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Monday 16 November 2020 04:28:07 PM
नई दिल्ली/ पाली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए जैनाचार्य विजय वल्लभ सुरिश्वर महाराज की 151वीं जयंती पर शांति की प्रतिमा का अनावरण किया। जैन आचार्य के सम्मान में बनाई गई इस प्रतिमा को शांति की प्रतिमा का नाम दिया गया है। अष्टधातु से निर्मित 151 इंच ऊंची यह प्रतिमा आठ धातुओं से निर्मित है, जिसमें तांबा मुख्य धातु है। यह प्रतिमा राजस्थान के पाली में जेतपुरा में विजय वल्लभ साधना केंद्र में स्थापित की गई है। प्रधानमंत्री ने जैन आचार्य के अलावा समारोह में उपस्थित धर्मगुरुओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। उन्होंने सरदार वल्लभभाई पटेल और जैन आचार्य विजय वल्लभ सुरिश्वर महाराज की प्रतिमा का जिक्र करते हुए कहा कि सरदारजी को विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी समर्पित करने के बाद अब जैन आचार्य की शांति प्रतिमा का अनावरण करने पर खुद को गौरवांवित महसूस कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोकल फॉर लोकल पर जोर देते हुए कहा कि जिस तरह से स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हुआ था उसी तरह से इस समय भी सभी आध्यात्मिक गुरुओं को आत्मनिर्भर भारत के लाभों का प्रचार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दीपावली पर जिस तरह से देश ने स्वेदशी वस्तुओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया, वह काफी उत्साहजनक अनुभव है। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने दुनिया को हमेशा से शांति, अहिंसा और भाईचारे का मार्ग दिखाया है, आज पूरा विश्व फिरसे ऐसे पथ प्रदर्शन के लिए भारत की ओर देख रहा है। उन्होंने कहा कि अगर हम इतिहास को देखें तो पाएंगे कि जब कभी आवश्यकता हुई समाज को रास्ता दिखाने के लिए किसी न किसी संत का प्रार्दुभाव हुआ, आचार्य विजय वल्लभ इन्हीं महापुरुषों में से एक थे। प्रधानमंत्री ने जैनाचार्य की ओर से स्थापित शिक्षण संस्थाओं का जिक्र करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के उनके प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जैनाचार्य ने पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भारतीय मूल्यों के साथ इन संस्थाओं की स्थापना की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि इन संस्थाओं ने देश को एक से एक शिक्षाविद्, न्यायविद्, डॉक्टर और इंजीनियर दिए हैं जिन्होंने राष्ट्र के प्रति अपनी बड़ी सेवाएं दी हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन संस्थाओं ने महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान किया है, इन्होंने कठिन घड़ी में भी महिलाओं की शिक्षा की अलख जगाए रखी। उन्होंने कहा कि जैनाचार्य ने बालिकाओं के लिए भी कई शिक्षा संस्थान खोले और महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि आचार्य विजय वल्लभ के ह्दय में सभी जीवों के लिए दया, सहिष्णुता और प्रेम की भावना थी, उनके आर्शीवाद से ही आज देश भर में पक्षियों के अस्पताल और गौशालाएं चल रही हैं, ये सामान्य संस्थाएं नहीं हैं, ये भारतीय मूल्यों और भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व करती हैं।
विजय वल्लभ सुरिश्वर महाराज (1870-1954) ने एक जैन संत के रूपमें सादगीपूर्ण जीवन जीते हुए निस्वार्थ और समर्पण भाव से भगवान महावीर के संदेश को प्रचारित करने का कार्य किया है। उन्होंने जनता के कल्याण, शिक्षा के प्रसार, सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए भी अथक परिश्रम किया। जैन आचार्य ने प्रेरक साहित्य कविता, निबंध, भक्ति भजन और स्तवन लिखा और आजादी के आंदोलन और स्वदेशी के उद्देश्य को सक्रिय समर्थन दिया, उनकी प्रेरणा से कई राज्यों में कॉलेजों, स्कूलों और अध्ययन केंद्रों सहित 50 से अधिक शिक्षण संस्थान संचालित हैं। उनके सम्मान में इस प्रतिमा को ‘स्टैच्यू ऑफ पीस’ का नाम दिया गया है।