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हिमालय को मानव गतिविधियों से बड़ा नुकसान

हिमालय में जलवायु परिवर्तन के हो सकते हैं दूरगामी दुष्परिणाम

हमें अनुकूलन स्थापित करने के उपाय खोजने होंगे-प्रो.एसपी सिंह

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Saturday 6 June 2020 05:40:17 PM

himalaya

नई दिल्ली। सीएसआईआर-एनबीआरआई लखनऊ में विश्व पर्यावरण दिवस पर आयोजित एक वेबिनार में भारत की जलवायु में हिमालय के योगदान पर चर्चा करते हुए हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एसपी सिंह ने कहा है कि हिमालय में जैव विविधता की भरमार है और यहां पर 10 हजार से अधिक पादप प्रजातियां पाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के बाद सबसे अधिक बर्फ का इलाका होने के कारण हिमालय को तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है, इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि गंगा के विस्तृत मैदानी इलाके में मानवीय गतिविधियों से उपजा प्रदूषण हिमालयी पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचा रहा है।
प्रोफेसर एसपी सिंह ने कहा कि हिमालय के विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की दर अलग-अलग देखी गई है, पश्चिम हिमालय में पूर्वी हिमालय की तुलना में ग्लेशियरों पर अधिक प्रभाव देखने को मिल रहा है, हिमालय के 50 से भी अधिक ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका सीधा असर हिमालयी वनस्पतियों के वितरण, ऋतु जैविकी एवं कर्यिकी पर स्पष्ट रूपसे दिखने लगा है। प्रोफेसर एसपी सिंह नेबताया कि वैश्विक स्तरपर जलवायु परिवर्तन के चलते धरती के तापमान में बढ़ोतरी मनुष्यों, पशु-पक्षियों एवं पौधों सभी को प्रभावित कर रही है, इसलिए हमें इसके साथ जीने की कला सीखने के साथ इसके साथ अनुकूलन स्थापित करने के उपाय भी खोजने होंगे।
प्रोफेसर एसपी सिंह ने बताया कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों के वनों के साथ-साथ निचले हिमालयी क्षेत्रों में भी फसली पौधों पर दुष्प्रभाव दिखाई पड़ने लगे हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि सेब की फसल के कम होते उत्पादन के कारण किसानों की न सिर्फ आय कम हो रही है, बल्कि किसान दूसरी फसलों की खेती की ओर मुड़ रहे हैं। एनबीआरआई के निदेशक प्रोफेसर एसके बारिक ने इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम सेलिब्रेट बायोडायवर्सिटी के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि उनका संस्थान पर्यावरण सुधार एवं भारत की जैव-विविधिता संरक्षण में सदैव तत्पर है।

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