पर भी किसी भी पेड़ पर मिल जाती है और उसपर छा जाती है। इसका उपयोग देश के बाहर भी शुरू हो गया है। आयुर्वेद में कहा गया है कि इसका सेवन मधुमेह रोगियों को उससे मुक्त करने में कारगर है। इसके अलावा भी असाध्य रोगों की चिकित्सा में इसका प्रमुख उपयोग है।
यह यात्रा तब प्रारंभ हुई जब कातकारी समुदाय का एक युवा सुनील पवार और 10-12 लड़कों की उसकी टीम ने अपने मूल स्थान में राजस्व कार्यालयों में कातकारी जनजातियों के विभिन्न कार्यों को सुगम बनाने का कार्य आरंभ किया। गृह मंत्रालय के वर्गीकरण के अनुसार कातकारी 75 विशिष्ट रूपसे निर्बल जनजातीय समूहों में से एक है। कुछ ऐसे जनजातीय समुदाय हैं, जो प्रौद्योगिकी के कृषि-पूर्व स्तर का उपयोग करते हैं, स्थिर या कम हो रही जनसंख्या वृद्धि का सामना करते हैं, उनमें साक्षरता और आजीविका का स्तर अत्यधिक निम्न है। देश के 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में ऐसे 75 समूहों की पहचान की गई है और उन्हें विशिष्ट रूपसे निर्बल जनजातीय समूहों के रूपमें वर्गीकृत किया गया है।
सुनील पवार और उसके मित्रों ने गिलोय को स्थानीय बाजारों में बेचने का यह उद्यम आरंभ किया। अरुण पानसरे नामक एक भले और सह्रदययी व्यक्ति ने उनके प्रयासों को देखा और उन्हें उनका कार्यालय खोलने के लिए एक स्थान की पेशकश की। जैसे ही उन्होंने बाजार क्षेत्र के निकट एक कार्यालय से काम करना आरंभ किया, अधिक से अधिक जनजातियों को इसके बारे में जानकारी मिलने लगी और वे उनके साथ जुड़ने लगीं। इस बीच सुनील पवार ने महाराष्ट्र सरकार की नोडल एजेंसी एसटी कल्याण विभाग के सहयोग से भारत सरकार के जनजातीय मामले मंत्रालय के ट्रिफेड द्वारा संचालित प्रधानमंत्री वन धन योजना का एक विज्ञापन देखा। सुनील उनके पास सहायता मांगने पहुंचा, जो उसे तत्काल मिल गई और जल्द ही गिलोय की मांग में तेजी आ गई।
आयुर्वेद में गुडूची नाम से विख्यात गिलोय का उपयोग औषधियों में होता है, जिससे विभिन्न प्रकार के बुखारों वायरल बुखार, मलेरिया तथा मधुमेह के उपचार में उपयोग में लाया जाता है। यह अर्क रूप, पाउडर रूप या क्रीम के रूपमें उपयोग में लाई जाती है। सुनील पवार कहते हैं कि अपने आपको केवल स्थानीय बाजारों तथा फार्मा कंपनियों तक सीमित न रखकर, हमारी योजना डी-मार्ट जैसे बड़ी रिटेल चेनों की सहायता से गिलोय को दूरदराज़ के बाजारों तक ले जाने की है। सुनील पवार बताते हैं कि उन्होंने एक वेबसाइट भी बनाई है, लॉकडाउन की अवधि के दौरान भी ऑनलाइन बिक्री हो रही है, सरकार हमें पास जारी कर रही है, जिससे कि ऊपज का परिवहन किया जा सके और बिना किसी बाधा के बेचा जा सके।
शाहपुर की आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था के इन प्रयासों को सुनील पवार ने समन्वित किया है, जिससे कि न केवल ऊपज के लिए बाजार को विस्तारित किया जा सके, बल्कि अन्य वन उत्पादों में भी विविधीकृत किया जा सके। उन्होंने सात प्रकार के समिधा यानी ज्यादातर लकड़ियों से निर्मित बलिदान के चढ़ावे को संग्रह करना और उन्हें बेचना आरंभ कर दिया है, जिसकी पेशकश पूजा करने के दौरान हवन के लिए की जाती है। महाराष्ट्र सरकार के तहत शबरी आदिवासी वित्त महामंडल के प्रबंध निदेशक नितिन पाटिल का कहना है कि शबरी आदिवासी वित्त महामंडल की योजना उनकी ऊपज के लिए बैकवर्ड एवं फारवर्ड लिंकेजों की स्थापना करने में इन एसएचजीएस को प्रशिक्षित करने की है। नितिन पाटिल का कहना है कि बैकवर्ड लिंकेजों में वे जनजातियों को प्रशिक्षित करेंगे कि किस प्रकार वे बिना गिलोय की दीर्घकालिक उपलब्धता को प्रभावित किए गिलोय की तुड़ाई करेंगे, जिससे वे अधिक समय तक उपलब्ध रहे।
नितिन पाटिल ने बताया कि उन्हें इसके पौधरोपण का तरीका भी सिखाया जाएगा। फारवर्ड लिंकेजों में उन्हें विभिन्न उत्पादों के निर्माण में गिलोय को प्रसंस्कृत करने में प्रशिक्षित किया जाएगा, जिससे कि उन्हें इसका बेहतर मूल्य प्राप्त हो सके। नितिन पाटिल ने बताया कि प्रधानमंत्री वन धन योजना इन एसएचजी को कार्यशील पूंजी उपलब्ध कराती है, जिससे कि उन्हें अपनी ऊपज को हड़बड़ी में न बेचना पड़े, इसके अतिरिक्त वे जनजातियों को उनकी ऊपज के लिए तत्काल भुगतान भी कर सकते हैं, जिससे इन जनजातियों को नियमित आय पाने में काफी सहायता प्राप्त हो जाती है। महाराष्ट्र का कोई युवा जो आदिवासी एकात्मिक सामाजिक संस्था जैसा कोई कार्यकलाप करने का इच्छुक है, दिशानिर्देश और सहायता के लिए रुतुजा पनगांवकर से 8879585123 पर संपर्क कर सकता है।
प्रधानमंत्री वन धन योजना (पीएमवीडीवाई) गौण वन ऊपज (एमएफपी) के लिए एक खुदरा विपणन आधारित मूल्य वर्द्धन योजना है, जिसका उद्देश्य वन की जनजातियों को स्थानीय रूपसे उनकी आय को ईष्टतम बनाना है। इस कार्यक्रम के तहत लगभग 300 सदस्यों के एमएफपी आधारित जनजातीय समूह/उद्यमों का गौण वन ऊपज (एमएफपी) के संग्रहण, मूल्यवर्द्धन, पैकेजिंग एवं विपणन के लिए गठन किया जाता है। ये जनजातीय उद्यम वन धन एसएचजी के रूप में होंगे, जो 15 से 20 सदस्यों का एक समूह होगा और ऐसे 15 एसएचजी समूहों को लगभग 300 सदस्यों के वन धन विकास केंद्र (वीडीवीकेएस) के एक वृहद समूह में संघबद्ध किया जाएगा। ट्रिफेड एमएफपी के मूल्यवर्द्धन कार्य को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें माडल व्यवसाय योजनाओं, प्रसंस्करण योजनाओं तथा उपकरणों की संभावित सूची उपलब्ध कराने के माध्यम से वीडीवीके की सहायता करेगा। ये विवरण ट्रिफेड की वेबसाइट पर भी उपलब्ध कराये जाएंगे।