उमाशंकर मिश्र
Monday 15 June 2020 12:40:31 PM
इंजीनियरी कौशल हमेशा इंसान को चमत्कृत करते रहे हैं। फ्रांस के मशहूर एफिल टावर जैसी गगनचुंबी संरचनाएं, पहाड़ की छाती को चीरकर बनाई जाने वाली जम्मू-कश्मीर की पीरपंजाल रेलवे सुंरग जैसी अनूठी सुरंगें, देश की मुख्य भूमि को पाम्बन द्वीप से जोड़ने वाला तमिलनाडु का पाम्बन पुल, बांद्रा-वर्ली का समुद्र सेतु, कोलकाता की अंडर वाटर टनल और दिल्ली मेट्रो कुछ ऐसी इबारतें हैं, जिन्होंने देश-दुनिया पर अपनी इंजीनियरिंग की अमिट छाप छोड़ी है। इन जटिल संरचनाओं को स्थिर बने रहने के लिए हवा और पानी के तेज बहाव, भारी वजन एवं तनाव और भूगर्भीय हलचलों का सामना करना पड़ता है।
कभी आपने सोचा है कि किसी व्यस्त रेलवे पुल से गुजरने वाली भारी-भरकम रेलगाड़ियों और उनकी गड़गड़ाहट से उस पुल को किस हदतक बोझ और तनाव का हर रोज सामना करना पड़ता है? अगर ऐसे पुलों की बनावट में बोझ को सहन करने के लिए जरूरी संरचनात्मक डिजाइन सुनिश्चित न किए जाएं तो संभव है कि वे बहुत समय तक भार को सहन नहीं कर पाएंगे। संरचनात्मक इंजीनियरी भार सहन करने या बल का प्रतिरोध करने के लिए बनाई जाने वाली संरचनाओं के विश्लेषण एवं डिजाइन से संबंधित है। यह सिविल इंजीनियरी की ऐसी शाखा है, जो हैरतअंगेज़ लगने वाली संरचनाओं के मजबूत एवं टिकाऊ निर्माण को सुनिश्चित करने में मदद करती है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद के चैन्नई में राष्ट्रीय प्रयोगशाला संरचनात्मक अभियांत्रिकी अनुसंधान केंद्र को उसके संरचना एवं संरचनात्मक घटकों के विश्लेषण, डिजाइन और परीक्षण के लिए जाना जाता है।
एसईआरसी संस्थान में ऐसी अत्याधुनिक बेहतरीन सुविधाएं मौजूद हैं, जो गहन संरचनात्मक शोध के क्षेत्र में प्रभावी साबित हुई हैं। यह संस्थान सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों को विविध प्रकार की संरचनात्मक डिजाइन के विकास के लिए प्रूफ चेकिंग सहित डिजाइन परामर्श प्रदान करता है। व्यावसायिक इंजीनियरों को विश्लेषण, डिजाइन और निर्माण के नवीनतम आयामों से अवगत कराने के उद्देश्य से एसईआरसी संरचनात्मक इंजीनियरिंग की विशेष पाठ्य-प्रणालियों का भी आयोजन करता है। एसईआरसी संस्थान के निदेशक प्रोफेसर संतोष कपूरिया ने सीएसआईआर-एसईआरसी के 55वें स्थापना दिवस पर कहा है कि वर्ष 1965 में स्थापित इस संस्थान ने सिविल इंजीनियरी, ढांचागत विकास, एयरोस्पेस, ऑयल एवं गैस और रणनीतिक महत्व के क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है। उन्होंने एसईआरसी के विकसित कोल्ड फोर्म्ड डिफोर्म्ड बार, प्री-स्ट्रेस्ड कंक्रीट रेलवे स्लीपर, चक्रवात शेल्टर, सामूहिक आवास, संरचनाओं की स्थिति के आकलन, पुलों की संरचनात्मक स्वास्थ्य निगरानी, बुनियादी ढांचे के सुरक्षा संबंधी प्रावधानों आदि के बारे में बताया, जिसने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपसे लोगों के जीवन को छुआ है।
प्रोफेसर संतोष कपूरिया ने इस मौके पर तीन मिशन मोड परियोजनाओं के उत्कृष्ट परिणामों का भी उल्लेख किया, जिनमें टिकाऊ एवं ऊर्जा कुशल जन आवास योजना, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों की मजबूत संरचनात्मक स्वास्थ्य निगरानी व विरासत संरक्षण तथा पुनरुद्धार के लिए प्रौद्योगिकियां और महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा शामिल है, जिसके लिए सीएसआईआर-एसईआरसी एक प्रमुख भागीदार के रूपमें कार्य कर रहा है। सीएसआईआर-एसईआरसी के उद्योग सम्मेलन और रामास्वामी समर इंटर्नशिप कार्यक्रम भी उल्लेखनीय रूपसे सफल रहे हैं। हाल के वर्ष में किए गए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और शोध प्रकाशनों में बढ़ोतरी भी संस्थान की उपलब्धि रही है। कोविड-19 से लड़ने में एसईआरसी के योगदान में अस्थायी अस्पतालों की संरचनात्मक योजना प्रमुखता से शामिल है। प्रोफेसर संतोष कपूरिया ने बताया है कि एसईआरसी इस तरह के अस्पताल स्थापित करने के लिए उद्योगों और राज्य सरकारों के साथ संपर्क में है। सीएसआईआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी मांडे ने एसईआरसी के योगदान को याद करते हुए संस्थान के वैज्ञानिकों का इस सिलसिले को बनाए रखने के लिए आह्वान किया है।